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दिल्ली :पूर्ण राज्य का प्रस्ताव पहली बार नहीं हुआ पारित

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दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने विधानसभा में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने वाला प्रस्ताव पारित किया। इसके पहले भी अलग-अलग समय में करीब चार बार यह प्रस्ताव विधानसभा में पारित हो चुका है.
आम चुनाव 2019 में अभी करीब एक साल का वक्त है। मगर सभी राजनीतिक दल अभी से इसकी तैयारियों में जुट गई है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी भी विधानसभा का तीन दिनी विशेष सत्र कर इसका आगाज कर दिया है। इस सत्र के आखिरी दिन दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने का प्रस्ताव पारित करना इसी की कड़ी है।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार का मानना है कि दिल्ली को बिना पूर्ण राज्य का दर्जा मिले विकास सम्भव नहीं है। इसलिए विधानसभा में इस प्रस्ताव पर चर्चा और इसे पारित कर केंद्र सरकार को भेजा दिया गया। इस प्रकार का प्रस्ताव दिल्ली विधानसभा में पहली बार पास नहीं हुआ है। पहले भी यहां प्रस्ताव पारित हो चुके हैं। आम आदमी पार्टी सरकार के पहले दिल्ली की बीजेपी व कांग्रेस सरकारें इस प्रस्ताव को पारित कर केंद्र तक पहुंचाते रहें हैं। पर केंद्र सरकार ने उसे कभी गम्भीरता से नहीं ली।

दिल्ली सरकार के मुुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्री लगातार इस बात पर आक्रोश जताते रहे हैं कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा न मिलने के कारण वह ढंग से काम नहीं कर पा रहे हैं। इस कारण दिल्ली का विकास भी नहीं हो पा रहा है। इसलिए वे चाहते हैं कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए।जबकि विपक्ष का मानना है कि यह सिर्फ काम न करने का बहाना मात्र है। पूर्व में बीजेपी और कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार ने कई विकास कार्य कर राजधानी की सूरत बदल दी थी।
दिल्ली की राजनीति पर नजर रखने वालों को कहना है कि दिल्ली विधनसभा में इस आशय के प्रस्ताव पहले भी चर्चा कर पारित किए जा चुके हैं। लेकिन केंद्र सरकार ने उन्हें कभी भी गंभीरता से नहीं लिया। उसका कारण यह है कि दिल्ली एक मल्टीपल राजधानी है, इसलिए उसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने में कई रुकावटें हैं।

साल 1993 में दिल्ली की बीजेपी सरकार आई थी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना और उनके हटने पर मुख्यमंत्री बने साहिब सिंह वर्मा ने सदन में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित कर उसे केंद्र सरकार के पास भेजा था। साहिब सिंह तो कई दिनों तक इस मसले पर साइकिल से चले थे। उन्होंने सरकारी वाहन तक त्याग दिया था।

बताते हैं कि जब दिल्ली में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की अगुवाई में 15 साल तक सरकार चली तो उन्होंने     भी दो बार दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का  प्रस्ताव पारित किया और उसे केंद्र सरकार के पास भेजा। खास बात यह रही कि जब यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा गया था तो वहां कांग्रेस की ही सरकार थी। लेकिन इन पर केंद्र ने कभी भी विचार नहीं किया।

विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता के अनुसार दिल्ली सरकार की बिजली और पानी के मोर्चे पर विफल रही है। बिजली बिलों में फिक्सड चार्ज बढ़ाने, दिल्ली हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद चौथे वित्तीय आयोग का लाभ नहीं देना और नगर निगमों को पंगु बनाने की चेष्ठा जैसे कई मुद्दे हैं, जिसका जवाब सरकार के पास नहीं है। क्योंकि पूरी सरकार अपनी पूरी ताकत उपराज्यपाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लड़ाई में झोंक दी है। जनता के सवालों का जवाब इनके पास नहीं है, इसलिए ये पूर्ण राज्य का ड्रामा कर रहे हैं।

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