केंद्र की मोदी सरकार जातिगत जनगणना के विरोट्टा में है तो दूसरी तरफ बिहार में भाजपा की सहयोगी पार्टी जदयू के प्रमुख नीतीश सरकार जातिगत जनगणना कराने की जिद पर अड़े हैं। यहां तक कि सीएम नीतीश ने राज्य स्तरीय जाति आट्टारित जनगणना पर काम शुरू करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने का फैसला लिया है
देश की राजनीति गलियारों में एक बार फिर जातिगत जनगणना को लेकर सियासत तेज हो गई है। इसको लेकर एक ओर जहां केंद्र की मोदी सरकार जातिगत जनगणना के विरोध में है, वहीं दूसरी तरफ बिहार में बीजेपी के समर्थन से चल रही नीतीश सरकार जनगणना कराने की जिद पर अड़ी है। यहां तक कि सीएम नीतीश कुमार ने राज्य स्तरीय जाति आधारित जनगणना पर काम शुरू करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने का फैसला तक ले डाला है। दरअसल आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे को लेकर आक्रामक रुख अपना रखा है तो नीतीश कुमार भी उनके सुर में सुर मिला रहे हैं। इस संबंध में तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार के बीच हाल में मुलाकात भी हुई है। नीतीश ने कहा कि राज्य स्तरीय जाति आधारित जनगणना जल्दी ही शुरू होगी, जिस पर तेजस्वी यादव से बात भी हो गई है। वहीं बीजेपी के कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह ने इसी दौरान कहा था कि बिहार और देश में जाति आधारित जनगणना की कोई जरूरत नहीं है।
उन्होंने यह बात साफ तौर पर कही थी कि आरजेडी जिस तरीके से नीतीश कुमार पर दबाव बना रही वो ठीक नहीं है। उन्होंने कहा था कि विपक्ष के दबाव में सरकार नहीं चलेगी। हालांकि जब नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना की मांग को लेकर सर्वदलीय नेताओं बुलाने की बात कही तो तब बीजेपी नेता और बिहार के डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद भी मौजूद थे। नीतीश कुमार कह चुके हैं कि जाति आधारित जनगणना कराया जाना देशहित में है। इसको लेकर बिहार के 13 राजनीतिक दलों के नेता पूरी तरह से सहमत हैं। साथ ही नीतीश ने बिहार में अपने स्तर पर जातीय जनगणना कराने की दिशा में आगे बढ़ने के भी संकेत दिए हैं तो बीजेपी इस पर सहमत नहीं है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि हमारे लिए सिर्फ दो ही जातियां हैं, अमीर और गरीब। जातीय जनगणना को लेकर हम केंद्र के फैसले के साथ हैं। ऐसे में नतीश कुमार बीजेपी के खिलाफ जाकर जातिगत जनगणना पर अड़े और इस दिशा में काम भी जल्द शुरू करने जा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि राज्य स्तर पर होने वाली जनगणना का क्या फायदा होगा?
गौरतलब है कि देश में जाति आधारित जनगणना की मांग काफी पहले से हो रही है। आजादी से पहले साल 1931 में जातिगत जनगणना हुई थी, जिसके बाद से दोबारा नहीं हुई है। साल 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया जरूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया। साल 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन उसमें ओबीसी और दूसरी जातियों का डेटा शामिल नहीं किया गया।
हालांकि साल 1990 में केंद्र की तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग, जिसे आमतौर पर मंडल आयोग के रूप में जाना जाता है, की एक सिफारिश को लागू किया था, जिसकी वजह से ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का लाभ मिल रहा है।
इस फैसले ने भारत, खासकर उत्तर भारत की राजनीति को बदल कर रख दिया। मंडल कमीशन के आंकड़ों के आधार पर पिछड़े समुदाय के लोग कहते हैं कि भारत में ओबीसी आबादी 52 प्रतिशत है। ऐसे में ओबीसी नेता जातिगत जनगणना की मांग करते रहे हैं, जिसके चलते साल 2011 में सोशियो इकोनॉमिक कास्ट सेंसस सर्वे आधारित डेटा जुटाया था, लेकिन इसे अभी तक प्रकाशित नहीं किया गया है। अब नीतीश कुमार की सरकार बिहार में जातिगत जनगणना की तैयारी में है। ऐसे में देखना है कि नीतीश राज्य स्तर पर किस तरह से जातिगत जनगणना करते हैं और उसे क्या अमलीजामा पहनाते हैं।