दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी अब नगर निगम चुनावों में भी ‘झाड़ू’ चलाने को उतावली दिख रही है। मैदान में कांग्रेस भी है, जो चुनाव को त्रिकोणीय मोड़ में लाने तक सीमित होती दिख रही है। पिछले 15 साल से नगर निगम में काबिज भाजपा ने इस बार भी जीत के लिए पुरजोर तैयारी की है। पार्टी ने अपने स्टार प्रचारकां को चुनावी मैदान में उतारा है। जिनमें उत्तराखण्ड के सीएम पुष्कर सिंह धामी मुख्य चेहरा बने हैं। भाजपा धामी की लोकप्रियता को हिमाचल प्रदेश के बाद दिल्ली के एमसीडी दंगल में भी भुनाना चाहती है। मुख्यमंत्री धामी ने एमसीडी चुनाव में जोरदार धमक दिखाई। वहीं दिल्ली की गलियों में घूम धुआंधार प्रचार कर उत्तराखण्डी प्रवासियों के साथ ही अन्य नागरिकों को भी भाजपा के पक्ष में खड़े रहने के लिए अपील करते नजर आए। उनकी चुनावी सभाओं में जिस प्रकार उत्तराखण्डी प्रवासियों का जनसैलाब उमड़ा उससे पार्टी को उम्मीद है कि धामी के प्रभाव से पहाड़ी प्रवासी उनकी ओर आकर्षित होंगे। देखना यह होगा कि एंटी इन्कम्बेंसी के बावजूद दिल्ली के दंगल में धामी की कितनी धूम मचेगी
हिमाचल विधानसभा चुनाव में प्रचार करने के बाद दिल्ली नगर निकाय चुनाव में भी भाजपा आलाकमान ने उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह को उतारा। मुख्यमंत्री धामी ने दिल्ली दंगल में एक सप्ताह से ज्यादा समय तक गली-गली घूमकर मतदाताओं को पार्टी की तरफ मोड़ने का काम किया। दिल्ली में देवभूमि के सीएम को सुनने के लिए उमड़ी भीड़ ने यह दर्शा दिया कि मुख्यमंत्री धामी वहां भी खूब लोकप्रिय हैं। हालांकि दिल्ली के दंगल में धामी की धूम का बूम कैसा रहा यह तो आगामी 7 दिसंबर को ही पता चलेगा। जब इस दिन एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) के चुनाव परिणाम सामने आएंगे। आपको बता दें मुख्यमंत्री दिल्ली में भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में अब तक दर्जनों जनसभाओं, कई रोड-शो व डोर-टू-डोर जनसंपर्क अभियान कर चुके हैं। भीड़ जुटाने के मामले में धामी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पर भारी रहे हैं। देखना यह होगा कि वोट जुटाने के मामले में भी उनका जादू चला है या नहीं?
भाजपा को उम्मीद है कि धामी का दिल्ली के पहाड़ी प्रवासी मतदाताओं में गहरा असर हुआ है। शायद यही वजह है कि दिल्ली में पहाड़ी प्रवासियों के मत के मामले में भाजपा सबसे ज्यादा आशान्वित है। अगर इस चुनाव में मुख्य पार्टी भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के द्वारा पहाड़ी मूल के लोगां को टिकट देने की बात करें तो भाजपा सबसे अव्वल रही है। भाजपा ने सबसे ज्यादा पहाड़ी मूल के लोगों को टिकट दिया है। भाजपा ने 9 टिकट देकर पहाड़ी प्रवासियों का मन जितने का प्रयास किया है जबकि आम आदमी पार्टी ने केवल दो टिकट तो कांग्रेस ने महज एक ही टिकट पहाड़ी मूल के उम्मीदवार को दिया है। जबकि एक टिकट जेडीयू ने भी दिया है।
