अपने बयानों और तथाकथित चमत्कार दिखाने के दावों के चलते हाल में चर्चा में आए बागेश्वर धाम के बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने एक बार फिर हिंदू राष्ट्र को लेकर बयान जारी किया है। बाबा बार-बार भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग करते रहे हैं। हालांकि वह यह साफ नहीं कर रहे हैं कि उनकी नजर में हिंदू राष्ट्र का मतलब क्या है लेकिन देश, समाज और सियासत के अलग-अलग तबकों से उनकी बात का समर्थन करने वाले भी अब सामने आने लगे हैं
देश में इन दिनों बागेश्वर धाम से जुड़ा विवाद लगातार बढ़ता ही जा रहा है। बागेश्वर धाम और धीरेंद्र शास्त्री लगातार चर्चा में बने हुए हैं। अंधविश्वास फैलाने के आरोपों को लेकर उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इन सबके बीच धीरेंद्र शास्त्री के समर्थन में देश के साधु-संतों का एक धड़ा खड़ा हो गया है और आंदोलन की चेतावनी भी दे चुका है। सोशल मीडिया में भी धीरेंद्र शास्त्री और बागेश्वर धाम को लेकर मुद्दा जोर-शोर से गरमाया हुआ है। अपने बयानों और तथाकथित चमत्कार दिखाने के दावों के लिए हाल में चर्चा में आए बागेश्वर धाम के बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने एक बार फिर हिंदू राष्ट्र को लेकर बयान जारी किया है। बाबा बार-बार भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग करते रहे हैं। हालांकि वह यह साफ नहीं कर रहे हैं कि उनकी नजर में हिंदू राष्ट्र का मतलब क्या है लेकिन देश, समाज और सियासत के अलग-अलग तबकों से उनकी बात का समर्थन करने वाले भी अब सामने आने लगे हैं।
बाबा धीरेंद्र का बयान सोशल मीडिया पर भी काफी वायरल हो रहा है। दरअसल, उन्होंने रायपुर से छतरपुर जाते वक्त कहा कि ‘तुम मेरा साथ दो, मैं तुम्हें हिंदू राष्ट्र दूंगा।’ बयानों का सिलसिला यहीं नहीं थमा। इसके बाद भी उन्होंने छतरपुर पहुंचकर इस बयान पर अडिग रहते हुए कहा कि हिंदू राष्ट्र की मांग करना किसी भी तरह असंवैधानिक नहीं है। बीते 25 जनवरी को वह रायपुर से छतरपुर लौट आए। उनके स्वागत के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। इस दौरान ढोल- नगाड़ों के बीच फूलों की बरसात हुई। कार में सवार होकर रायपुर से छतरपुर पहुंचे बाबा का स्वागत काफी धूमधाम से किया गया।
रायपुर के दिव्य मंच से बाबा ने हिंदू राष्ट्र की जो बात उठाई थी उसे छतरपुर में भी डंके की चोट पर दोहराते रहे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू राष्ट्र की मांग न तो असंवैधानिक है और न ही अतार्किक। इतना ही नहीं उन्होंने रामचरितमानस पर जारी विवाद को लेकर भी बयान दिया। उनका कहना है कि रामचरितमानस को जहर घोलने वाला ग्रंथ बताने वाले धूर्त हैं। रामचरितमानस राम सेतु का काम करता है। एक-एक पत्थर, समाज और विचारधारा को जोड़ने का काम करता है।
बागेश्वर धाम और धीरेंद्र शास्त्री पर महाराष्ट्र की अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने जादू-टोना करने का आरोप लगाते हुए उन्हें चुनौती दी थी। जिसके बाद बाद पंडित धीरेंद्र शास्त्री रामकथा बीच में ही छोड़कर नागपुर से चले गए। बाबा का यूं नागपुर छोड़ना चर्चा का विषय बना ही हुआ था कि बागेश्वर धाम के दिव्य दरबार में धर्म परिवर्तन से जुड़े आरोपों ने विवाद को ज्यादा गहरा दिया।ओडिशा से आए एक परिवार और छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की ही सुलताना बेगम ने मंच से ही हिंदू धर्म स्वीकार करने की घोषणा की। ओडिशा से आए परिवार ने जहां उनके बच्चे का बीमार होना इसकी वजह बताया और दरबार में उसके जल्द ठीक होने की उम्मीद जताई वहीं मुस्लिम महिला सुल्ताना बेगम ने मंच से ही ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए। सुल्ताना ने कहा कि हिंदू धर्म से अच्छा कोई धर्म है ही नहीं।
