[gtranslate]

आम चुनाव 2024 में बीजेपी को अकेले दम पर बहुमत न मिलने से जहां मोदी और शाह कमजोर हुए हैं तो वहीं लोकसभा के लिहाज से सबसे बड़े राज्य यूपी में महज 33 सीटें मिलने से सूबे के सीएम योगी को हटाने की चर्चा राजनीतिक गलियारों में चल रही है। कहा जा रहा है कि उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य दिल्ली के दम पर ही योगी आदित्यनाथ को चुनौती देने का साहस कर पा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली भयभीत हो ऐसा कर रही है क्योंकि अगर योगी को लगातार उभरने दिया तो वे आगे चलकर पार्टी शीर्ष नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं। लेकिन फिलहाल भाजपा आलाकमान की स्थिति ये है कि वो न योगी को निगल पा रहा है न उगल पा रहा है। बस एक फांस की तरह योगी उसके गले में अटके हुए हैं

आम चुनाव 2024 के नतीजे आए लगभग दो महीने होने जा रहे हैं लेकिन अपेक्षित नतीजे न मिल पाने के सदमे से भाजपा अब तक उबर नहीं पाई है। उत्तर प्रदेश में विशेषकर भाजपा को उम्मीदों के
मुताबिक सीटें नहीं मिलने चलते पार्टी भीतर कलह खुलकर सामने आने लगी है। ऐसे में चर्चा है कि प्रदेश में होने वाले 10 विधानसभा उपचुनावों में भी अगर भाजपा का प्रदर्शन मन मुताबिक नहीं रहा तो प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ की विदाई हो सकती है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में नौ विधायक इस बार के लोकसभा चुनाव में जीत कर सांसद बन गए हैं तो एक सीट कानपुर के सीसामऊ की है जहां के सपा विधायक इरफान सोलंकी को अदालत से सजा हो गई है। ऐसे में इन 10 सीटों पर उपचुनाव की घोषणा कभी भी हो सकती है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हटाने की जिस योजना की चर्चा हो रही है उसमें इन 10 सीटों के चुनाव नतीजों का बड़ा हाथ होगा। ये सीटें मुख्यमंत्री के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है। हालांकि इन 10 में से भाजपा की सीटें सिर्फ तीन हैं लेकिन योगी आदित्यनाथ के ऊपर दबाव होगा कि वे ज्यादा से ज्यादा सीटें जिताएं।

इस बीच भाजपा की सहयोगी पार्टियों का अलग दबाव है। खाली हुई सीटों में से एक मंझवा सीट 2022 में निषाद पार्टी ने जीती थी। इसलिए वह इस सीट की मांग कर रही है। एक सीट राष्ट्रीय लोकदल की है लेकिन कहा जा रहा है कि जयंत चौधरी तीन सीटों की मांग कर रहे हैं। ऐसे में पहले सहयोगी पार्टियों से सीट बंटवारा करना होगा और उसके बाद ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतनी होंगी। अगर उपचुनाव में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा तो योगी की कुर्सी के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। इस बीच उनको हटाए जाने की चर्चा के साथ ही उनका खेमा भी सक्रिय हो गया है। सोशल मीडिया में खुलकर कहा जा रहा है कि अगर 2014 में 71 सीट और 2019 में 62 सीट जीतने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया गया तो 2024 में 29 सीट हारने का ठीकरा भी उनके सिर फूटना चाहिए। यह भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी खुद भी उत्तर प्रदेश से सांसद हैं और उनके क्षेत्र के आस-पास की ज्यादातर सीटों पर भाजपा हार गई है, जबकि योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र गोरखपुर के आस-पास की साभी सीटें भाजपा जीती है।

