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आखिरकार दिल्ली को मिला नया मेयर

कई दिनों की गहमागहमी के बाद गत सप्ताह दिल्ली नगर निगम यानी एमसीडी के मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव संपन्न हो गया। इसमें आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार शैली ओबेरॉय को मेयर और आले मोहम्मद इकबाल को डिप्टी मेयर चुन लिया गया है

लंबी खींचतान के बाद आखिरकार दिल्ली को नया मेयर मिल गया। आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार शैली ओबेरॉय अब दिल्ली की नई मेयर होंगी। गत सप्ताह हुए चुनाव में ‘आप’ की शैली ओबेरॉय को 150 वोट मिले, जबकि बीजेपी की रेखा गुप्ता को 116 वोट मिले। दिल्ली एमसीडी का चुनाव तो पिछले साल 4 दिसंबर को ही हो गया था लेकिन उसके 2 महीने बाद तक भी हंगामे के कारण मेयर का चुनाव नहीं हो सका था। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और आखिरकार चौथी बैठक के बाद यह तय हो गया कि मेयर कौन होगा? जीत के बाद नई मेयर शैली ओबेरॉय ने कहा कि हमें लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए मिलकर काम करना होगा। दिल्ली की महापौर शैली ओबेरॉय ने कार्यभार संभालने के बाद एमसीडी सदन में कहा कि हम 10 गारंटियों पर काम करेंगे जिसका चुनाव में वादा किया था।

गौरतलब है कि दिल्ली में नगर निगम का चुनाव 4 दिसंबर को हुआ था और 7 दिसंबर को परिणाम आए थे, जिसमें आम आदमी पार्टी को 250 में से सबसे ज्यादा 134 सीटों पर जीत मिली थी। इसके बाद भी तकरीबन 2 महीने से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी मेयर नहीं चुना जा सका। एमसीडी सदन में हुई तीन बैठकों में आप और बीजेपी के पार्षदों के बीच हंगामा हो जाने की वजह से दिल्ली को नया मेयर नहीं मिल पाया था। चुनाव के साथ ही यह जानना भी जरूरी है कि दिल्ली में मेयर के पास क्या शक्तियां हैं। जिसको लेकर दिल्ली सरकार और एलजी के बीच खींचतान देखने को मिलती है।

नगर निगम से जुड़े अधिकार के मामले में फैसला लेने को स्वतंत्र
दिल्ली मेयर के पास कैसी शक्तियां हैं उसको ऐसे समझा जा सकता है। नगर निगम से जुड़ा कोई भी फैसला लेने के लिए मेयर स्वतंत्र है। सबसे खास बात है कि उसकी ओर से लिए गए किसी भी फैसले की फाइल को एलजी या केंद्र के पास भेजने की जरूरत नहीं है। निगम का सदन सर्वोच्च होता है और उसका अपना एक अलग अच्छा खासा बजट होता है। साथ ही इस बजट के पैसे को खर्च करने की स्वतंत्रता होती है। निगम के सदन में कोई प्रस्ताव पास होता है तो उसके बाद वह सीधे लागू हो जाता है। जैसा कि प्रोपर्टी, हाउस टैक्स, साफ-सफाई, निगम के अधीन आने वाली सड़के, प्राइमरी स्कूल, उसके अधीन आने वाले अस्पताल पर फैसला सीधे लागू होता है।

क्यों विवादों में घिरा रहा मेयर का चुनाव
छह जनवरी को नगर निगम कार्यालय में भाजपा व आप के बीच कहासुनी व विवाद के कारण चुनाव प्रक्रिया स्थगित करनी पड़ी थी। बाद में वहां पुलिस बल भी तैनात कर दिया गया। 24 जनवरी को चुनाव प्रक्रिया एक बार फिर स्थगित कर दी गई क्योंकि प्रक्रिया अटक गई थी। इसी महीने की छह तारीख को तीसरी बार चुनाव प्रक्रिया अधूरी रह गई। विवाद इस हद तक बढ़ा कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट में 17 फरवरी को मामले की सुनवाई हुई थी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मनोनीत सदस्यों को वोटिंग का अधिकार नहीं होता है। साथ ही यह भी कहा कि मेयर के चुनाव के बाद ही डिप्टी मेयर के चयन की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। इस प्रक्रिया की अध्यक्षता करने का अधिकार केवल मेयर के पास है।

38 दिन ही मेयर रहेंगी शैली ओबेरॉय
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप और काफी मशक्कत के बाद शैली ओबेरॉय भले ही मेयर चुनाव जीत गई हैं। लेकिन वह मात्र 38 दिन तक ही इस पद पर रहेंगी। ऐसा इसलिए क्योंकि एमसीडी एक्ट के तहत मेयर को एक अप्रैल से 31 मार्च तक चुना जाना चाहिए था। डीएमसी एक्ट की धारा दो (67) के मुताबिक एमसीडी का वर्ष अप्रैल माह के प्रथम दिन से शुरू हो जाता है। इस लिहाज से अगले साल 31 मार्च को वर्ष समाप्त हो जाता है। शैली ओबेरॉय 22 फरवरी, 2023 को मेयर चुनी गई हैं, जिनका कार्यकाल 31 मार्च को खत्म हो जाएगा। इस तरह से वह सिर्फ 38 दिनों तक ही मेयर पद पर रहकर काम कर पाएंगी। 38 दिन बाद दोबारा एक अप्रैल को मेयर चुनाव कराए जाएंगे।

