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‘हर दृष्टि से विफल है धामी सरकार’

 

अविभाजित उत्तर प्रदेश सरकार में पर्वतीय विकास मंत्री रहे दिग्गज कांग्रेसी नेता स्व. गोविंद सिंह माहरा के पुत्र करण माहरा रानीखेत विधानसभा सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं। गत विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद अप्रैल 2022 में उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस की कमान युवा नेता करण माहरा को सौंपी गई। माहरा वरिष्ठ नेताओं के मध्य मतभेदों की बात खुले मन से स्वीकारते हैं। उनका मानना है कि केंद्रीय संगठन द्वारा नियुक्त प्रभारी देवेंद्र यादव पर पूर्व मंत्री प्रीतम सिंह द्वारा लगाए जा रहे आरोप निराधार हैं। वे भाजपा सरकार को भ्रष्टाचार और विफल सरकार करार देते हुए आगामी लोकसभा चुनाव में पांचों सीट जीतने का दावा करते हैं। राज्य की राजनीति, कांग्रेस संगठन की आंतरिक रार और धामी सरकार के कार्यकाल पर माहरा से रोविंग एसोसिएट एडिटर आकाश नागर की विस्तृत बातचीत

आपको प्रदेश अध्यक्ष बने ग्यारह माह का समय बीत गया है, कैसा रहा आपका यह सफर?
हम ग्यारह महीने से लगातार काम कर रहे हैं। प्रदेश की जो भी ज्वलंत समस्याएं हैं उनको उठाते रहे हैं और आंदोलनरत रहे हैं। चाहे अंकिता भंडारी मर्डर केस हो, चाहे युवा बेरोजगारों से संबंधित मामले हो, चाहे वह पेपर लीक का हो या फिर हाकम सिंह वाला मामला हो। कांग्रेस ने लगातार आंदोलन किए और जब बेरोजगारों पर लाठी चार्ज हुआ तो सात दिन तक लगातार सक्रिय रहे। 9 अगस्त से लेकर 15 अगस्त तक ‘तिरंगा यात्रा’ निकाली। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और वर्तमान में चल रहे ‘सत्याग्रह आंदोलन’ सभी में कांग्रेस लगातार फ्रंट फुट पर है। आज भी हमने एक कार्यक्रम लॉन्च किया है ‘आज की चिट्ठी’। यह 20 अप्रैल तक लगातार चलेगा। जिसमें देश से संबंधित ज्वलंत मुद्दे को प्रत्येक दिन चिट्ठी के माध्यम से उठाएंगे। इस तरह प्रत्येक दिन हम एक चिट्ठी प्रधानमंत्री को लिख रहे हैं जो राज्य से संबंधित विषय होंगे, उसकी चिट्ठी मुख्यमंत्री को लिखी जाएगी। इसके अलावा ‘चाय पर चर्चा’ 5 अप्रैल से चल रही है जिसमें 200 नेताओं को यह जिम्मेदारी दी गई है। हर दिन कम से कम 10 नुक्कड़ पर चाय पर चर्चा की जाएगी। जिसमें जनता के सामने वे मुद्दे रखे जाएंगे जो राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में उठाए थे। इसी के साथ- साथ घर में कितने बेरोजगार बच्चे हैं उनके रोजगार के विषय में बातचीत होगी। अंकिता भंडारी केस को बीजेपी ने जिस तरीके से मिस हैंडेल किया। भाजपा की महिला विंग अंकिता भंडारी केस में पूरी तरह से गायब हो गई। वे इस मुद्दे पर सामने ही नहीं आई उस विषय पर चर्चा होनी है। हम ऐसे सभी मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि ये सभी विषय पब्लिक डोमेन में जाए। उपलब्धि के तौर पर मैं यही कहूंगा कि 2022 के चुनाव के बाद मैं लोगों को घरों से निकालने में कामयाब रहा हूं। दूसरी पंक्ति के जो हमारे लीडर है इस प्रदेश के, मैं उनको उभारने में, जगह देने में, मैं कामयाब रहा हूं और सेकेंड लीडरशिप बहुत मजबूती से दिखाई देने लगी है।

