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रोजगार में भी महिलाओं के साथ भेदभाव

आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने के बाद भी महिलाओं की स्थिति में पूर्ण रूप से परिवर्तन नहीं आया है। ऑक्सफेम ‘इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट 2022’ के अनुसार रोजगार व श्रम शक्ति क्षेत्र में महिलाएं आज भी पुरुषों से पीछे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2004-05 में देश में महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) 42.7 फीसदी थी जो तेजी से घटी और साल 2021 में महज 25.1 फीसदी रह गयी।इस रिपोर्ट में महिलाओं के साथ होने वाले भेद भाव को मापा गया है।

 

रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि पुरुष वेतन भोगी नियमित रोजगार से हर महीने औसतन 19,779 रुपए कमाते हैं जबकि महिलाएं 15,578 रुपये कमाती हैं। रिपोर्ट में पाया गया कि भारत में महिलाओं को पुरुषों के समान शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव के बाद भी श्रमिक बाजार में सामाज, संस्थाओं और पूर्वाग्रहों के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ता है । वेतनभोगी महिलाओं के लिए कम वेतन के प्रमुख कारणों में 67 फीसदी भेदभाव और 33 फीसदी शिक्षा व कार्य अनुभवों की कमी है। वहीं अगर शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति की ओर ध्यान दें तो रिपोर्ट यह दिखती है कि यहं नौकरीयो के मामलों में औसतन 99 फीसदी महिलाओं को असमानता का सामना करना पड़ता है। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों के श्रम बाजार में महिलाओं को लगभग 100 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 98 प्रतिशत लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ‘‘पुरुषों की औसत आय महिलाओं की आय से करीब ढाई गुना अधिक है।’’ जिससे यह स्पष्ट होता है कि महिला और पुरुष के बीच रोजगार व उनके वेतन में कितना अंतर है।

ऑक्सफेम इंडिया के सीईओ ‘अमिताभ बेहर’ के मुताबिक भारत में अब तक अभिवंचित समुदायों के साथ होने वाले भेदभाव और इसका उनके जीवन पर होने वाले प्रभाव को मापने के लिए अब तक सीमित प्रयास किए गए हैं। यहाँ तक कि भेदभाव को मापने के लिए सतत शोध के तरीकों के माध्यम से और विश्वसनीय आंकड़ों को एकत्र करने के कमतर प्रयास किए गए हैं। ऑक्सफेम इंडिया ने देश भर में नौकरियों, आय, स्वास्थ्य और कृषि ऋण तक पहुंच की असमानता और भेदभाव को समझने के लिए 2004 से 2020 तक सरकारी आंकड़ों का व्यापक विश्लेषण किया है। रिपोर्ट में यह पाया गया है कि यदि कोई पुरुष और महिला समान स्तर पर शुरू करें तो, आर्थिक क्षेत्र में महिला के साथ भेदभाव किया जायेगा जहां कि वो नियमित / वेतनभोगी, अल्पकालिक और स्वरोजगार में पिछड़ जाएगी। रिपोर्ट में पाया गया है कि श्रम बाजार में असमानता केवल शिक्षा तक पहुँच की कमी या कार्य अनुभव के कारण हीं नहीं है बल्कि भेदभाव भी इसका एक महत्वपूर्ण कारण है।“

 

महिलाओं की भागीदारी बढ़ने के लिए सुझाव

 

1. सभी महिलाओं के लिए समान वेतन और काम के अधिकार के कार्यान्वयन के लिए कानूनों को सक्रिय रूप से लागू करें।

2. कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करने के लिए कार्य करना, जिसमें वेतन में वृद्धि, नौकरी में आरक्षण और मातृत्व के बाद काम पर वापसी      के आसान विकल्प शामिल हैं।

3. महिलाओं और पुरुषों के बीच घरेलू काम और बच्चों की देखभाल के कर्तव्यों का अधिक समान वितरण सुनिश्चित करने और श्रम बाजार में महिलाओं की उच्च भागीदारी           को सुगम बनाने में नागरिक समाज की भागीदारी को मजबूत करना।

 

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