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तेज हुई पॉक्सो एक्ट में बदलाव की मांग

 बाल यौन शोषण पर रोकथाम के उद्देश्य से 2012 में लागू किए गए ‘पॉक्सो एक्ट’ में बदलाव की मांग तेज होने लगी है। इस कानून के दुरुपयोग चलते कई राज्यों की हाईकोर्ट और अब मुख्य न्यायाट्टाीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने तक इस कानून में पुनर्विचार किए जाने का समर्थन कर डाला है

बाल यौन शोषण के मामलों को रोकने के प्रयास में साल  2012 में बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (पॉक्सो एक्ट) को कानून के तौर पर लागू किया गया था। 2019 में इस कानून में संशोधन भी किया गया। लेकिन वर्तमान में यह कानून खुद में ही उलझता नजर आ रहा है और इस पर सवाल भी खड़े किए जाने लगे हैं। अब कानूनी रूप से यौन संबंध बनाने की सहमति की जो उम्र तय की गई है उस पर पुर्नविचार करने की मांग उठने लगी है। बीते दिनों देश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड़ ने भी इस मुद्दे पर अपनी सहमति देते हुए कानून में पुनर्विचार की तरफ इशारा किया था। इससे पहले भी कई राज्यों के हाईकोर्ट में इसकी मांग की गई है। गत माह दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सहमति की उम्र पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि ‘पॉक्सो अधिनियम का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना था। युवा वयस्कों के बीच सहमति से बने यौन संबंधों का अपराधीकरण करना कभी नहीं था।’

गौरतलब है कि न्यायालयों के समक्ष कई बार ऐसे मामले आते हैं जहां नाबालिक लड़का या लड़की अपनी मर्जी से किसी के प्यार में घर छोड़कर भाग जाते हैं या सहमति से एक-दूसरे के साथ यौन संबंध बनाते हैं। ऐसे में परिजनों के एफआईआर दर्ज कराए जाने के बाद यह मामला सुनवाई के दौरान जजों के सामने बड़े सवाल उठ खड़े होते हैं। 18 साल से कम उम्र के बच्चे अगर सहमति से भी संबंध बनाते हैं तो उन्हें कठोर कानूनी कार्यवाही झेलनी पड़ती है। आंकड़ों के अनुसार कोर्ट के सामने अधिकतर मामले ऐसे आते हैं जहां 16 से 18 साल की उम्र की लड़की या लड़का अपनी मर्जी से यौन संबंध बनाते हैं। इसलिए सहमति की उम्र पर एक बार फिर विचार करने की मांग अब उठने लगी है।

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक मामले पर सुनवाई के करते हुए महिला द्वारा कथित तौर पर एक व्यक्ति पर लगाए गए रेप के आरोप को गलत बताते हुए आरोपी को पॉक्सो एक्ट के आरोप से जमानत दे दी। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ‘‘इन दिनों कानून के पक्षपाती रवैये के कारण पुरुषों के साथ बहुत अन्याय हो रहा है’’।

सहमति से यौन संबंट्टा की उम्र घटाए जाने की मांग
महिलाओं द्वारा यौन अपराध का झूठा मामला दर्ज कराये जाने का ऐसा ही एक मामला  पिछले महीने बॉम्बे हाई कोर्ट के सामने भी आया। जहां एक 25 वर्षीय लड़के पर 17 साल 8 महीने की लड़की ने सहमति से यौन संबंध बनाये और उसके बाद  पारिवारिक दबाव के कारण उस पर जबरन संबंध बनाने का मुकदमा दर्ज करा दिया। जिस पर फैसला सुनाते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि भारत में सहमति से यौन  संबंध बनाने की उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दी जानी चाहिए।

इस मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने यह बात भी कही थी कि सहमति से यौन संबंध बनाने की आयु वर्ष 1940 से 2012 तक 16 वर्ष थी। लेकिन साल 2012 में लागू किए गए पॉक्सो एक्ट के बाद इस सहमति से संबंध बनाने की उम्र को 16 से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया गया। बॉम्बे हाई कोर्ट का कहना था कि सहमति से संबंध बनाने की उम्र को शादी की उम्र से अलग किया जाना चाहिए। क्योंकि यौन कृत्य केवल शादी के दायरे में नहीं होते हैं।

भारतीय कानून के अनुसार शादी के लिए लड़कियों की उम्र 18 वर्ष और लड़को के लिए 21 वर्ष निधारित की गयी है जबकि पॉक्सो कानून के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु वाले किशोरों को बच्चा माना गया है। इसको इस तरह से समझा जा सकता है कि  यदि कोई  20 वर्ष का लड़का 17 वर्ष की लड़की के साथ सहमति से यौन संबंध बनाता है तो लड़की की नजर में भले ही वो सहमत हो लेकिन कानून की नजर में वो सहमति नहीं है। इसलिए लड़के को यौन अपराध का दोषी मानकर उसपर कानूनी कार्यवाही की जाएगी। जिसे देखते हुए अदालत ने यौन संबंधों की उम्र को लेकर कहा कि अब समय आ गया है कि हमारा देश दुनिया भर में होने वाली घटनाओं से अवगत हो। पॉक्सो अधिनियम किशोरावस्था में लड़का-लड़की के प्रति स्वाभाविक भावनाओं को नहीं रोक सकता है, लेकिन एक ऐसे लड़के को दंडित करना जो अपने यौवन आरंभ परिवर्तनों के कारण एक नाबालिग लड़की के साथ सहमति से संबंध बनाता है,, ‘बच्चे के सर्वोत्तम हित’ के खिलाफ होगा।

