कोरोना वायरस से बचने के उपायों के बीच एक बड़ा सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि क्या देश के मेडिकल कालेज व संस्थान वायरसजनित रोगों से लड़ने के लिये तैयार हैंघ् यह सवाल इसलिये उठ खड़ा हुआ है कि नित नई वायरसजनित बीमारियां दस्तक दे रही है। सुपरबग जैसी चुनौतियाँ मुँह बायें खड़ी हैं लेकिन वहीं मेडिकल संस्थानों के पाठ्यक्रम दशकों पुराने चल रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इन पुराने पाठ्यक्रमों के सहारे चिकित्साकर्मी नई तरह की बीमारियों से पैदा होने वाली चुनौतियों से कैसे पार पा सकते हैंघ्
यह ऐसा दौर है जब नई बीमारियों का संकट तो सामने है ही वहीं कई पुरानी बीमारियां भी लौट आई हैं। समय की मांग है कि देश के चिकित्सकीय ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन लाया जाय। लेकिन देश के मेडिकल संस्थानों में पढ़ाया जाने वाला पाठ्यक्रम काफी पुराना चल रहा है।पाठ्यक्रमों के साथ ही डॉक्टर व नर्सों की अपग्रेडिंग प्रणाली भी विकसित नहीं हो पाई है। डॉक्टरी की शिक्षा के दौरान जो पढ़ाया जाता हैएवह डॉक्टरी पूरी होने तक किसी काम की नहीं रह जाती। आज तक यह भी चिन्हित नहीं हो पाया कि जन स्वास्थ्य पाठ्यक्रम का कौन सा हिस्सा बेकार है और कौन से विषय ऐसे हैं जिन्हें पाठ्यक्रमों में जोड़ा जाय। स्वास्थ्य प्रबंधनए स्वास्थ्य अर्थशास्त्र संक्रामक बीमारियां जैसे विषय पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं बन पाये। सरकारों की प्राथमिकता अधिक से अधिक मेडिकल कालेज खोलने की रही ओर इन मेडिकल कालेजों के प्रबंधकों का ध्यान सिर्फ डॉक्टरी की डिग्री देने तक सीमित रहा। देश के कोने.कोने में मेडिकल कालेजों को स्वीकृति तो मिलती रही लेकिन आधारभूत ढांचा व इनका बेहतर प्रबंधन की तरफ से सरकारों ने आँखें मूंदी रखी। यही वजह है की देश में फर्जी डॉक्टरए फर्जी संस्थानए उल्टे आपरेशनए निजी क्लीनिक व नर्सिंग होमों का गोरखधंधा आसानी से चल रहा है। कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि मेडिकल के विद्यार्थी यह तो पढ़ते हैं कि किसी भी रोग का इलाज गोलियाँ व इंजैक्शन होती हैंए लेकिन इस अध्ययन की तरफ कम ही ध्यान दिया जाता है की रोग का मूल स्रोत क्या है। जबकि आज के दौर में बढ़ते रोगों के कारणोंए दवाओं के बेअसर होने की वजहए रोगाणुओंए विषाणुओं के अधिक घातक होने की वजह व जानलेवा बीमारियों के लौटने के कारणों जैसे अहम विषयों से मेडिकल के विद्यार्थियों को परिचित कराना आज की आवश्यकता है। मेडिकल के विद्यार्थी इस बात से तो परिचित होते हैं कि एंटीबायोटिक कैसे काम करता है लेकिन सुपरबग से होने वाले नुकसानों से कैसे बचा जायए इससे वह अनभिज्ञ रहते हैं। सुपरबग यानि ऐसे बैक्टीरिया;जीवाणुद्ध जो एंटीबायोटिक के खिलाफ प्रतिरोध पैदा करता है।
भारत की मेडिकल शिक्षा के बारे में यह भी प्रचलित है कि यह गरीबों से अलगाव कराता है। यहां संपन्न वर्ग के लोगों को होने वाली बीमारियों का निदान तो है लेकिन गरीबी से पैदा होने वाली बीमारी से निपटने में ये सक्षम नहीं है। कई स्वास्थ्य विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि मेडिकल शिक्षा में इस बात पर तो जोर दिया जाता है कि बीमारी होने पर उसका इलाज कैसे किया जायए लेकिन इसमें सामाजिक हालातों को समझने की कोशिश नहीं की जाती है।
कोरोना वायरस के कहर के बाद पैदा हुई स्थितियों ने हर देश को यह सीख तो दी है कि बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत व प्रभावी बनाये बिना स्वस्थ समाज की कल्पना बेमानी है। यही वजह है कि खास आदमी तक जानलेवा बीमारियों के चुंगल में फंसा हुआ है। कुल मिलाकर कोरोना नामक महामारी में सबक भी है तो यह संदेश भी कि जन स्वास्थ्य सेवाओं व पाठ्यक्रमों में आमूलचूल परिवर्तन की जरुरत है।