गौरतलब है कि साल 2022 यूपी विधानसभा चुनाव प्रचार से पहले अटकलें थीं कि योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अनबन चल रही है। उस दौरान दो तस्वीरें काफी वायरल हुई। एक में पीएम मोदी योगी से कुछ कहते दिखे तो दूसरे में कैमरे की तरफ पीठ किए हुए मोदी योगी के कंधे पर हाथ रखे हुए दिखे। तब योगी आदित्यनाथ के सोशल मीडिया अकाउंट्स से इन तस्वीरों को साझा करते हुए लिखा गया था कि ‘हम निकल पड़े हैं प्रण करके, अपना तन-मन अर्पण करके, जिद है एक सूर्य उगाना है, अम्बर से ऊंचा जाना है।’ इसके बाद योगी के नेतृत्व में पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ जीतकर आई और योगी दोबारा सूबे के सीएम बन गए तो और अब 2024 आम चुनाव में पीएम मोदी तीसरी बार पीएम। लेकिन जिस ‘अम्बर से ऊंचे जाने’ और ‘सूर्य उगाने’ की बात मोदी और योगी की तस्वीरों के साथ लिखी गई थी, वो कल्पना ही रह गई। क्योंकि 2017 उत्तर प्रदेश चुनाव में 312 सीटें जीतने वाली पार्टी 2022 में 255 सीटें ही जीतने में सफल हुई। वहीं 2019 लोकसभा चुनाव में यूपी की 62 सीटें जीतने वाली बीजेपी 2024 में महज 33 सीटों पर सिमट गई।

क्या केशव को दिल्ली का समर्थन है?
इन दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के ताजा बयानों ने पार्टी में टकराव को बढ़ाने का काम किया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि योगी आदित्यनाथ के सामने क्या चुनौतियां हैं या वो खुद किसी के लिए चुनौती हैं? क्या नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा के लिए योगी मजबूती हैं या मजबूरी? राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद योगी ही हैं, जिन्होंने बीते चुनावों में कई राज्यों में जाकर प्रचार किया है। पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची के शुरुआती नामों में योगी आदित्यनाथ का नाम आता है। महज 26 साल की उम्र में पहली बार सांसद बनने से लेकर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के दूसरी बार सीएम बनने तक, योगी आदित्यनाथ खुद चुनाव कभी नहीं हारे हैं। अगर कभी पार्टी भीतर ही योगी की बात न सुनी जाए तो इसका असर चुनावी नतीजों में भी देखने को मिलना स्वाभाविक है।

योगी का भाजपा में रहते हुए ही पार्टी नेताओं से टकराव रहा है। वो अपने लोगों की सूची नेतृत्व के सामने रखकर टिकट मांगा करते हैं। कहा जाता है कि कई बार योगी ने बीजेपी के खिलाफ ही बागी उम्मीदवारों को खड़ा किया और प्रचार भी किया। मगर समय के साथ योगी का रुख नरम हुआ। योगी बनाम बीजेपी के बड़े नेताओं का यही ‘टकराव’ लोकसभा चुनावी नतीजों के बाद एक बार फिर दबी जुबान में सामने आने लगा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि दस विधानसभा सीटों के उपचुनाव में अगर पार्टी को नुकसान होगा तो पार्टी आलाकमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जगह किसी अन्य को सूबे का सीएम बना सकता है। हालांकि कई जानकारों का कहना है कि ऐसा होने की कोई उम्मीद नहीं है और बीजेपी इतना बड़ा खतरा नहीं उठाएगी। मगर यहां ये समझना जरूरी है कि यूपी से दिल्ली तक योगी के लिए अपने विधायक, नेता, सहयोगी ही क्यों चुनौती बन रहे हैं। ये योगी से क्यों नाराज हैं? भाजपा का सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) की नेता और एनडीए सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी योगी आदित्यनाथ से अपनी शिकायत सार्वजनिक की थी। अनुप्रिया ने कहा था कि ‘सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े लोगों को रोजगार देने के मामले में भेदभाव कर रही है।’

