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नाक का सवाल बना दिल्ली एमसीडी चुनाव

दिल्ली नगर निगम चुनाव का बिगुल बज चुका है,नगर निगम के सभी 250 सीटों पर 4 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे,जबकि आज (14 नवंबर) नॉमिनेशन फाइल करने की लास्ट डेट है। नगर निगम चुनाव में इस बार भाजपा,आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होता दिख रहा है। इन पार्टियों के लिए यह चुनाव नाक का सवाल बन गया है। कारण हजारों करोड़ रुपये के बजट वाली नगर निगम के पास कई सारी शक्तियां होती हैं, यही वजह है कि इसे दिल्ली की छोटी सरकार भी कहा जाता है। दिल्ली की सत्ता से भले ही भाजपा दो दशक से बाहर हो, लेकिन पिछले 15 वर्षों से उसका कब्जा बरकरार है। वहीं दिल्ली की सत्ता पर पिछले 8 साल से काबिज आम आदमी पार्टी ने चुनाव जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। जबकि कांग्रेस पार्टी दिल्ली में अपने खोए हुए राजनीतिक जनाधार को वापस पाने के लिए जोर -आजमाइश कर रही है।

दरअसल, दिल्ली नगर निगम के पास कई तरह के अधिकार होते हैं। इसके जरिए किए जाने वाले विकास कार्यों से कोई भी पार्टी अपना वोट बैंक तैयार कर सकती है। दिल्ली नगर निगम भी बाकी नगर निगमों की तरह ही काम करता है, लेकिन दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश होने के चलते राज्य सरकार और नगर निगम के कई अधिकार ओवरलैप करते हैं। इसमें सड़कें और नालों को मेंटेन करने जैसे कई काम शामिल हैं। निगम के पास स्ट्रीट लाइट, साफ-सफाई, प्राइमरी स्कूल, प्रॉपर्टी और प्रोफेशनल टैक्स कलेक्शन, दिल्ली बार्डर पर टोल टैक्स कलेक्शन सिस्टम, श्मशान और जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र बनाना आदि काम है। इसके अलावा डिस्पेंसरी, ड्रेनेज सिस्टम, बाजारों की देख-रेख और पार्किंग जिम्मा निगम के पास है। प्राइमरी स्कूल और अस्पताल का काम भी नगर निगम के द्वारा किए जाते हैं। नगर निगम के पास सड़क निर्माण से लेकर स्कूल और टैक्स कलेक्शन आय का बड़ा स्रोत होता है।

दिल्ली नगर निगम के पास 15 हजार करोड़ से ज्यादा का बजट होता है। इसके अलावा दिल्ली सरकार से भी निगम के खर्चे के लिए बजट मिलता है। इस बजट के जरिए राजधानी में तमाम विकास कार्य किये जाते हैं । इसलिए इतने बड़े बजट वाले नगर निगम पर कब्जा करने की चाहत सभी राजनीतिक दलों की होती है। ऐसे में भाजपा ,आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की मंशा नगर निगम पर अपना वर्चस्व बनाने की है। दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी के लिए भी नगर निगम पर काबिज होना अहम है,क्योंकि राज्य सरकार और नगर निगम के समन्वय से विकास कार्यों को बेहतर ढंग से किया जा सकता है,जो कि पिछले कुछ सालों से दिल्ली में होता हुआ दिख नहीं रहा है। भाजपा और ‘आप ‘दोनों ही पार्टियों के बीच हमेशा से नगर निगम के कामों को लेकर टकराव दिखता रहा है। पिछले दिनों ही कूड़े के पहाड़ को लेकर दोनों दलों के बीच जुबानी जंग देखने को मिली।

इसके अलावा दिल्ली नगर निगम के पास कई ऐसे काम हैं जिसमें दिल्ली सरकार और नगर निगम साथ – साथ काम करती हैं । दिल्ली की नाले की सफाई से लेकर छोटे सड़के बनाना आदि काम करने पड़ते हैं । दिल्ली सरकार 60 फीट से अधिक चौड़ी सड़कों के मरम्मत का कार्य करती है जबकि इससे कम चौड़ी सड़कों का रख-रखाव नगर निगम द्वारा किया जाता है। दिल्ली में वाहन लाइसेंस देने का कार्य भी दोनों के द्वारा होता है। राज्य सरकार मोटराइज्ड वाहनों को लाइसेंस जारी करती है, जबकि नगर निगम द्वारा छोटे वाहनों जैसे रिक्शा, हाथ गाड़ी आदि को लाइसेंस दिया जाता है।

गौरतलब है कि दिल्ली एमसीडी का चुनाव निगमों के एकीकरण के बाद इस बार बिलकुल अलग हो गया है। पहले नगर निगम तीन क्षेत्रों यानी ईस्ट, नॉर्थ और साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन में बंटी हुई थी। इसमें नगर निगम के कुल 272 वार्ड थे, लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार ने इस साल दिल्ली की तीनों नगर निगमों का एकीकरण कर दिया है,जिसकी वजह से सीटें घटकर 250 हो गई हैं। इससे पहले दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने साल 2011 में नगर निगम संशोधन विधेयक पारित किया था। इसके तहत नगर निगम को तीन भागों में बांटा दिया था ,लेकिन अब एकीकरण के बाद दिल्ली नगर निगम का एक ही मेयर होगा।

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