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भारत समेत विश्वभर में लोकतंत्र पर मंडरा रहा है खतरा

लोकतांत्रिक मूल्यों पर काम करने वाली स्वीडन की एक संस्था ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस’ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है। रिपोट ने दुनिया को आगाह करते हुए कहा कि विश्वभर में लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हो रही है। दुनिया में बीते दो वर्षों में चुनावी धांधली या सैन्य तख्तापलट के चलते कम से कम चार लोकतंत्र दुनिया ने खो दिए हैं। संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं को पहल कर नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में  महामारी को नियंत्रित करने के नाम पर कई लोकतांत्रिक सरकारों ने गलत ढंग से कार्रवाई की हैं। इसमें भारत भी शामिल है। साथ ही जिन देेशों का इस रिपोर्ट में जिक्र है उनमें अधिकांश में अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं।

दौर में जब समूची दुनिया महामारी जैसे के बड़े खतरे का सामना कर रही थी उस वक्त उम्मीद तो यह की जा रही थी कि खुद को लोकतंत्र का पक्षधर बताने वाले देश महामारी से बचाव के प्रयासों के साथ लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के काम को और गति देंगे। लेकिन हुआ इसके विपरीत। इस पूरे दौर में मानवाधिकारों का जमकर हनन हुआ। सरकारों ने महामारी की आड़ में विरोधियों का मुंह बंद करने का काम भी खूब किया। गौरतलब है कि जिस संगठन ने यह रिपोर्ट जारी की है, 34 देश उसके सदस्य हैं।

‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस’ ने 1975 से अब तक जमा किए गए आंकड़ों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है। इसके ही आधार पर  कहा गया है कि ऐसे देशों की संख्या लगातार बढ़ रही हैं जहां लोकतांत्रिक मूल्य ख़तरे में हैं।

रिपोर्ट में न्यायपालिका की आजादी के अलावा मानवाधिकार व मीडिया की आजादी जैसे मूल्यों पर भी चर्चा की गई है। वर्ष 2021 में सबसे ज्यादा नाटकीय बदलाव अफगानिस्तान में देखा गया जहां पश्चिमी सेनाओं के विदा होने से पहले ही तालिबान ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। वहीं म्यांमार में 1 फरवरी 2020 को हुए तख्तापलट ने भी लोकतंत्र को ढहते देखा। अफ्रीकी देश माली में तो दो बार सरकार का तख्ता पलटा गया जबकि टयूनीशिया में राष्ट्रपति ने संसद भंग कर आपातकालीन शक्तियां हासिल कर लीं। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सबसे ताकतवर व बड़ा लोकतंत्रवादी देश कहा जाने वाला अमरीका भी लोकतंत्र की रक्षा में पिछड़ रहा।

गौरतलब है की रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा नुकसान हंगरी, पोलैंड, स्लोवेनिया और सर्बिया देशो में हुआ है। यहां लोकतंत्र को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है। तुर्की में वर्ष 2010 से वर्ष 2020 के बीच लोकतांत्रिक मूल्यों में सबसे ज्यादा गिरावट देखी है। रिपोर्ट कहती है कि सच्चाई यह है कि 70 प्रतिशत आबादी ऐसे मुल्कों में रहती है जहां या तो लोकतंत्र है ही नहीं या फिर नाटकीय रूप से घट रहा है।

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