कौन हैं शैली ओबेरॉय
आम आदमी पार्टी के साथ 39 वर्षीय शैली ओबेरॉय 2013 में जुडी थी। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर काम किया है। उन्होंने भारतीय वाणिज्य संघ की आजीवन सदस्यता भी ले रखी है। ओबेरॉय ने इग्नू के स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से प्रबंधन अध्ययन में पीएचडी की हुई है। एक साधारण कार्यकर्ता की तरह उन्होंने पार्टी में अपने काम की शुरुआत की और साल 2020 तक आप पार्टी की महिला मोर्चा का उपाध्यक्ष पद हासिल किया। इस वर्ष के नगर निगम चुनावों में बतौर पार्षद शैली को पहली बार पश्चिमी दिल्ली की सीट से जीत हासिल हुई। उनकी प्रतिद्वंद्वी बीजेपी की दीपाली कुमारी थी, जिसे उन्होंने 269 वोटों से हराया।

10 साल बाद दिल्ली को मिली महिला मेयर
रजनी अब्बी के बाद अब 10 साल बाद दिल्ली को एक और महिला मेयर मिल गई है। 80 दिन पहले नगर निगम के चुनाव हुए थे और 80 दिनों की उथल-पुथल के बाद आखिरकार देश की राजधानी का मेयर चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो गया। आम आदमी पार्टी की शैली ओबेरॉय ने जीत दर्ज कर शहर की नई मेयर बन गई हैं। इससे पहले वर्ष 2011 में बीजेपी की रजनी अब्बी दिल्ली की आखिरी महिला मेयर थी। फिर 2012 में कांग्रेस की सरकार बनी और शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी। उन्होंने दिल्ली नगर निगम को तीन भागों में विभाजित किया गया था और इनमें से प्रत्येक भाग में तीन अलग-अलग मेयर थे। 2022 में इन तीनों नगर निगमों को मिला दिया गया।

पूरी रात चला ड्रामा
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बेहद कड़ी सुरक्षा में चुनाव कराए गए और इसके नतीजे भी दोपहर में ही आ गए थे लेकिन एमसीडी सदन में आगे जो कुछ हुआ वह पहले कभी नहीं देखा गया। बार-बार सदन की कार्यवाही स्थगित की जा रही थी। सदन में ‘तानाशाही नहीं चलेगी’ के नारे गूंज रहे थे। माइक तोड़े जा रहे थे। पार्षदों में हाथापाई तक हुई। एक दूसरे पर पानी की बोतलें फेंकने का युद्ध भी चला। यहां तक कि भाजपा और ‘आप’ के बड़े नेता भी पार्षदों का मार्गदर्शन करने में पीछे नहीं रहे। इस हंगामे के बीच हनुमान चालीसा का पाठ भी हुआ। पूरी रात केवल और केवल ड्रामा हुआ, नहीं हुआ तो बस वो था एमसीडी की स्थायी समिति के सदस्यों का चुनाव। आपको लग रहा होगा कि एमसीडी के मेयर चुनाव के लिए तो महाभारत काफी समय से चल रही थी, उसके चुनाव के बाद ये एमसीडी की स्थायी समिति के सदस्यों के चुनाव को लेकर इतना बवाल क्यों?

क्या है स्टैंडिंग कमेटी
स्थायी समिति दिल्ली नगर निगम की सबसे शक्तिशाली समिति है। दिल्ली नगर निगम में मेयर और डिप्टी मेयर का निर्णय लेने की शक्ति बहुत कम है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि लगभग सभी तरह के आर्थिक और प्रशासनिक फैसले 18 सदस्यीय स्थायी समिति द्वारा लिए जाते हैं। उसके बाद ही उन्हें सदन में पारित होने के लिए भेजा जाता है। ऐसे में स्टैंडिंग कमेटी काफी ताकतवर होती है और इसका अध्यक्ष एक तरह से एमसीडी का असली मुखिया होता है।

नगर निगम दिल्ली के इतिहास में यह पहली बार था जब मेयर चुनने के लिए बुलाई गई बैठक पूरी रात चली। स्थायी समिति का चुनाव महत्वपूर्ण बन गया क्योंकि आम आदमी पार्टी की ओर से 6 पदों पर चार प्रत्याशी उतारे गए थे जबकि भाजपा के द्वारा तीन प्रत्याशी उतारे गए थे। भाजपा के अगर तीन प्रत्याशी जीतते तो वह अध्यक्ष के लिए फाइट में आ जाती। ऐसे में ‘आप’ की कोशिश है कि उसके खाते में चार पद आ जाएं।
मेयर चुनाव के बाद छह सदस्यों को एमसीडी हाउस में सीधे चुन लिया जाता है। वर्तमान में दिल्ली में एमसीडी 12 जोन में विभाजित है। हर जोन में एक वार्ड कमेटी होती है जिसमें क्षेत्र के सभी पार्षद और नामित एल्डरमैन शामिल होते हैं। स्टैंडिंग कमेटी में जोन प्रतिनिधि भी होते हैं। पार्षदों की जवाबदेही केवल अपने वार्ड तक होती है पर एल्डरमैन की पूरे नगर निगम के लिए होती है। यही कारण है कि भाजपा और आप ने स्थायी समिति के सदस्यों का चुनाव प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया। अगर भाजपा हारती है तो उसके पास दिल्ली में लोकल लेवल पर कुछ नहीं बचेगा। अगर बीजेपी स्थायी समिति में अपना दबदबा बनाने में सफल हो जाती है तो वह हारकर भी एमसीडी में जीत जाएगी। दिल्ली में स्थायी समिति के बगैर एमसीडी कुछ नहीं है इसलिए 16 घंटे तक पूरी रात एमसीडी सदन में जोर आजमाइश चलती रही।

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