लेकिन कांग्रेस की राजनीति में देखने में आ रहा है कि जो सेकेंड लीडरशिप के साथ कम्युनिकेशन होना चाहिए था और फर्स्ट लीडरशिप का जैसा मार्गदर्शन मिलना चाहिए था वह मिलता नहीं दिखाई दे रहा है?
हमारे बुजुर्ग नेता हमें सहयोग कर रहे हैं। केवल महत्वाकांक्षी कुछ लोग ऐसे हैं जिनको पार्टी के कार्यक्रमों की मेहनत रास नहीं आ रही है। अभी तक यह था कि साल में एक-दो कार्यक्रम कर दिए तो काम चल लिया, साल में एक दौरा कर लिया तो बहुत है। लेकिन अब यहां एक परिवर्तन आया है। राहुल गांधी की 4000 किलोमीटर की यात्रा से नौजवान उत्साहित हैं और सब लड़ाई लड़ रहे हैं। अब देखिए बीते 11 महीने में जितने प्रोग्राम हुए हैं शायद 5 सालों में भी उतने नहीं हुए। युवा सड़कों पर लड़ रहे हैं, हकों के लिए, हकूक के लिए, अधिकारों के लिए कांग्रेस उनका साथ दे रही है। 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग साथ खड़े हैं। कुछ लोग हर पार्टी में होते हैं, कुछ लोग यहां भी हैं जिनको अच्छी चीजें नहीं दिखाई दे रही है।

पुरानी लीडरशिप में सिर्फ एक हरीश रावत जी ही दिखाई देते हैं जो सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरते हैं, लड़ते हैं, भिड़ते हैं और लाठियां खाते हैं और बाकी के जो नेता हैं वो क्यों नहीं दिखाई देते हैं?
गणेश गोदियाल जी भी सक्रिय हैं, प्रीतम सिंह जी भी यदा- कदा हमारे प्रोग्राम में दिखाई देते हैं। लेकिन हां, मैं ये जरूर कहूंगा कि जब पार्टी कार्यक्रम तय करती है तो बड़े नेताओं को हमें आशीर्वाद देना चाहिए। ‘अच्छा कर रहे हो बेटा’, ‘ये कर लो-वो कर लो’ और कुछ सुझाव देते रहना चाहिए।

क्या बात है कि कांग्रेस की आंतरिक रार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है? प्रीतम सिंह पार्टी प्रभारी देवेंद्र यादव के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। उनके खिलाफ दिल्ली में शिकायत तक कर रहे हैं?
मैं इस पर एक चीज पूछना चाहता हूं जो हमारे प्रभारी हैं वह खुद तो प्रभारी नहीं बने हैं? हाईकमान ने उन्हें बनाया है। मेरे पास एक वीडियो भी है जिसमें प्रीतम सिंह जी चुनाव से पहले उनके प्रबंधन की, उनकी मेहनत की तारीफ कर रहे थे। चुनाव परिणाम आने के बाद आखिर ऐसी बात क्यों होने लगी। इसमें आखिर यादव जी का क्या स्वार्थ है? वह यहां से चुनाव तो लड़ने वाले नहीं हैं। उसके बावजूद वह लगातार संपर्क में हैं। अंकिता भंडारी केस में उन्होंने हमें पूरी तरह से गाइड किया कि आखिर कैसे वकील के पास जाना है, क्या-क्या तरीके उठाने हैं हमें, फॉरेंसिक जांच के लिए क्या कहना है, हमको ये सब उनकी गाइडेंस थी। जोशीमठ के मामले में वे खुद आए। जोशीमठ भी गए, कर्णप्रयाग भी गए। वहां जो बहुगुणा नगर टूट रहा है उसको भी उन्होंने देखा। दिल्ली में खड़गे साहब ने जो प्रेस में मामले दिए गए उनमें भी यादव जी की बड़ी भूमिका थी। उसके बाद यहां जो लगातार युवाओं के आंदोलन चले उसमें भी देवेंद्र यादव जी हमें लगातार गाइड कर रहे थे। आज हमारा 24 घंटे का कंट्रोल रूम है। रोज 10 से लेकर 5 बजे तक कंट्रोल रूम चलता है। पहली बार हो रहा है जब ब्लॉक अध्यक्ष से हर दूसरे दिन यहां से कॉन्टेक्ट होते हैं। यह पहली बार हो रहा है कि जो जिला अध्यक्ष हैं उन्हें रोजाना यहां से फोन होते हैं, उनको कार्यक्रम बताए जाते हैं, उनको टास्क दिए जा रहे हैं। उन्होंने क्या किया उनसे सब पूछा जा रहा है। ये सब देवेंद्र यादव जी ही तो करवा रहे हैं। वे मुझे निर्देश देते हैं, मैं उनका पालन करता हूं। आखिर नाराजगी किस बात की है? जब तक हरीश रावत जी का नाम मुख्यमंत्री के रूप में एनाउंस नहीं हुआ तब तक आप खुश थे लेकिन चुनाव के नतीजे निगेटिव आ गए क्योंकि शीर्ष नेतृत्व ने ऐसे बयान उस समय दिए जिससे आती हुई सरकार रह गई। सारा कुछ कांग्रेस के पक्ष में होने के बाद भी सरकार कांग्रेस की नहीं बनी। केवल बड़े नेताओं के बयानों की वजह से और आज भी ऐसे बयान नहीं रुक रहे हैं जिसका मुझे बहुत दुख है। लेकिन ये सारी चीजें मेरे कंट्रोल में नहीं है। मैं तो केवल बड़े नेताओं से निवेदन ही कर सकता हूं कि सार्वजनिक बयानबाजी न करें, इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है।

