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बागेश्वर धाम का बिहार की सियासत पर असर

 

बागेश्वर धाम वाले बाबा धीरेंद्र शास्त्री इन दिनों बिहार में हैं। यहां वह पटना में हनुमान कथा कर रहे हैं। बाबा की हनुमान कथा शुरू होते ही श्रद्धालुओं की भीड़ ने राजनीतिक दलों में हलचल बढ़ा दी है। दावा किया जा रहा है कि हर रोज करीब 10 से 15 लाख श्रद्धालु इसमें शामिल हो रहे हैं। अत्यधिक भीड़ के कारण धीरेंद्र शास्त्री ने लोगों से टीवी पर प्रवचन देखने की अपील की है। इस बीच, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह समेत बिहार भाजपा के कई नेता भी दरबार पहुंचे। भाजपा नेताओं ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाया कि वह हनुमान कथा को फेल करना चाहती है। वहीं, दूसरी ओर इसके सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि इसके जरिए नेताओं द्वारा हिंदू वोटों को एकजुट करने की कोशिश की जा रही है।

 

क्यों चर्चा में रहते हैं धीरेंद्र शास्त्री?
बागेश्वर धाम के प्रमुख के द्वारा राम और हनुमान कथा कर रहे हैं। इसी दौरान वह दिव्य दरबार भी लगाते हैं। दावा किया जाता है कि पर्ची के जरिए कथा में शामिल होने आए लोगों का नाम निकाला जाता है। जिसकी पर्ची निकलती है, उसे धीरेंद्र शास्त्री अपने पास मंच पर बुलाते हैं। उस व्यक्ति के मंच पर आने से पहले ही धीरेंद्र शास्त्री अपने पास पड़े कागज में उस शख्स की समस्या लिखने का दावा करते हैं। इसके अलावा उसे समाधान भी बताते हैं। लोगों मानना है कि बागेश्वर धाम वाले हनुमान जी की कृपा से लोगों का दुख-दर्द धीरेंद्र शास्त्री दूर कर देते हैं।

बनाना कहते हैं हिन्दू राष्ट्र
धीरेंद्र शास्त्री अपने बयानों को लेकर काफी चर्चा में बने रहते हैं। वह कहते हैं कि भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना उनका संकल्प है। काशी, मथुरा और अयोध्या को लेकर भी कई बयान दे चुके हैं। धीरेंद्र शास्त्री सभी हिंदुओं को एकजुट करने की बात करते हैं। यही कारण है कि धीरेंद्र शास्त्री की कथा से पहले ही लालू यादव के बेटे ने उन्हें चेतावनी दे डाली थी कि अगर वह इस दौरान हिंदू-मुस्लिम की कोई बात करते हैं तो उन्हें इसका सबक सिखाया जाएगा।

बिहार की सियासत पर कथा का असर
कथा की इस सियासत को लेकर बिहार से ताल्लुक रखने वाले संजय ने कहा, ‘बिहार में जातिगत राजनीति काफी हावी है। शुरू से ही बिहार में अलग-अलग जातियों को लेकर राजनीति होती रही है। अलग-अलग जातियों के अपने-अपने नेता बनाये हुए हैं। भाजपा इस जातीय राजनीति को हिंदूवादी राजनीति में बदलने की कोशिश कर रही है। धीरेंद्र शास्त्री की कथाओं में बड़ी संख्या में दलित और पिछड़े वर्ग के लोग भी आते हैं। बिहार में परंपरागत रूप से इन्हें राजद-जदयू जैसी पार्टियों का वोटबैंक माना जाता है। अगर यह वोटर हिंदुत्व के नाम पर एकजुट होता है तो इसका नुकसान इन पार्टियों को सकता है। वहीं, भाजपा को इससे फायदा होगा।’

शास्त्री किसके साथ?
धीरेंद्र शास्त्री उर्फ़ बागेश्वर बाबा पिछले साल नागपुर में एक विवाद के बाद चर्चा में आए थे, उनपर वहां अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगा था। जिसके बाद वह चर्चा का विषय बने हुए हैं। बागेश्वर बाबा दावा हैं कि वो जो कहते हैं असल में वो बालाजी (हनुमान) कहते हैं। छतरपुर के पत्रकार अरविंद तिवारी बताते हैं कि, “हमने देखा है कि बागेश्वर धाम में एक पेड़ और एक मूर्ति के अलावा कुछ नहीं था। वो काफ़ी ग़रीब थे। फिर अचानक साल 2016 में बागेश्वर बाबा कहीं चले गए और साल 2019 में वापस आकर दावा किया कि वो छत्तीसगढ़ के जंगलों में सिद्धि हासिल करने गए थे। अरविंद तिवारी के मुताबिक़ बागेश्वर बाबा दरअसल लोगों के दिमाग़ को पढ़ते हैं और उनके बारे में बताते हैं, लेकिन एक बात सच है कि बागेश्वर बाबा ने कभी किसी से पैसे मांगे नहीं, उनको लोगों ने जो दिया, ख़ुद दिया। वर्ष 2020 के बाद बागेश्वर बाबा की कई बातें लोगों को सच लगने लगी और उनके धाम में भक्तों की भीड़ धीरे-धीरे बढ़ती चली गई। तिवारी के अनुसार इसका फ़ायदा लेने के लिए सबसे पहले कांग्रेस के नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ उनके पास पहुंचे थे। अरविंद कहते हैं कि उसके बाद शिवराज सिंह चौहान समेत कई नेता बागेश्वर बाबा के दरबार में आते रहे हैं। इस तरह से मीडिया और राजनीति ने बागेश्वर बाबा को मशहूर बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है।

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