भाजपा जिन पहाड़ी मूल के उम्मीदवारों को टिकट दिया है उनमें दिलशाद गार्डन से वीर सिंह पवार, गीता कॉलोनी से नीमा भगत, सादकपुर से नीतू बिष्ट, विनोद नगर से रविंद्र सिंह नेगी, अमन विहार से नरेंद्र मनराल, बुराड़ी से रेखा रावत, आरकेपुरम से तुलसी जोशी, पांडव नगर से यशपाल कैंथुरा आदि हैं। जबकि आम आदमी पार्टी बुराड़ी से रूबी रावत और विनोद नगर से कुलदीप भंडारी को टिकट दिया है। भंडारी प्रॉपर्टी डीलर हैं। साथ ही उन्हें आम आदमी पार्टी ने गढ़वाली-कुमाऊंनी-जौनसारी अकेडमी दिल्ली का उपाध्यक्ष बनाकर दर्जा राज्यमंत्री का दिया हुआ है। भंडारी से पहले इस पद पर आम आदमी पार्टी ने लोक गायक हीरा सिंह राणा तथा उसके बाद एमएस रावत को आसीन किया। इसके अलावा कांग्रेस ने सिर्फ एकमात्र मयूर विहार फेस-2 सीट पर पहाड़ी मूल के उम्मीदवार हीरा सिंह रावत को टिकट दिया। जेडीयू ने सादुलजमा से संजय नेगी को मैदान में उतारा। अगर निर्दलीयों की बात करें तो चार सीटों से पहाड़ी मूल के उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं। जिनमें कोंडली से भगवती महरा, विनोद नगर से बबली ममगाई, मोलड़बंद बदरपुर से गुड्डू रावत तो आया नगर से पूजा ढौंढियाल मैदान में हैं।
भाजपा ने इस चुनाव में रविंद्र सिंह नेगी जैसे चर्चित चेहरे पर भी दांव लगाया है। रविंद्र सिंह नेगी उस दौरान चर्चा में आए थे जब साल 2020 में दिल्ली के विधानसभा चुनाव हुए थे। इस चुनाव में रविंद्र सिंह नेगी भाजपा के टिकट पर पटपड़गंज विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे। तब नेगी के सामने आम आदमी पार्टी के मनीष सिसोदिया चुनावी मैदान में थे। रविंद्र सिंह ने सिसोदिया को इस चुनाव में कड़ी टक्कर दी थी। तब महज 2000 वोटां के अंतर से ही सिसोदिया यह सीट बचा पाए थे।
यहां यह भी बताना जरूरी है कि पिछले चुनाव के समय दिल्ली में 272 वार्ड थे। लेकिन नया परिसीमन लागू होने के बाद इन वार्डों की संख्या 250 हो गई है। जहां पहले दिल्ली नगर निगम तीन भागों में था तो वहीं अब यह एक हो गया है। जिससे अब एमसीडी में तीन मेयर नहीं बल्कि एक मेयर ही होगा। पिछले 2017 के एमसीडी चुनावों की बात की जाए तो भाजपा ने मनोज तिवारी के नेतृत्व में शानदार प्रदर्शन किया था। इसके अलावा कांग्रेस की कमान उस समय अजय माकन के हाथों में थी। लेकिन पार्टी कुछ ही सीटों पर अपनी जीत हासिल कर पाई थी। 2017 में हुए दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भाजपा ने जीत की हैट्रिक लगाई थी। इस चुनाव में भाजपा ने 181 सीटों पर जीत दर्ज करके पिछले 2 चुनावों की जीत बरकरार रखा। वहीं उस चुनाव में दूसरे नंबर पर रही आप को 48 सीट और कांग्रेस को 30 सीट मिली थी। इसके अलावा 11 सीट अन्य के खाते में गई थी। हालांकि भाजपा के स्टार प्रचारकों में जिस तरह उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हैं उसी तरह मनोज तिवारी भी हैं। मनोज तिवारी इस समय दिल्ली की नॉर्थ ईस्ट से भाजपा के सांसद भी हैं।
इस तरह देखा जाए तो बीते डेढ़ दशक से दिल्ली के नगर निगमों पर भाजपा का कब्जा है। अब तक न तो कांग्रेस और न सत्ताधारी ‘आप’ ही इस तिलिस्म को तोड़ पाई है। उल्टा चुनाव दर चुनाव इन दलों को मुंह की ही खानी पड़ी है। यह चुनाव सीधे जमीन से जुड़े होने के कारण इसके मायने भी स्पष्ट हैं कि दिल्ली में भाजपा ने जड़ से जुड़कर काम किया है और आज भी जनता के दिलों पर राज कर रही है।