जिस प्रदेश प्रभारी के नेतृत्व में कांग्रेस को जीत मिलते-मिलते रह गई, क्या आपको नहीं लगता कि बड़े नेताओं को ऐसे प्रदेश प्रभारी पार्टी पर बोझ नहीं लग रहे होंगे?
देखिए, 2017 की विधानसभा चुनाव में पार्टी के 11 विधायक थे और अब 19 हो गए हैं। क्या ये विधायक कम हुए? नहीं बढ़े ही हैं। और दूसरा हमको ये हमेशा देखना चाहिए कि इससे प्रभारी की गलती कहां हैं? प्रभारी ने तो निगेटिव बयान नहीं दिए। जिन लोगों ने चुनाव से ठीक पहले मीडिया में बयान दिए ये प्रश्न तो उनसे होने चाहिए थे। उसका ठीकरा हम प्रभारी पर कैसे फोड़ सकते हैं? और प्रभारी का रहना न रहना ये तो हाईकमान का मामला है। हाईकमान जब तक प्रभारी से कहेंगे तब तक ही वे काम करेंगे। हाईकमान जिस दिन कहेगा कि आप यहां से हटकर किसी दूसरी जगह जाइए तो वो वहां जाएंगे। ये करण माहरा के स्तर पर होने वाली चीजें नहीं हैं और न ही प्रभारी के स्तर पर होने वाली चीजें हैं। ये तो हाईकमान तय करता है कि कब तक किससे कहां काम लेना है। मेरी नजर में देवेंद्र यादव एक सफल प्रभारी हैं और बहुत सहनशील हैं। जिस तरह की बातें उनके लिए हमारे यहां से कही जाती है उसके बावजूद भी वो हमको रोज गाइड कर रहे हैं, काम करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। ऐसी सहनशीलता बहुत कम लोगों में देखने को मिलती है।

यह वही प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव हैं जिन पर विधानसभा चुनाव में पैसे लेकर टिकट आवंटित कराने के आरोप भी लगे थे?
मेरे सामने ऐसी कोई बात नहीं आई। अगर किसी कैंडिडेट ने पैसे देकर टिकट लिया होता तो ऐसी बातें बाहर जरूर आ जातीं। मेरी नजर में तो ऐसा कोई मामला नहीं है।

