महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजपी नेता देवेंद्र फडणवीस को सुप्रीम कोर्ट के तरफ से आपराधिक मामले की जानकारी छुपाने के मामले बड़ा झटका लगा हैं। उनके ऊपर आरोप है कि वह 2014 के महारष्ट्र विधानसभा चुनाव के हलफनामे में आपराधिक मामले की जानकारी नहीं दिए थे।
ये मुकदमा नागपुर का हैं, जिनमें एक मानहानि और दूसरा ठगी का है। याचिका में फडणवीस को अयोग्य करार देने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसला आने से पहले 20 फरवरी को नागपुर की जिला अदालत में फडणवीस पेश हुए थे। उन्हें वहां पर 15 हजार के पीआर बाड पर जमानत मिल गई थी।
फडणवीस ने अदालत से बाहर आने के बाद कहा, “आज मुझे अदालत ने चुनावी हलफनामे के एक मामले में सम्मन किया था। मैं कोर्ट में हाजिर हुआ और अदालत ने पीआर बांड पर मुझे अगली तारीख दी है और मेरी प्यार बॉन्ड की अर्जी को स्वीकृत किया है। मूल रूप से 93 से 98 के बीच के यह दो कैसे थे और हमने एक झुग्गी झोपड़ी को बचाने के लिए आंदोलन किया था। उस आंदोलन में मेरे ऊपर 2 प्राइवेट केस डाले गए थे। वह कैसे सेटल भी हो गए थे, अब वह केस मेरे पर नहीं है।”
2019 में 1 अक्टूबर को सुप्रीम के तरफ से झटका लगा था। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निचली अदालत उनके खिलाफ दायर मुकदमे को नए सिरे से देखे। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले निरस्त करते हुए कहा था। इसके पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने फडणवीस को इस मामले में क्लीनचिट दे दी थी। कोर्ट ने इस पर पूछा था कि जानकारी जानबूझकर छिपाई गई या गलती से ऐसा हुआ।
बता दें कि फडणवीस पर ये दोनों मुकदमे 1996 और 1998 में दर्ज कराए गए थे। मामले की सुनवाई के दौरान फडणवीस की ओर से कहा गया था कि मुख्यमंत्री और राजनीतिक लोगों के खिलाफ 100 मुकदमे रहते हैं। किसी के चुनावी हलफनामे में नहीं देने पर कार्रवाई नहीं हो सकती। इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता सतीश उइके की वह याचिका खारिज कर दी थी कि जिसमें उन्होंने फडणवीस द्वारा चुनावी हलफनामों में आपराधिक मामलों की जानकारी छुपाने के लिए उनका चुनाव रद्द करने की मांग की थी।