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दिशा रवि की जमानत एक आई ओपनर है

  • नीलांशु रंजन
  • बाइस साल की लड़की दिशा रवि को जमानत देते हुए, अदालत ने जो टिप्पणी की, वह काबिलेगौर है और जनतांत्रिक व्यवस्था को जानने-समझने के लिए एक आई ओपनर भी है। अदालत ने साफ-साफ कहा कि सत्ता के खिलाफ बोलना या किसी बात को लेकर असहमति प्रकट करना कोई जुर्म नहीं है। प्रजातंत्र में हर किसी को हक है अपनी बात रखने का। यही नहीं, अदालत ने ऋगवेद का उद्धरण देते हुए कहा कि हमारी सभ्यता पांच हजार साल पुरानी है और यह, ऐसी सभ्यता है जिसने हमें अलग-अलग विचारधाराओं के साथ समता में रहना सिखाया है। असहमति-सहमति प्रजातांत्रिक देश की ख़ूबी है।

साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि अदालत के संज्ञान में कोई ऐसा सबूत नहीं लाया गया जिससे पता चले कि खालिस्तानियों से दिशा का संबंध है या 26 जनवरी के दिन जो भी हुआ, उस षड्यंत्र में वह शामिल थी। अदालत ने पूछा कि यह बताइए कि टूल किट बनाना क्यों और कैसे राजद्रोह है, इस पर पुलिस खामोश रही और कुछ जवाब नहीं दे पाई। अदालत ने कहा कि हमें अपनी राय रखने का पूरा हक है और संविधान के अनुच्छेद 19 में हमें यह अधिकार दिया गया है। अगर किसी की असहमति से आपके अहंकार को चोट पहुंचती है तो इसका मतलब यह नहीं कि यह राजद्रोह है।

दिशा रवि ने जो अदालत में बयान दिया, उसके मर्म को समझने की जरूरत है। दिशा ने अदालत में कहा कि अगर किसान आंदोलन के समर्थन में खड़ा होना राजद्रोह है और अपराध है तो मैं जेल में ही रहना पसंद करूंगी। बाइस साल की इस लड़की ने जो हिम्मत दिखाई है, वह काबिलेतारीफ है और उसे सलाम करना चाहिए कि उसने सत्ता के अहंकार और गोदी मीडिया की चाटुकारिता के आगे झुकने से इंकार कर दिया। क्या हम सचमुच एक जनतांत्रिक देश में रह रहे हैं जहां असहमति प्रकट करना अपराध माना जाता है? कौन सा देश है यह? किस राजनीतिक संस्कृति को हम पैदा कर रहे हैं? अगर आप असहमति जता रहे हो तो आपको देशद्रोही माना जाएगा।

आज पेट्रोल-डीजल शतक मार चुका है और एलपीजी भी शतक मारने के करीब है। लेकिन हम खामोश हैं। हम यह भी नहीं पूछ पा रहे कि 35 रु­­­पये लीटर पेट्रोल देने का वादा करने वाली सरकार आज क्या कर रही है? आपकी अदालत में बाबा रामदेव का इंटरव्यू याद है न? हम यह भी नहीं पूछ पा रहे कि विदेश से काला धन वापस लाने का क्या हुआ औा नोटबंदी के क्या फायदे हुए? हम यह भी नहीं पूछ पा रहे कि पिछले पैंतालिस साल में बेरोजगारी जो चरम पर पहंुच चुकी है, उस पर सरकार की क्या राय है? हम यह भी नहीं पूछ पा रहे कि जिन मोदी जी ने जबरदस्त ढंग से डाॅलर के मुकाबले भारतीय नोट के पतले होने का मसला उठाया था, वह अब दुबला क्यों हो गया है? फिर भी सरकार अपेक्षा रखती है हम कहें कि भाई, अच्छे दिन आ गए। जरूर कहेंगे हुज़ूर, लेकिन सपनों को हकीकत में तो बदलिए। एक जनतांत्रिक देश में अगर आपको चुनावी वायदे करने का हक है तो हमें भी पूछने का हक है बगैर मन में तीखापन लिए।
(लेखक टीवी पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं और फिलहाल साहित्य से जुड़े हैं।)

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