अभी फिलहाल का जो पार्टी में कलह का मामला है वह किच्छा के विधायक तिलकराज बेहड़ का है जो जिला अध्यक्ष की नियुक्ति से नाराज हैं। जिला अध्यक्ष की नियुक्ति में उनकी राय नहीं लेना किस ओर इशारा करता है। वह अपनी शिकायत लेकर दिल्ली भी गए ऐसी चर्चा है?
दिल्ली तो वे अपने रूटीन चेकअप के लिए गए हैं, उनका आपॅरेशन हुआ है। स्थानीय भाजपा सांसद अजय भट्ट उनसे मिलने गए थे। इसको लेकर लोगों ने चर्चा बनाई है। उनकी जो नाराजगी है उसमें मुझे सिर्फ यही कहना है कि यशपाल आर्य जी उसी जनपद के विधायक हैं और वो हमारे नेता प्रतिपक्ष भी हैं। जनपद की नियुक्ति जो है उन्हीं की संस्तुति पर हुई है। मेरे लिए यह संभव कहां है कि मैं सभी की राय को एकोमोडेट कर सकूं। वहां 5 विधायक हैं अधिकतर की राय इन्हीं जिला अध्यक्ष के पक्ष में थी इसीलिए उनको जिला अध्यक्ष बनाया गया। तिलकराज बेहड़ जी के कहने पर हमने उनके पीसीसी मेंबर बनाए, उनके कहने पर ब्लॉक अध्यक्ष बनाए। पार्टी के अंदर एकजुट रहना ही बेहतर रहता है मेरा यह मानना है। जो भी नाराजगी है उसे आपस में बैठकर सुलझा लेना चाहिए।

बेहड़ के भाजपा में जाने की बातें चल रही हैं, कहां तक सच है?
यह सिर्फ कयासबाजी है। मैं भी भाजपा के लोगों से मिलने जाता हूं तो ऐसी चर्चाएं चल जाती हैं। व्यक्तिगत संबंध अपनी जगह होते हैं। इसका यह मतलब नहीं कि मैं बीजेपी में जा रहा हूं या वे मेरे साथ कांग्रेस में आ रहे हैं। मित्रता भी होती है, जान-पहचान भी होती है। खासकर जब किसी का किडनी का ऑपरेशन हुआ हो और कोई उनसे मिलने जाए उसका तात्पर्य ऐसा नहीं लगाना चाहिए।