सुल्ताना के मुताबिक उनको परिवार ने बहुत पहले ही त्याग दिया है। वह एक हिंदू युवक से प्रेम करती हैं और उससे ही शादी करेंगी। सुल्ताना ने इस दौरान हनुमान जी से लेकर तमाम हिंदू देवी-देवताओं की जयकार करते हुए कहा कि अब वो हमेशा हिंदू धर्म में रहेंगी। सुल्ताना ने कहा कि अब वह बिना दबाव के हिंदू धर्म स्वीकार कर रही हैं। सुल्ताना बेगम ने बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और हिंदू धर्म में आस्था जताई। साथ ही धीरेंद्र शास्त्री की आरती उतारने के बाद उन्हें राखी बांधी। इसके बाद मंच से ही धीरेंद्र शास्त्री ने सुल्ताना बेगम का नाम शुभी दासी रखने का एलान किया।
मध्य प्रदेश का जिला छतरपुर अपने प्राचीन एवं मध्यकालीन मंदिरों के लिए विश्वविख्यात है। यहां स्थित ऐतिहासिक खजुराहो मंदिर को देखने के लिए दुनियाभर से लोग खींचे चले आते हैं। खजुराहो का यह मंदिर और यहां मौजूद मूर्तियां अपनी वास्तुकला के लिए दुनिया में आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। अक्सर इसी खजुराहो की ओर दिल्ली से जाती ट्रेन छतरपुर के पास रुकती है। हालांकि यह जगह कोई आधिकारिक रेलवे स्टेशन नहीं है। लेकिन यह वह जगह है जहां मंगलवार, शनिवार को चेन खींचकर ट्रेन रोक ली जाती है। यहां ट्रेन से भीड़ उतरती है और पहुंचती है बागेश्वर बाबा धाम, जहां धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री अपना दरबार लगाए बैठे हैं। धर्म, आस्था और अंधविश्वास के बीच की वह महीन डोर है जिसे पकड़ पाना बहुत ही कठिन है। पिछले एक हफ्ते से पूरे देश की नजरें विवादित और चर्चित बागेश्वर धाम, छतरपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर छतरपुर-खजुराहो हाईवे से सटे गढ़ा गांव पर है। यहां भक्तों के साथ आजकल दर्जनों कैमरों का पहुंचना इस बात का प्रमाण है कि देश भर के लोग इस विषय को जानना चाहते हैं। दावा किया जा रहा है कि धीरेंद्र शास्त्री यहां अर्जी लगाने वालों का मन पढ़ लेते हैं।
कहां है बागेश्वर धाम
मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के गढ़ा गांव में बालाजी मंदिर को ही बागेश्वर धाम कहते हैं। बालाजी मंदिर में ही धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के दादा गुरु भगवान दास गर्ग की समाधि है। बताया जाता है पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के दादा गुरु भी हर मंगलवार और शनिवार को दिव्य दरबार लगाते थे। धीरेंद्र शास्त्री नौ वर्ष की उम्र से दादा गुरु के साथ मंदिर में जाते थे। वे उन्हें ही अपना गुरु संन्यासी बाबा कहते हैं। बागेश्वर धाम में जो लोग बालाजी महाराज के समक्ष अर्जी लगाते हैं, वे ओम बागेश्वराय नमः मंत्र का जाप कर नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर बांधते हैं और दिव्य दरबार के लिए टोकन लेते हैं।
गढ़ा गांव में स्थित भगवान शंकर के प्राचीन मंदिर में भगवान शिव का ज्योर्तिलिंग है, जिसे बागेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। वर्ष 2016 में गांव के लोगों के सहयोग से यहां यज्ञ का आयोजन किया गया। इसी यज्ञ में यहां बालाजी महाराज की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के साथ स्थापना की गई। इसके बाद से ही यह स्थान बागेश्वर धाम कहलाया। धीरेंद्र शास्त्री अपने कथित चमत्कारों का सोशल मीडिया के जरिए जमकर प्रचार करते कहते हैं। अब इसी सोशल मीडिया ने उन्हें कठघरे में खड़ा करने का काम कर दिया है। उन पर अंधविश्वास फैलाने के आरोप लगाए जा रहे हैं। कुछ लोग इनका महिमा मंडन कर रहे हैं तो कुछ इन्हें ढोंगी बता रहे हैं। ऐसा पहली बार नहीं है जब धीरेंद्र शास्त्री अखबारों में ताली बजाते चुटीले अंदाज, पर्चे पर भक्तों के सवाल, सनातन धर्म की बातें, चमत्कार, केंद्रीय मंत्रियों को आशीर्वाद, अजीब बर्ताव, विवादित बयान, जमीन पर कब्जे जैसे आरोपों को लेकर हर तरफ चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। इससे पहले भी वह विवादों में रहे हैं। बागेश्वर धाम में पंडित धीरेंद्र शास्त्री की कथा और उनके दिव्य दरबार की चर्चा लंबे समय से देशभर में हो रही है। लेकिन वे मेनस्ट्रीम मीडिया में तब आए जब उनके खिलाफ नागपुर में एक संस्था ने उनके चमत्कारों को चैलेंज किया।
