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  •    प्रियंका यादव

पिछले साल हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार प्रचंड जीत के बाद अब ममता की निगाहें दिल्ली पर है। इसके लिए वह पिछले कुछ दिनों से अपनी पार्टी की छवि सुधारने में जुटी हुई है। कहा जा रहा है कि ऐसा कर वह 2024 के आम चुनावों के लिए तृणमूल को जमीनी स्तर पर मजबूत करने के लिए कर रही हैं। दरअसल दीदी अपनी पार्टी की छवि को सुधारने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। इसके लिए उन्होंने पंचायतों के कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिए ठेकेदारों को टेंडर देने के दायरे से बाहर रख दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि ममता सरकार के लिए पंचायतों का खासा महत्व है। वर्ष 2020 में पंचायत स्तर की सरकारी योजनाओं में कमीशनखोरी को लेकर भाजपा ने टीएमसी पर निशाना साधा था कि ममता अपने ही नेताओं द्वारा कमीशन भ्रष्टाचार के कारण केंद्र सरकार की योजनाओं को लागू नहीं कर पा रही है। अपने तीसरे कार्यकाल के एक वर्ष बाद ममता व्यक्तिगत रूप से अनुशासन लागू करने और तृणमूल को शर्मिंदगी से बाहर निकालने के प्रयास में जुट गई हैं। ममता अब ब्लॉक स्तर पर पंचायत के कार्यकर्ताओं से जमीनी स्तर पर जाकर जुड़ रही हैं।

बीते सप्ताह पुरूलिया जिले में चल रहे कमीशन खोरी को लेकर कड़े तेवर दिखाते हुए ममता ने जिले के डीएम को सख्त निर्देश दिए कि उनके जिले में कोई सरकारी अधिकारी रिश्वत न मांगे। इस दौरान दीदी ने तृणमूल कार्यकर्ताओं को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि अगर पार्टी के सदस्य भी इस तरह के मामलों में लिप्त पाए जाते हैं तो वे उन्हें कम से कम चार थप्पड़ मारेंगी। उनके सख्त तेवरों को लेकर बंगाल की राजनीति में खासा उबाल आता नजर आ रहा है। कहा जा रहा है कि ममता राज्य में कल्याणकारी योजनाओं को बिना बाधा के सफल बनाने के प्रयास में हैं। इस दौरान उन्होंने कल्याणकारी योजनाओं का कुल खर्च 25 हजार करोड़ रुपये में से लक्ष्मी भंडार योजना (परिवार के लिए मासिक आय सहायता) के लाभार्थियों को 1 .5 करोड़ से बढ़ाकर 17.5 करोड़ कर दिया है। इसके अलावा लड़कियों की शिक्षा से जुड़ी ‘कन्याश्री’ योजना का बजट भी खासा बढ़ा दिया है। यही नहीं रोजगार को बढ़ाने के लिए भी ममता ने कदम बढ़ाते हुए सरकारी विभागों में 6000 शिक्षित युवाओं की भर्ती का काम शुरू कर दिया है।

गौरतलब है कि लेकिन लंबे समय से राज्य में घोटाले, भ्रष्टाचार, बलात्कार, कमीशनखोरी जैसे गंभीर आरोपों में लिप्त होने के कारण ममता की छवि धूमिल होने लगी है। ऐसे में ममता भली-भांति जानती है कि अगर ये समस्याएं बनी रहीं तो उन्हें बंगाल से हाथ धोना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति न आये इसके लिए ममता फिर से टीएमसी को अपने नियंत्रण में लेती दिखाई दे रही हैं। इसका सीधा असर लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अपने गृह राज्य पश्चिम बंगाल में अपनी छवि सुधारने से मिल सकता है। ममता के इस कदम से यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि बलात्कार जैसे मामलों में कथित रूप से टीएमसी के सदस्यों के शामिल होने के आरोपों के चलते भी यह कदम उठा पार्टी की गिरती साख को भी सुधारने की कोशिश की जा रही है। हाल ही में राज्य के हंसखली में सामूहिक बलात्कार का मामला सामने आया था जिसमें लड़की की मौत हो गई थी। इस मामले में भी कथित रूप से टीएमसी पंचायत नेता के बेटे का नाम लिया गया था। उस दौरान कहा जा रहा था कि ममता शासन में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। यही नहीं शिक्षा भर्ती घोटाला भी तृणमूल और ममता के लिए भारी शर्मिंदगी का कारण बन चुका है।

कुछ महीनों पहले ही पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के रामपुरहाट में हुए बागतुई नरसंहार मामले ने राजनीति और अपराध के गठजोड़ का पर्दाफाश किया था। 21 मार्च को यह घटना अवैध रेत और पत्थर खनन में हिस्सेदारी को लेकर हुई जिसमें 9 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। इस घटना से पार्टी की किरकिरी हुई थी। इस घटना के मुख्य आरोपी के रूप में एक तृणमूल नेता का नाम सामने आ चुका है। टीएमसी को इस शर्मिंदगी से बाहर निकालने के लिए और जनता का विश्वास जीतने के लिए ममता अपनी पार्टी और सरकार की छवि सुधारने की बड़ी कवायद में जुट गई हैं। अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने जनसंपर्क कार्यक्रम ‘दीदी के बोलो’ को दोबारा से शुरू कर दिया है। इस जन शिकायत निवारण कार्यक्रम के तहत जनता अपनी समस्याएं सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंचाती है।

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