प्रदेश की धामी सरकार ने एक साल पूरा कर लिया है। सरकार अपनी एक साल की ‘एक साल नई मिसाल’ के तौर पर मना रही है। आपका क्या कहना है इस बारे में, सरकार सफल है या विफल?
पूरी तरह विफल सरकार है। आबकारी नीति में जिस तरीके से हुआ उससे सरकार की छवि धूमिल हुई है। एक के बाद एक घोटाले, विधानसभा भर्ती घोटाला, ट्रिपल एससी में जमकर धांधलेबाजी हुई। पहली बार किसी आईएएस अधिकारी ने इस्तीफा देते समय सरकार पर आरोप लगाया कि तीन बार मैंने सरकार को सचेत किया लेकिन अथॉरिटीज ने काम नहीं किया और मुझ पर सफेदपोश नेताओं का दबाव रहा कि मैं जांच न करूं। यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि किसी आईएएस के ऐसा कहने के बाद कि वो उस सफेदपोश नेता का नाम जगजाहिर करे जो हाकम सिंह का पोषक हैं, जो इनके मंगलोर के मंडल अध्यक्ष का पोषक है। चौहान जो इनका पदाधिकारी है, उसका पोषक है जो मंडल अध्यक्ष के बड़े भाई का पोषक था। आखिर वह कौन सफेदपोश नेता है जो इनको सहयोग और सपोर्ट करता है। अंकिता भंडारी मर्डर केस की तो देश ही नहीं विदेशों तक चर्चा हुई। उसने अपनी मृत्यु से पहले जो व्हाट्सअप मैसेज किया उसमें वीआईपी का जिक्र किया है कि वीआईपी को ‘एक्स्ट्रा सर्विस’ देने के लिए मुझ पर दबाव बनाया गया था। लेकिन उसका नाम सार्वजनिक नहीं हुआ। धाकड़ धामी बनने के चक्क्र में बुलडोजर चलवा दिया और होटल में आग लगवा दी। अंकिता का कमरा भी तोड़ दिया और उसका बिस्तर भी स्वीमिंग पुल में डलवा दिया गया। कहां था प्रशासन? कहां थी सरकार? आज तक भी उस वीआईपी का नाम सामने नहीं आया। सरकार ने खुद वक्तव्य दिया कि नारको टेस्ट करा रहे हैं और जब 90 दिन पूरे हो गए तो कह दिया कि नारको टेस्ट के लिए अपराधी तैयार नहीं है। तो कहीं न कहीं सरकार फेलियर है। मुख्यमंत्री को कहना पड़ रहा है कि ‘तेरी फाइल – मेरी फाइल’ के झगड़े खत्म करो और काम करो। इसका मतलब आपकी शासन-प्रशासन में पकड़ नहीं है। आपके अधिकारी आपके कहने पर आपका काम नहीं करते। बीजेपी के प्रवक्ताओं के बयान सुनते हैं कि मुख्यमंत्री तो चाहते हैं लेकिन अधिकारी नहीं चाहते। ऐसा कैसे हो गया कि अधिकारी बेलगाम है तो सवार इसका मतलब बढ़िया नहीं है। घोड़े पर सवार अगर अच्छा हो तो कैसे भी घोड़े को काबू में किया जा सकता है। लगाम कसकर, जीन कसकर रखते तो घोड़ा सही चलता है। खनन में भारी भ्रष्टाचार है, भूमाफिया तंत्र हावी है। जिस प्रदेश में मां-बाप अपनी बेटियों को नौकरी करने के लिए बाहर भेजने में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, बेरोजगार बच्चों के मां-बाप को चिंता हो कि कब मेरे बच्चे पर लाठियां पड़ जाएगी, नौकरी लगेगी या नहीं लगेगी। पटवारी का पेपर लीक हो गया, बोर्ड की परीक्षाएं रद्द हो गईं, एईकी परीक्षाएं रद्द हो गईं, ट्रिपल एससी भर्ती घोटाला हो गया। आखिर कहां सफल हुई सरकार? सरकार का डबल इंजन बुरी तरह से फेल है। आज फॉरेस्ट में क्या हो रहा है। एक अधिकारी हाईकोर्ट से जीतकर आ रहा है, दूसरा सुप्रीम कोर्ट से। सरकार की गलती है। सरकार ने सही समय पर कदम उठाया होता तो अधिकारी आपस में नहीं लड़ रहे होते। कोई हाईकोर्ट, कोई सुप्रीम कोर्ट नहीं जा रहा होता। तो चारों ओर से मुझे सरकार फेलियर दिखाई देती है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश में नकल रोकने के लिए देश का सबसे सख्त नकल विरोधी कानून लागू किया है। इस संबध में आप क्या कहेंगे?
मुझे इस मामले में एक वाकया याद दिलाना है। जब अविभाजित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे तब
राजनाथ सिंह जी शिक्षा मंत्री थे। उस समय पर नकल अध्यादेश लाया गया था, बहुत सख्त था। उसका पालन क्यों नहीं किया गया। प्रदेश में फिलहाल नए कानून की क्या जरूरत थी और नया कानून भी ऐसा बना जिसमें पहला मुकदमा उस लड़के पर दर्ज हुआ जिसने यह शिकायत की थी कि मेरी कॉपी सीलबंद नहीं आई है, हो सकता है उसके साथ छेड़छाड़ की गई हो और जब प्रशासन ने उसकी बात नहीं मानी तो उसने सोशल मीडिया में यह प्रकरण इसलिए डाला कि लोग अवेयर हो जाएंगे। मतलब जिसके घर में चोरी हुई उसी के ऊपर मुकदमा दर्ज करा दिया गया। ऐसा जिसमें नकल करने वाले पर तो अपराध है, पर नकल कराने वाले आरोपी के लिए अपराध की कोई श्रेणी नहीं है। अगर सख्त कानून बनाने से अपराध खत्म नहीं होते हैं तो निर्भया कांड के बाद रेप को लेकर इतना बड़ा कानून बना, क्या बलात्कार रुक गए? आपकी जानकारी में लाना चाहता हूं 2021 की उत्तराखण्ड की क्राइम रिपोर्ट है उसमें कहा गया है कि देवभूमि में हर 24 घंटे में एक महिला का बलात्कार हुआ है। चाहे वह खनन का मामला हो, चाहे अंकिता भंडारी केस के अपराधी हां, चाहे वह पेपर लीक में भाजपा का नेता हाकम सिंह या भाजपा का मंगलौर का मंडल अध्यक्ष हो? आखिर हर अपराध में बीजेपी का ही कार्यकर्ता क्यों इनवॉल्व पाए जा रहे हैं। जनता ने इतना भारी समर्थन दिया है उससे बीजेपी के कार्यकर्ताओं का इतना मनोबल बढ़ गया है कि वे अपराध करने से पीछे नहीं हट रहे हैं।