लेकिन इस बार के नगर निगम चुनाव में यूं तो मुख्य मुकाबला भाजपा और आप में ही है लेकिन कहीं-कहीं कांग्रेस भी त्रिकोणीय स्थिति बनाए हुए है। इस बार भाजपा का कब्जा तोड़ने को आम आदमी पार्टी जी-तोड़ मेहनत कर रही है। उसे इसमें सफलता भी मिलती दिख रही है। दिल्ली की जनता का आम आदमी पार्टी की तरफ आकर्षित होने का कारण 15 साल की एंटी इन्कम्बेंसी भी एक है। इसके अलावा कोरोना काल के दौरान केंद्र सरकार की लापरवाहियों को दिल्ली की जनता भूली नहीं है। महंगाई ने जनता की कमर तोड़ दी है जो भाजपा के खिलाफ होने का महत्वपूर्ण कारण बनता दिखाई दिया है। इस चुनाव में जिस तरह से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गंदगी के ढेरों को सामने रख कर भाजपा पर सियासी तीर चले वह भी निशाने पर लगते दिखाई दिए हैं। एमसीडी में ज्यादातर कर्मचारियों की संख्या सफाई कर्मचारियों और क्लास फोर के कर्मियों की है। जिनको पिछले कई महीनों से वेतन आदि नहीं मिले थे। क्योंकि एमसीडी केंद्र सरकार के अधीन है इसके चलते भी इस वर्ग के मतदाताओं में भाजपा के प्रति आक्रोश है जो चुनावों में सामने आ सकता है।
पूर्व में प्रवासी पहाड़ी समुदाय भाजपा का मुख्य वोट बैंक रहा है। लेकिन इस बार यह वोट बैंक भी भाजपा से खिसकता नजर आ रहा है। हालांकि भाजपा ने इसको बचाए रखने के लिए ही सबसे ज्यादा पहाड़ी उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं। लेकिन इस वर्ग का मानना है कि दक्षिणी दिल्ली और नजफगढ़ जिले में समुदाय से आने वाले व्यक्ति को टिकट देकर ज्यादा बेहतर सम्मान दिया जा सकता था। लेकिन भाजपा ने ऐसा नहीं किया। आपको बता दें कि इन क्षेत्रों में भी प्रवासी पहाड़ी समुदाय जीत-हार को तय करने का दम रखते हैं। दिल्ली में पहाड़ी प्रवासी मतदाताओं की संख्या दस से पंद्रह लाख के बीच बताई जाती है। दिल्ली की सत्तर सीटों में से पच्चीस सीटों को पहाड़ी प्रवासी प्रभावित करते हैं। इनमें विनोद नगर, बुराड़ी और पालम विधानसभा सीटों पर पहाड़ी प्रवासी मतदाता उलट-फेर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दिल्ली में पहाड़ी मूल के एक मात्र विधायक मोहन सिंह बिष्ट हैं जो करावल नगर सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते हैं।
दिल्ली नगर निगम चुनावों में भाजपा को टक्कर देने के लिए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जुटे हैं। लेकिन उत्तराखण्ड से इन दलों के कोई बड़े नेता यहां चुनाव प्रचार को नहीं पहुंचे। कारण यह कि उत्तराखण्ड में कांग्रेस पार्टी पिछले दो विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों से करारी शिकस्त झेलती आ रही है। वहीं, आम आदमी पार्टी ने भी उत्तराखण्ड के विधानसभा चुनावों में पहली बार एंट्री की थी। लेकिन वहां वह औंधे मुंह गिरी थी। वैसे भी आम आदमी पार्टी के पास उत्तराखण्ड में कोई ऐसा बड़ा चेहरा नहीं था जिसे दिल्ली के दंगल में उतारा जाता।