मट्टय प्रदेश उच्च न्यायालय की राय
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि सहमति से बनाए गए शारीरिक  संबंध की उम्र घटाकर 16 वर्ष की जाए। दरअसल, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष 2020 में कोचिंग क्लास के शिक्षक का नाबालिक लड़की से बलात्कार का मामला आया था। इस मामले की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने जून 2023 में अपना फैसला सुनाया था। उच्च न्यायालय ने दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद अपने फैसले में कहा कि मामला फर्जी है। लड़के ने लड़की के साथ सहमति से यौन संबंध बनाये थे। इसके साथ ही राहुल की प्राथमिकी रद्द करने का  आदेश भी दे दिया। प्राथमिकी रद्द करने का आदेश देने के बाद न्यायाधीश ने लड़कियों के लिए यौन सहमति की उम्र का मुद्दा उठा कहा कि 14 वर्ष का हर लड़का-लड़की सोशल मीडिया को लेकर जागरूक हैं। उन्हें इंटरनेट की सुविधा भी आसानी से उपलबध है। ये बच्चे कम उम्र में यौवन आरंभ का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं और यौवन आरंभ की वजह से ये एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। जिसका नतीजा ये होता है कि वे सहमति से शारीरिक संबंध बना लेते हैं।
बात अपनी-अपनी
पॉक्सो एक्ट 18 साल से कम उम्र  के सभी लोगों को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है। जब शुरुआत में इस एक्ट को ड्राफ्ट किया गया था तब इसमें एक धारा जोड़ी गई थी कि 15 से 18 साल के बच्चों की सहमति मैटर करेगी और अगर किसी मामले में उनकी सहमति है तो उसे अपराध नहीं माना जायेगा। लेकिन फिर एक्ट बनने से पहले इसे संसद की संयुक्त समिति के पास विचार विमर्श के लिए रखा गया। इस समिति ने छूट का प्रावधान हटा दिया और उसके बाद यह एक्ट इस रूप में सामने आ गया जिसमें किसी प्रकार की कोई छूट नहीं है। इसमें विडंबना इसलिए आती है कि जैसे 17 साल 11 महीने में जो घटनाएं होती हैं उसमें सहमति नहीं मानी जा सकती क्योंकि वो नाबालिग है और 18 साल एक महीने की उम्र में जो मामले होते हैं उसमें सहमति को मान्यता दी जाती है। दूसरी बात ये है कि 80 प्रतिशत मामले ऐसे होते हैं जहां पीड़ित खुद रिपोर्ट नहीं करता है। जब सामाजिक रूप से बच्चे के माता-पिता को ऐसी जानकारी मिल जाती है कि इस प्रकार का कोई रिश्ता चल रहा है तो उसके बाद एफआईआर होती है परिवार की इज्जत की वजह से न की किसी अपराध का शिकार होने की वजह से। एफआईआर समाज के दबाव की वजह से क्योंकि किसी बच्चे का किसी के साथ ऐसा संबंध होता है तो जब घर वालों को पता चलता है और घर वाले तेज हुई पॉक्सो एक्ट में बदलाव की मांग के तहत रिपोर्ट लिखवाते हैं न की वो लिखवाती है और कई मामलों में ऐसा भी होता है कि कोर्ट में जब मुकदमा चलता है तो गवाही के दौरान लड़की ही कह देती है कि मेरा संबंध मेरी सहमति से ही बना था लेकिन उसके बाद भी उस व्यक्ति पर कानूनी  कार्रवाई होती है। क्योंकि इस कानून की धारा 29 के तहत अगर किसी ने एक बार बयान दे दिया है तो माना जाएगा की वो सच है। उसमें बाकी सबूतों की जरुरत नहीं होती। ये कानून बहुत सख्त है। ऐसे में सहमति उम्र घटाने के साथ ही इसमें और भी परिवर्तन की जरूरत है।
दुष्यंत मैनाली, वरिष्ठ अधिवक्ता नैनीताल हाईकोर्ट 

जहां तक मैं समझती हूं इस बात को केवल एक तरीके से नहीं देखा जा सकता है। कुछ मामले ऐसे जरूर आए हैं जिनमें लड़कियों ने सहमति देकर बाद में असहमति दर्ज की है या अपने फायदे के लिए केस किया है पर इन घटनाक्रमों को अपवाद के रूप में देखा जाना चाहिए। पॉक्सो दरअसल बच्चों के यौन शोषण से बचाव का कानून है। भारत जैसे बड़े देश में जहां बाल-विवाह अभी भी बहुत प्रचलित है, सेक्स करने की उम्र को कम करना इस विवाह को और अधिक बल दे सकता है। साथ ही अठारह वर्ष से कम उम्र के लोगों के साथ होने वाली रेप सरीखी घटनाएं सहमति सेक्स के तौर पर हेरफेर की जा सकती हैं। आसाराम का मामला इस बाबत बहुत पुष्ट उदाहरण है, जहां सजा केवल पॉक्सो के होने की वजह से मिल पाई थी। मेरे हिसाब से पॉक्सो कानून भारत की वर्तमान व्यवस्था और स्त्रियों के साथ हो रहे अपराधों को देखते हुए पूरी तरह दुरुस्त है। उम्र कम करना नाबालिग लड़कियों के साथ होने वाले यौन अपराधों को कानून की दबिश से बचने का रास्ता दे देगा।
अणु शक्ति सिंह, युवा रचनाकार एवं पत्रकार

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