विपक्ष अक्सर पुष्कर सिंह धामी सरकार पर अवैध खनन कराने का आरोप लगाता रहता है। कहा जा रहा है कि हरिद्वार में तो खनन पर प्रतिबंध है फिर यह अवैध खनन कहां से और कैसे हो रहा है?
एनजीटी ने प्रदेश के सबसे बड़े अधिकारी पर आरोप लगाया है कि उन्होंने अपने पुत्र को खनन के पट्टे दे दिए और क्रशर दे दिया जो नहीं दिया जा सकता है। लेकिन मुख्यमंत्री इस पर एक्शन लेने से डर रहे हैं, क्या कारण है उस अधिकारी को संरक्षण देने के? इसलिए तो ‘तेरी फाइल – मेरी फाइल’ के झगड़े हो रहे हैं। क्योंकि जब आप लाभ लेंगे कर्मचारी और अधिकारियों से तो आप उनके साथ सख्ती से पेश नहीं आ सकते हैं। इस प्रदेश में ऊधमसिंह नगर के पास पहली बार हुआ था जब खनन के मामले में एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह प्रदेश बहुत बुरे हालात से गुजर रहा है। रामनगर के पास की नदी में दो दिन तक कई डंफर रात-दिन बिना रोक-टोक के खनन करते रहे। जब मैंने देहरादून में प्रेस कॉन्फ्रेंस की तब वह रुका। आपने खनन के कानून ही बदल दिए। पहले बहुत मुश्किल होती थी खनन के निजी पट्टे लेना। आपने ऐसा बना दिया कि जिस खनन सामग्री के रेट 30 रुपए कुंतल उसको बहुत कम कर दिया। अपनी ही
सरकारी एजेंसी के रेट कम करने का मामला प्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ है। आज स्थिति यह है कि हल्द्वानी, रामनगर और उसके आस-पास के 40,000 वाहन मालिकों ने अपनी गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन ही नहीं कराए, क्या कारण है इसके? ये सब बातें ऐसी हैं जिसका आने वाला समय जवाब देगा। जो नई सरकारें आएंगी वे इसका हिसाब-किताब लेंगी।

ऊर्जा प्रदेश में ऊर्जा संकट पर आपकी क्या राय है?
ऊर्जा प्रदेश में ऊर्जा के चौथी बार रेट बढ़ गए और दो कंपनियों से बिना एक यूनिट खरीदे ही फ्री में सैकड़ों करोड़ का भुगतान हो रहा है। श्रावंती और अल्पस कंपनी ऐसी है जिन्हें सरकार ने 2 हजार करोड़ के करीब बिना कोई बिजली खरीदे ही भुगतान कर दिए, क्या कारण है? सरकार को क्या लालच है? आपने कॉरपोरेट बिजली दर सरचार्ज लगाना है आप उसी बिजली के पैसे से बिजली यूनिट खरीदते तो कुछ पैसा बचता सरकार का। लेकिन आपने उन दोनों कंपनियों को भुगतान किए पैसे का दंड उपभोक्ता के सिर पर डाल दिया।