बुलडोजर नीति पर सवाल

योगी आदित्यनाथ की राजनीति में बुलडोजर की खास अहमियत है। चुनाव प्रचार के दौरान योगी की रैलियों में कई जगहों पर बुलडोजर भी खड़े किए गए थे। इसी पर निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद ने कहा, ‘अगर बुलडोजर बेघर और गरीब लोगों के खिलाफ इस्तेमाल होगा तो एकजुट होकर ये लोग हमें चुनाव में हरवा देंगे।’ जानकारों का कहना है कि दिल्ली से इशारे के बिना ये सब संभव नहीं और ये योगी के खिलाफ जमीन तैयार की जा रही है। योगी सरकार में मंत्री-नेता बनाम अधिकारी की लड़ाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब पिछले दिनों योगी सरकार के एक मंत्री अधिकारियों के साथ बैठक ले रहे थे तो एक शहर के मेयर ने मंत्री से कहा- ‘ऑनलाइन जुड़े अधिकारियों ने अपना कैमरा तक नहीं खोला है, कोई अनुशासन नहीं है।’ इस पर मंत्री ने कहा ‘आप अपना काम बताइए, काम हो जाएगा अधिकारियों को छोड़ दीजिए।’ यही नहीं लोकसभा चुनावी नतीजे आने के बाद ऐसी कई खबरें सामने आईं जहां बीजेपी नेताओं की ओर से कहा गया कि अधिकारियों की चल रही है और पार्टी कार्यकर्ता परेशान किए जा रहे हैं। सवाल है कि क्या सच में ऐसा है? पार्टी सूत्रों की मानें तो प्रदेश बीजेपी में आपसी मतभेद पिछली लोकसभा चुनाव के टिकट बंटवारे के समय ही सामने आ गए थे जब योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय नेतृत्व के बीच उम्मीदवारों पर एकमत होने पर एक लंबे समय तक अनिश्चितता बनी रही थी।

अधिकारियों की सरकार

पिछले तीन-चार सालों के दौरान कई विधायकों में इस बात को लेकर असंतोष बढ़ा है कि नौकरशाही को ज्यादा तरजीह दी जा रही है। पहले की सरकारों में कोई विधायक, सांसद शिकायत लेकर लखनऊ पहुंच जाता था तो खतरा बना रहता था। ट्रांसफर भी जल्दी जल्दी हो जाते थे, मगर योगी सरकार में ऐसा नहीं है। अब ऐसा हो गया है कि अगर कोई विधायक अड़ंगा डाल रहा है तो अधिकारी को निर्देश हैं कि वो अपना काम करे, अगर कोई शिकायत भी हुई और मामला गंभीर नहीं हुआ तो कार्रवाई नहीं की जाएगी। सवाल उठ रहे हैं कि ये सब करके योगी आदित्यनाथ को चुनौतियां मिल रही हैं तो वो ऐसा कर क्यों रहे हैं? क्या योगी मोदी मॉडल को अपना रहे हैं।

जानकार कहते हैं कि जहां तक मोदी मॉडल की बात है एस जयशंकर, आरके सिंह, हरदीप पुरी, अश्विनी वैष्णव, अर्जुन मेघवाल जैसे कई बड़े नाम हैं जो पहले वरिष्ठ अधिकारी थे और बाद में मोदी कैबिनेट में भी हैं। अधिकारियों पर निर्भर रहने वाला मॉडल गुजरात में बतौर सीएम नरेंद्र मोदी ने भी अपनाया था। गुजरात के कई अधिकारियों को मोदी दिल्ली लेकर भी आए। मोदी जब सीएम बने तो उनको लगा कि मंत्रियों पर निर्भर रहने से अच्छा है कि दो चार अपने चुने अधिकारियों के जरिए प्रशासन चलाऊं। वहीं से ये नौकरशाही केंद्रित राजनीतिक व्यवस्था चली। इससे पहले राजनीतिक कार्यकर्ता केंद्र में होते थे। लेकिन ऐसी व्यवस्था में अफसरों और कार्यकर्ताओं में टकराव की स्थिति बन जाती है। अधिकारी बेलगाम हो जाते हैं कार्यकर्ता हाशिए पर चला जाता है। इन चुनावों में बीजेपी का जो कार्यकर्ता घर बैठा, उसके पीछे बहुत बड़ा कारण यही है कि अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर तो रोक नहीं लगी लेकिन कार्यकर्ता को एक रोटी खाने को नहीं मिली। कार्यकर्ताओं के आरोप एकदम सही हैं जब नौकरशाही केंद्रित मॉडल होगा तो उसमें कार्यकर्ता की उपेक्षा होगी। यूपी बीजेपी के कई नेता कार्यकर्ताओं की ऐसी ही उपेक्षा की बातें कह चुके हैं। योगी की नौकरशाही पर निर्भरता से नाराज भाजपाई कहने लगे हैं कि मोदी और शाह वो रुख क्यों नहीं अपना रहे, जो अतीत में अपना चुके हैं। जैसा कि बीते कुछ सालों में बीजेपी शासित राज्यों मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर, उत्तराखण्ड त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत, गुजरात में विजय रुपाणी और त्रिपुरा में बिप्लव देब को चुनाव से पहले या चुनाव के बाद बड़े चेहरों को सीएम कुर्सी से दूर किया। दूसरे दलों की तरह बीजेपी आलाकमान कभी इस खौफ में नहीं दिखी कि पार्टी टूट सकती है। इसी कारण बीजेपी उन नेताओं को भी सीएम बना सकी, जिनके नाम का किसी को अंदाजा भी नहीं था।