गौरतलब है कि धीरेंद्र शास्त्री नागपुर में ‘श्रीराम चरित्र कथा’ करने के लिए गए थे। यहां पर अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति के श्याम मानव ने उन्हें खुलेआम चुनौती देते हुए कहा कि धीरेंद्र शास्त्री उनके सामने अपनी सिद्धियों को साबित करें। इसके साथ उन्होंने एक शर्त भी रखी की धीरेंद्र शास्त्री यदि अपनी सिद्धियों को साबित कर देंगे तो वे उन्हें 30 लाख रुपये देंगे। इसके अलावा उन्होंने यह आरोप लगाया कि इस चुनौती के बाद धीरेंद्र शास्त्री अपनी कथा को दो दिन पहले ही समाप्त करके वापस लौट गए। बस यहीं से सारे फसाद की शुरुआत हुई। इसके बाद से ही बवाल मचा हुआ है। कोई बाबा के समर्थन में है तो कोई उनके खिलाफ बयान दे रहा है। धीरेंद्र शास्त्री के साथ-साथ अंधश्रद्धा विरोधी कानून भी फिर से चर्चा में आ गया है, इस कानून को बनाने में करीब डेढ़ दशक तक संघर्ष जारी रहा। कानून बनने के बाद बनाने वाले की हत्या कर दी गई।
समिति ने किन कानूनों के तहत की है शिकायत
नागपुर अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति द्वारा पुलिस से धीरेंद्र शास्त्री के खिलाफ दो कानूनों के तहत शिकायत की गई है। पहला कानून जादुई दवा से इलाज के विज्ञापनों और दावों को प्रतिबंधित करता है। इस कानून को औषधि और चमत्कारिक उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 कहा जाता है। यह कानून भारतीय संसद से पारित हुआ है। दूसरा कानून महाराष्ट्र राज्य विधानसभा की ओर से पारित किया गया था, जिसे महाराष्ट्र मानव बलिदान व अन्य अमानवीय, बुराई और अघोरी प्रथा एवं काला जादू रोकथाम एवं उन्मूलन अधिनियम, 2013 कहा जाता है। इस कानून को अंधश्रद्धा विरोधी कानून भी कहते हैं। अंधश्रद्धा विरोधी कानून को बनाने के लिए लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा था। महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक नरेंद्र दाभोलकर ने इस कानून की मांग की थी। नरेंद्र दाभोलकर मशहूर सोशल एक्टिविस्ट भी थे। करीब 5 साल संघर्ष के बाद उन्होंने साल 2003 में इस कानून का ड्राफ्ट राज्य सरकार के सामने पेश किया था।
तत्कालीन मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे की सरकार द्वारा जुलाई, साल 2003 में ड्राफ्ट को मंजूरी देकर केंद्र सरकार के पास भेजा गया, लेकिन इसके बाद बीच में ही अटक गया। फिर साल 2005 में सोशल एक्टिविस्ट श्याम मानव (जिन्होंने अब धीरेंद्र शास्त्री के खिलाफ शिकायत की है) ने इस ड्राफ्ट में सुधार किए और तब शीतकालीन सत्र में यह विधानसभा में पेश किया गया। इसके बावजूद भी यह कानून नहीं बन पाया। जब तक कानून नहीं बना इसके समर्थन और विरोध में लगातार प्रदर्शन जारी रहे। अंत में साल 2013 में यह ड्राफ्ट विधानसभा में पारित होकर कानून बन गया। इस कानून के तहत अंधविश्वास फैलाने को अपराध मानते हुए गैर जमानती व दंडनीय बनाया गया है। इसके तहत विभिन्न अपराध में न्यूनतम 6 महीने और अधिकतम 7 साल तक जेल की सजा का प्रावधान निर्धारित है। इसके अलावा आरोपी पर 5 हजार से लेकर 50 हजार रुपये तक का जुर्माना भी लग सकता है।
कानून बनाने वाले की हो गई थी हत्या
इस कानून को तैयार करने के लिए नरेंद्र दाभोलकर कई संगठनों के निशाने पर आ गए थे। लगातार उन्हें जान से मारने की कोशिशें की जा रही थीं। आखिरकार फिर 20 अगस्त 2013 को उनकी सुबह टहलते समय गोली मारकर हत्या कर दी गई। दाभोलकर की हत्या के बाद उग्र प्रदर्शनों को देखकर महाराष्ट्र सरकार ने चार दिन बाद ही ड्राफ्ट को अध्यादेश के जरिए कानून में परिवर्तित कर दिया था। बाद में दिसंबर, 2013 में विधानसभा के शीतकालीन सत्र में यह ड्राफ्ट कानून के तौर पर पारित कर दिया गया। इसी कानून के कारण आजकल धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री आरोपों से घिरे हुए हैं। हालांकि महाराष्ट्र पुलिस द्वारा बागेश्वर धाम धीरेंद्र शास्त्री को अंधविश्वास और जादू टोना फैलाने के आरोपों में क्लीन चिट मिल गई है। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की शिकायत के बाद नागपुर पुलिस ने इसकी जांच शुरू की थी। इन आरोपों की गहन जांच पुलिस की ओर से की गई। पुलिस ने धीरेंद्र कृष्ण महाराज के समारोह के 6 घंटे से अधिक के वीडियो फुटेज को खंगाला है उसके बाद ही क्लीन चिट दी गई है।
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