नदियों के प्रदेश में कम होती जल आपूर्ति पर आप क्या कहेंगे?
आपने कहा घर-घर नल – घर-घर जल। लेकिन पानी की कोई योजना ही नहीं बनी लेकिन आपने नल लगा दिए ठेकेदारों को काम देने के लिए, गांवों में आठ-आठ दिन तक पानी नहीं आ पाता है और डेढ़ सौ-दो सौ रुपए के बिल आने शुरू हो गए। तो क्या लूटने वाली सरकार नहीं है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि सरकार गन्ना पिरने वाली मशीन लगा गई है जो जनता का खून-पसीना सब चूस-चूसकर निकला रही है। हिंदू-मुसलमान के नाम से लोगों को भांग चटा दी गई है। सरकार को अब न बेरोजगार बच्चे दिखाई दे रहे हैं और न ही महंगाई। न डूबती हुई अर्थव्यवस्था दिखाई दे रही है, न टूटी हुई सड़कें। यूनिवर्सिटी में लेक्चरर और प्रोफेसर नहीं हैं, स्कूल में टीचर नहीं हैं, हॉस्पिटल में डॉक्टर नहीं हैं। ऐसे में कहां जाएगा आम आदमी। कोरोना में मरीजों के लिए वेंटिलेटर खरीदे गए लेकिन जो वेंटिलेटर चला सके ऐसे टेक्निशियंस आपके पास है ही नहीं। जिन लोगों पर आपने कोरोना वरियर्स के नाम पर फूल बरसाए थे आज उनके कॉन्टेक्ट खत्म कर दिए गए, वे सड़कों पर घूम रहे हैं। आज भी सरकार को मजार और मंदिर की फिक्र है लेकिन घर में डिप्रेशन में डिग्री होल्डर बरोजगारों की कोई चिंता नहीं है।

धामी सरकार पहाड़ पर रेल चलाने को अपनी बड़ी उपलब्धि मान रही है, आपका क्या कहना है इस संबंध में?
पहाड़ में जहां तक रेल पहुंचाने का प्रोजेक्ट है इसमें पीठ ठोकने की जरूरत नहीं है। जोशीमठ में जो हुआ है वह ब्लास्टिंग और टनल बनाने से हुआ है। कर्णप्रयाग में 38 मकान जमींदोज होने की कगार पर हैं। ऐसा ही गोपेश्वर, उत्तरकाशी और टिहरी में हो रहा है। यह सब हिमालय दरकने की वजह से हो रहा है। लेकिन सवाल यह है कि हिमालय क्यों दरक रहा है। क्या उसके पीछे टनल और ब्लास्टिंग तो नहीं। इस पर सोचने की जरूरत है। रेल के लिए टनल बने लेकिन कंट्रोल ब्लास्टिंग हो। वैज्ञानिक ढंग से, टनलों का निर्माण हो तो अच्छा होगा। इसके लिए एके एंटनी और सोनिया गांधी को भाजपा को धन्यवाद जरूर देना चाहिए क्योंकि यह रेल का प्रोजेक्ट की आधारशीला उन्होंने रखी थी। उनके समय में ही न केवल पैसा रिलीज हुआ बल्कि सारी कवायदें की गई थीं जिसको हमने चारधाम रोड कहकर शुरू किया उसको उन्होंने ऑल वेदर रोड के नाम से किया है। यह केवल नाम बदलने वाली पार्टी है। ये बने हुए सामान में ‘मेड इन इंडिया’ लिखने वाली पार्टी है, काम करने वाली नहीं।

लोकसभा चुनाव में महज एक साल का समय बचा है। कांग्रेस अब तक संगठित ही नजर नहीं आ रही है। फील्ड में सिर्फ भाजपा के नेता ही दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस नेताओं का कहीं कोई अता-पता नहीं है?
उनके क्योंकि सीटिंग एमपी हैं इसलिए वे फील्ड में दिखाई दे रहे हैं। हमारे यहां अभी पांचों सीटों पर तय नहीं हुआ कि कौन लड़ेगा या कौन नहीं। लेकिन नेता अपने-अपने तरीके से तैयारी कर रहे हैं। गढ़वाल में मनीष खण्डूड़ी, गणेश गोदियाल जी तो हरिद्वार में हरीश रावत जी, हरक सिंह और यशपाल आर्य जी भी दौड़ रहे हैं। नैनीताल में प्रकाश जोशी से लेकर रणजीत रावत सहित कई लोग वहां भी दौड़ रहे हैं। अल्मोड़ा में प्रदीप टम्टा जी के साथ ही यशपाल आर्य भी कई दौरे कर चुके हैं और आशा टम्टा भी मेहनत कर रही हैं। हर सीट पर हमारे नेता जनता से संपर्क साध रहे हैं। टिहरी में प्रीतम सिंह, विक्रम सिंह जी मेहनत कर रहे हैं। हां, सरकार उनकी है तो थोड़ा उनका प्रचार-प्रसार ज्यादा दिखाई दे रहा है।

