दिल्ली पुलिस ने कांग्रेस नेता शशि थरूर को उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में बरी किए जाने के 15 महीने बाद निचली अदालत के इस फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। इसके अलावा पुनरीक्षण याचिका दायर करने में देरी के लिए माफी भी मांगी है,जिसके बाद उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस की अर्जी पर थरूर का जवाब मांगा है। वहीं शशि थरूर ने इस सुनवाई का विरोध किया है।
कांग्रेस नेता शशि थरूर का कहना है कि दिल्ली पुलिस द्वारा ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने में देरी हुई है। दिल्ली पुलिस ने 90 दिन की समय सीमा खत्म होने बाद याचिका दायर की है। दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने 18 अगस्त, 2021 को पारित एक फैसले में शशि थरूर को पुष्कर की मौत के मामले में आरोप मुक्त कर दिया था। शशि थरूर ने कहा कि पहले देरी की अर्जी पर सुनवाई की जाए। जिसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की पीठ ने देरी को माफ करने की अर्जी पर नोटिस जारी किया है इस मामले में सुनवाई 7 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी है। थरूर ने मामले में मीडिया ट्रायल का भी आरोप लगाया है। उनके वकील ने न्यायालय से मामले से संबंधित कोई भी सामग्री तीसरे पक्ष के साथ साझा नहीं किए जाने का आदेश देने की मांग की, जिस पर वह सहमत हो गया है। न्यायालय ने कहा कि दस्तावेज किसी ऐसे व्यक्ति के साथ साझा नहीं किए जाएंगे, जो इस मामले में पक्षकार नहीं है।
क्या है पूरा मामला
सुनंदा पुष्कर 17 जनवरी 2014 को रहस्यमयी परिस्थितियों में दिल्ली के एक होटल में मृत पाई गई थीं। जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने इस मामले में में अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी और लंबी पड़ताल के बाद मई, 2018 में शशि थरूर के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी। चार्जशीट में शशि थरूर पर आईपीसी की धाराओं के तहत पत्नी पर क्रूरता करने और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था।
निचली अदालत ने क्या कहा
निचली अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि इस मामले में शशि थरूर के खिलाफ किसी तरह के सुबूत नहीं मिले हैं कि उन्होंने अपनी पत्नी को आत्महत्या करने के लिए उकसाया। अदालत ने अपने आदेश में मेडिकल बोर्ड के ओपिनियन का भी हवाला दिया था जिसमें इस बात की पुष्टि नहीं हुई थी कि सुनंदा पुष्कर की मौत आत्महत्या की वजह से हुई थी।विशेष जज गीतांजलि गोयल ने अपने आदेश में कहा था कि आपराधिक मामलों में सुबूतों की जरूरत होती है। यह बात सही है कि किसी की जान गई है लेकिन सबूतों के अभाव में अदालत यह नहीं कह सकती कि अभियुक्त ने यह अपराध किया था। अदालत ने कहा था कि अभियुक्त को एक आपराधिक मुकदमे की कठोरता का सामना करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।सुनंदा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने संकेत दिया था कि नींद की गोलियों की ओवरडोज उनकी मौत की वजह हो सकती है। हालांकि रिपोर्ट से यह नहीं पता चला था कि उनकी मौत कैसे हुई और यह आत्महत्या थी या नहीं। उनके शरीर पर चोट के कई निशान थे।