भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गढ़ कहे जाने वाले भारत के तटीय क्षेत्र गुजरात में स्थित शहर सूरत में हीरा कारीगरों द्वारा आत्महत्या के लगातार बढ़ रही कोशिशों के कारण कारीगरों के बीच निराशा का माहौल है। सूरत भारत के सबसे गतिशील शहरों में से एक है। सदियों से ही सूरत एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र रहा है। अपने कपड़ा उद्योग और डायमंड कटिंग व पॉलिशिंग के कारण इस शहर को सिल्क सिटी और डायमंड सिटी के नाम से भी जाना जाता है।
सूरत दुनिया के सबसे बड़े हीरा निर्माण केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है, जिसमें वह अपनी 5 हजार से अधिक कटिंग और पॉलिशिंग इकाइयों में लगभग 8 लाख श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से काम कम हो रहा है, जिससे यूनिटों के कर्मचारियों को कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। सूरत में यूरोप, अफ्रीका और अन्य जगहों से कच्चे हीरे आते हैं और स्थानीय कारीगरों द्वारा काटे, पॉलिश व तैयार किए जाते है। यहाँ के करीब सात लाख कर्मचारी दुनिया के 80 प्रतिशत हीरे काटते और पॉलिश करते हैं। लेकिन पिछले कई वर्षों से सोना उद्योग में आई कमी के कारण इन कारीगरों में असंतोष का माहौल है। उद्योग में आई कमी के कारण कारीगरों को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ रहा है। जो धीरे – धीरे उनके लिए अवसाद की वजह बनता जा रहा है। ऐसे ही कई परेशानियों के चलते कुछ महीनो से हीरा कारीगरों की आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। आलम यह है कि पिछले तीन महीनों में करीब 8 हीरा कारीगरों ने आत्महत्या कर ली है। 7 जून 2023 को हीरा कारीगर के रूप में कार्य करने वाले एक मोरडिया परिवार ने आर्थिक तंगी के कारण सामूहिक रूप से आत्महत्या कर ली । वीनू के दो बच्चे और हैं जो परिवार के साथ न रहकर बाहर रहते हैं इसलिए वे जीवित हैं। सूरत में हीरा कारोबारियों के बीच फैला यह असंतोष साल 2024 आने वाले लोकसभा चुनावों पर भी प्रभाव डाल सकता सकता है।
हीरा निर्यात में गिरावट के कारण
हीरा कारीगरों की आत्महत्या की वजह हर बार आर्थिक तंगी को ही बताया गया जो या तो कम वेतन के कारण या उन्हें काम से निकाल दिए जाने के कारण उनके सामने खड़ी होती है। हीरा कारीगरों के सामने यह समस्याएं साल 2017 से ही सामने आने लगी थी, लेकिन कोरोना महामारी और रूस – यूक्रेन युद्ध ने इस संकट को और बढ़ा दिया। रूस – यूक्रेन युद्ध और कोविड के अलावा इसके कई और कारण भी हैं, जैसे कटे और पॉलिश किए गए हीरे की मांग में गिरावट, कच्चे माल की आसमान छूती कीमतें, उच्च मुद्रास्फीति, और जी -7 देशों द्वारा रूसी हीरे पर लगाया गया प्रतिबन्ध शामिल है।
वित्त वर्ष 2021 में हीरा निर्यात में काफी वृद्धि दर्ज की गई थी, जो वित्त वर्ष 2022 तक जारी रही। लेकिन वित्त वर्ष 2023 में कोरोना महामारी के बाद रूस – यूक्रेन के युद्ध के कारण हीरे के निर्यात में भरी गिरावट देखी गई। अर्थव्यवस्थाओं के फिर से खुलने और रूस के साथ व्यापार पर लगाए गए प्रतिबन्ध इसकी मांग में गिरावट की वजह बना। जिसका परिणाम यह हुआ कि वित्त वर्ष 2022 में 24.3 बिलियन डॉलर हीरा निर्यात दर, जो इस दशक का उच्च स्तर रहा। वित्त वर्ष 2023 में उसके कुल निर्यात 9 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई। हीरे की मूल्य के हिसाब से वित्त वर्ष 2023 में निर्यात में सालाना आधार पर 19 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। हालांकि हीरे की कीमतों में 12 प्रतिशत वृद्धि किये जाने से इस गिरावट की आंशिक रूप से भरपाई कर ली गई।
जी -7 देशों द्वारा लगाया गया प्रतिबन्ध : पिछले साल मई के महीने में G-7 देशों द्वारा रूसी हीरे पर लगाया गए प्रतिबन्ध के कारण लगभग 10 लाख से अधिक लोगों के रोजगार पर खतरा मंडराने लगा और धीरे-धीरे हीरा कारोबारियों ने अपने कर्मचारियों की छंटनी करना शुरू कर दिया। हालांकि यह कदम रूस को आर्थिक रूप से कमजोर बनाने के लिए उठाया गया था लेकिन इसका प्रभाव भारत पर भी पड़ रहा है।