इस बार आप के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव होंगे तो क्या स्थिति रहेगी?
मैं पहले से बेहतर रिजल्ट दूंगा, इस बात का मुझे पूरा यकीन है। पहले तो हम पांचों सीटों पर कोशिश करेंगे। मुझे इतना भरोसा है कि हम बीजेपी से प्लस में ही रहेंगे। जिस तरह से आदिगुरु शंकराचार्य के बजाय अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर हवाई अड्डे का नामकरण बीजेपी ने किया, उससे सिद्ध हो गया कि शंकराचार्य जी से पार्टी को घृणा है। इससे हिंदू बुद्धिजीवी आहत हुआ है वह बीजेपी की इस चाल को बखूबी समझ रहा है कि सिर्फ चुनाव के समय में हिंदू-मुस्लिम करके वोट बटोरना ही इसका मकसद रहता है। अग्निपथ योजना से पहाड़ी युवाओं में बीजेपी के प्रति बहुत नाराजगी है। गन्ने का समर्थन मूल्य में 50 पैसे तक की बढ़ोतरी नहीं की गई। इन सभी मुद्दों को लेकर ऐसा लगता है कि जनता कांग्रेस के पक्ष में मतदान करेगी।

 

देवेंद्र यादव एक सफल प्रभारी हैं, प्रीतम सिंह स्वयं उनकी प्रशंसा किया करते थे। कुछ महत्वाकांक्षी नेता हमें सहयोग नहीं दे रहे हैं जो हमारे प्रभारी हैं वह खुद तो प्रभारी नहीं बने हाईकमान ने उन्हें बनाया है। मेरे पास एक वीडियो भी है जिसमें प्रीतम सिंह जी चुनाव से पहले उनके प्रबंधन और उनकी मेहनत की तारीफ कर रहे थे। चुनाव परिणाम आने के बाद आखिर ऐसी बात क्यों होने लगी, इसमें आखिर यादव जी का क्या स्वार्थ है? आखिर नाराजगी किस बात की है? जब तक हरीश रावत जी का नाम मुख्यमंत्री के रूप में एनाउंस नहीं हुआ तब तक आप खुश थे लेकिन चुनाव के नतीजे निगेटिव आ गए क्योंकि शीर्ष नेतृत्व ने ऐसे बयान उस समय दिए जिससे आती हुई सरकार रह गई। सारा कुछ कांग्रेस के पक्ष में होने के बाद भी सरकार कांग्रेस की नहीं बनी। केवल बड़े नेताओं के बयानों की वजह से और आज भी ऐसे बयान नहीं रुक रहे हैं जिसका मुझे बहुत दुख है

 

यह सरकार पूरी तरह विफल है। आबकारी नीति में जिस तरीके से हुआ उससे सरकार की छवि धूमिल हुई है। एक के बाद एक घोटाले, विधानसभा भर्ती घोटाला, ट्रिपल एससी में जमकर धांधलेबाजी हुई। पहली बार किसी आईएएस अधिकारी ने इस्तीफा देते समय सरकार पर आरोप लगाया कि तीन बार मैंने सरकार को सचेत किया लेकिन अथॉरिटीज ने काम नहीं किया और मुझ पर सफेदपोश नेताओं का दबाव रहा कि मैं जांच न करूं। एनजीटी ने प्रदेश के सबसे बड़े अधिकारी पर आरोप लगाया है कि उन्होंने अपने पुत्र को खनन के पट्टे और क्रशर दे दिए जो नहीं दिया जा सकता है। लेकिन मुख्यमंत्री इस पर एक्शन लेने से डर रहे हैं, क्या कारण है उस अधिकारी को संरक्षण देने के? इसलिए तो ‘तेरी फाइल – मेरी फाइल’ के झगड़े हो रहे हैं। क्योंकि जब आप लाभ लेंगे कर्मचारी और अधिकारियों से तो उनके साथ सख्ती से पेश नहीं आ सकते हैं। इसलिए चारों ओर से मुझे सरकार फेलियर दिखाई देती है

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