योगी को हटाना आसान नहीं

जानकारों का कहना है कि योगी को हटाना बीजेपी के लिए आसान नहीं है। योगी बीजेपी की मजबूरी भी हैं और मजबूती भी। योगी को हटाएंगे तो वो चुप नहीं बैठेंगे और बीजेपी का ही नुकसान करेंगे। दूसरे राज्यों में भी अगर मोदी के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रियता है तो वो योगी की है। योगी फायर ब्रांड हिंदू नेता की छवि को बहुत अच्छे से बनाए हुए हैं। दूसरी वजह है नाथ संप्रदाय, जो पूरे देश में फैला है और योगी उसके महंत हैं। बीजेपी इसकी उपयोगिता को समझती है। ‘हिंदू ध्यावे देहुरा, मुसलमान मसीत जोगी ध्यावे परम पद, जहां देहुरा ना मसीत।’ योगी आदित्यनाथ जिस गोरखपुर मंदिर के महंत भी हैं, उसके बाहर यही लाइन लिखी है। इसका मतलब है हिंदू मंदिर और मुसलमान मस्जिद का ध्यान करते हैं, पर योगी उस परमपद का ध्यान करते हैं, वे मंदिर या मस्जिद में उसे नहीं ढूंढ़ते।

योगी आदित्यनाथ ने फरवरी 1994 में नाथ संप्रदाय के सबसे प्रमुख मठ गोरखनाथ मंदिर के उत्तराधिकारी के रूप में अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली थी। इस मठ को मानने वाले लोगों की संख्या भी ज्यादा है। बाकी नेताओं और योगी आदित्यनाथ में फर्क ये है कि योगी के पास गोरखमठ के कारण अपना एक बड़ा निजी आधार है। सीएम बनने के बाद योगी ने अपनी हिंदू युवा वाहिनी को शांत करवा दिया था। इधर वो फिर सक्रिय हो रही है। योगी अपने तेवर दिखाने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।

गोरखनाथ मठ के महंत को हटाने से हिंदुत्व वाला संदेश गलत चला जाएगा। जब राजनीति हिंदुत्व वाली है तो आलाकमान को बड़े मठ का ध्यान रखना होगा। योगी की खुद की छवि भी हिंदुत्व वाली है। बीजेपी ने खुद दूसरे राज्यों में योगी का इस्तेमाल किया है। योगी की डिमांड पूर्वोत्तर से भी आई थी। योगी की लोकप्रियता उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश के ठाकुरों में काफी बढ़ चुकी है। उत्तर भारत में इनकी संख्या ठीक-ठाक है। इसे खोने का भी बीजेपी को डर है। इन वजहों से योगी को हटाना आसान नहीं है।

You may also like

MERA DDDD DDD DD
bacan4d toto
bacan4d
bacan4d toto
bacan4d toto
slot gacor
toto slot
Toto Slot
slot gacor
situs slot gacor
Bacan4d Login
bacan4drtp
situs bacan4d
Bacan4d
slot dana
slot bacan4d
bacan4d togel
bacan4d game
bacan4d login
bacan4d login
bacantoto 4d
slot gacor
slot toto
bacan4d
bacansport
bacansport
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
slot77 gacor
JAVHD
Bacan4d Login
Bacan4d toto
Bacan4d
Bacansports
bacansports
Slot Dana
situs toto
bacansports
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
slot gacor
bacan4d
bacan4d
bacansport
bacansport
gacor slot
slot gacor777
slot gacor bacan4d
toto gacor
bacan4d
toto slot
bacansports login
Slot Gacor
slot gacor
toto qris
toto togel
slot dana
toto gacor
slot gacor
slot777
slot dana
slot gacor
bacansports
bacansport
slot gacor
100 pasaran slot
bacansport
bacansport
bawan4d
bacansports
bacansport
slot gacor
bacan4d slot toto casino slot slot gacor