गौरतलब है कि दुनिया में उपलब्ध 10 में से 9 हीरों को काटने और पॉलिश करने का काम भारत करता है और अलरोसा (हीरा खनन कंपनियों का एक रूसी समूह) से रूसी हीरे का आयात करता है, जो वैश्विक कच्चे हीरे के उत्पादन का 30 प्रतिशत है। जेम एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के चेयरमैन विपुल शाह का कहना है कि अगर यह प्रतिबंध जारी रहता है तो भारत में लाखों कर्मचारियों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ेगा। क्योंकि इस फैसले के कारण सूरत के हीरा श्रमिकों को रूस से आने कच्चे हीरे उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं जिसके कारण वैश्विक आर्थिक मंदी के बीच मांग में गिरावट और बड़े पैमाने पर चल रहे युद्ध के कारण वैश्विक मंदी का सामना करना पड़ सकता है। कच्चे हीरे की सप्लाई कम होने के बाद भी हीरा इंडस्ट्री स्थिति को संभालने में सक्षम हो रहा है लेकिन मांग बढ़ने पर समस्याएं पैदा हो सकती हैं। गुजरात डायमंड वर्कर्स यूनियन (जीडीडब्ल्यूयू) के उपाध्यक्ष भावेश टैंक का कहना है कि पिछले चार महीनों में सूरत में लगभग 20 हजार हीरा कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया है। जिनका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड भी नहीं है, क्योंकि अधिकतर मजदूर न तो स्थाई हैं और न ही पेरोल पर रजिस्टर्ड कर्मचारी हैं। हैरानी की बात है कि जो मजदूर दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं और अमीरों के लिए हीरों को तराशते हैं उन्हें ही अपनी मेहनत की कमाई पूरी तरह से नहीं मिल पाती है। हालांकि हीरा व्यपारी कंपनियों की कमाई करोड़ों में होती है।
अमेरिका और चीन द्वारा हीरे की मांग में कमी : सूरत हीरे का प्रमुख केंद्र माना जाता है। जिसके सबसे बड़े आयातक अमेरिका और चीन हैं। लेकिन अमेरिका में आई आर्थिक मंदी और चीन में कोरोना के कारण दोनों ही देशों में हीरे की मांग में कमी आई है। जेम एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के अनुसार, भारत के हीरा निर्यातक एक कठिन वर्ष के लिए तैयार हैं क्योंकि आर्थिक मंदी के कारण उनके मुख्य बाजारों (अमेरिका और चीन) से मांग कमजोर बनी हुई है। राज्य समर्थित उद्योग समूह के अध्यक्ष विपुल शाह ने का कहना है कि हीरा निर्यात में आई ये चुनौतियाँ इस साल बिक्री में सुस्ती को लम्बा खींच देंगी । शाह ने ब्लूमबर्ग को इंटरव्यू देते हुए कहा कि हीरा निर्यातकों के लिए यह एक कठिन वर्ष होने जा रहा है। उनका कहना है कि अमेरिका में मुद्रास्फीति का बढ़ा दबाव, महामारी प्रतिबंध हटने के बाद चीन की धीमी गति से हो रही रिकवरी और सोने की अस्थिर कीमतें भारतीय हीरा व्यापारियों के लिए इसे अधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण बना देंगी।
चुनाव पर पड़ सकता है प्रभाव
हीरा निर्यात में इतने बड़े स्तर पर आई गिरावट और लगातार श्रमिकों की छंटनी के कारण हीरा कर्मचारियों की स्थिति ख़राब होती जा रही है। श्रमिकों की आत्महत्या के मामले लगतार बढ़ते जा रहे हैं। सरकार इसपर कोई कड़ी कार्यवाही नहीं कर रही है जो साल 2024 में आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के वोट प्रतिशत पर प्रभाव डाल सकता है। सूरत में 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी कपडा कर्मचारियों के बीच भी ऐसा ही माहौल था। जब सरकार द्वारा वर्ष 2017 में यह घोषणा की गई की अब नई कर व्यवस्था ‘जीएसटी’ लागू किया गया। इसके बाद से ही सूरत के कपड़ा निर्यातकों का सरकार के खिलाफ अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था। कपडा व्यापारियों ने इसके विरोध में कई प्रदर्शन किये व जुलूस भी निकाले। क्योंकि सरकार के इस फैसले से कपड़ा निर्यातकों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कपडा व्यापारियों का कहना था कि जीएसटी नंबर के लिए पंजीकरण करके व्यवसायों को औपचारिक रूप से लागू करने पर जोर देने व जीएसटी लागू से व्यापार बड़े और संगठित व्यापारियों की ओर चला जाएगा और छोटे व्यापारी अक्षम हो जाएंगे। उनका यह भी मानना है कि यह कागजी कामों में वृद्धि करेगा और अक्काउंटेंट को काम पर रखने के बिना जीएसटी फाइल को मैनेज करना मुश्किल होगा। ऐसे में ये छोटे कपडा व्यापारियों के लिए मुसीबत बन गया था। सूरत के एक कपड़ा व्यापारी और जीएसटी संघर्ष समिति के सचिव चंपालाल बोथरा ने कहा कि सिर्फ मिल मालिकों को ही नहीं, हर स्तर पर कपड़ा व्यापारियों को घाटा हुआ है। जिस दिन सरकार ने घोषणा की कि नई कर व्यवस्था लागू की जाएगी, बिक्री कम हो गई। वास्तव में निर्यातकों ने जो उत्पाद थोक विक्रेताओं को भेजे थे, उन्होंने उसे वापस कर दिया था। क्योंकि किसी को नहीं पता था कि पुराने स्टॉक की कीमत क्या होगी।
इसी दौरान हीरा निर्यातकों ने भी इसके विरोध में आवाज उठाई थी सूरत जो पाटीदारों का गढ़ माना जाता है। इस पाटीदार समुदाय के लोग, सूरत की 80 हजार करोड़ की डायमंड इंडस्ट्री के बैकबोन मने जाते थे जिनके कहने पर उनके कर्मचारी वोट देने को तैयार थे। हालांकि इसके बावजूद साल 2019 में गुजरात में भाजपा की ही सरकार बानी। लेकिन अब 2024 के लोकसभा चुनाव आने से पहले एक बार फिर गुजरात में असंतोष का माहौल छाया हुआ है जिसका प्रभाव आने वाले चुनावों में मोदी सरकार पर पड़ सकता है।