1993 में मैनुअल स्केवेंजिग पर देश में रोक लगा दी गई थी और 2013 में कानून में संशोधन कर सीवर और सैप्टिक टैंक की मैनुअल सफाई पर रोक को भी इसमें जोड़ दिया गया था। लेकिन आपकी गलियों और शहरों की रौनक में अपना जीवन खपा देने वाले ये लोग विकास की कथित मुख्यधाराओं से बाहर हैं। इसलिए कानून बनने के बाद भी उन्हें अपना जीवन यापन करने के लिए सीवर में उतरना पड़ रहा है।
फिलहाल हमें और हमारी सरकारों को ये लोग दिखते नहीं हैं। और इनके बारे में सोचने की फुर्सत निजीकरण के इस दौर में भागते टकराते लोगों के पास भी नहीं है। यही सच्चाई है। इसलिए जब हम यह ख़बर पढ़ लेते हैं कि अब सीवर सफाई का काम मशीन करेगी तो यह मान लेते हैं कि अब सारा काम मशीन ही कर रही है। हम आंख खोलकर अपने ही मोहल्ले में सीवर में घुस रहे मजदूर को नहीं देख पाते हैं। अगर देख पाते तो शायद गाजियाबाद में पांच सीवर साफ़ करने वाले लोगो की मौत नहीं होती। 80 करोड़ की लागत से सिहानी गेट के नंदग्राम इलाके में अमृत योजना के तहत बनाए जा रहे सीवर लाइन में गत 21 अगस्त को यह हादसा हुआ। हादसे में 5 लोगों की जान गई। जलकल विभाग के सफाई कर्मचारी सीवर सफाई करने के लिए पहुंचे थे। पहले एक कर्मचारी सीवर सफाई करने के लिए नीचे उतरा और जहरीली गैस होने की वजह से नीचे ही बेहोश हो गया। इसी क्रम में एक के बाद एक 5 कर्मचारी नीचे उतरे लेकिन सभी जहरीली गैस की चपेट में आ गए। सभी नीचे बेहोश हो गए बाद में सभी को कड़ी मशक्कत के बाद निकाला गया। आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया, जहां पर डॉक्टर ने सभी को मृत घोषित कर दिया।
ज्यादातर सीवर साफ करने वाले मजदूर सीवर साफ करने के लिए कई तरीके अपनाते हैं। वे कमर से एक रस्सी बांधकर, हाथ में बाल्टी और फावड़े के साथ सीवर साफ करने के लिए उतरते है। जो सुरक्षा की नजर से बिलकुल सुरक्षित नहीं है। सीवर में काम करने से लगातार त्वचा संक्रमण, श्वसन विकार से जूझना पड़ता है। मौत का जोखिम उठाकर ये अपनी रोजी रोटी की व्यवस्था करते हैं।
लेकिन घटनास्थल के आसपास के लोगों के मुताबिक इन कर्मचारियों को किसी भी तरह का कोई सेफ्टी प्रबंध मसलन मास्क, जैकेट आदि सामान नहीं दिया गया था। हालांकि जिलाधिकारी ने पूरी घटना की जांच की बात कही है। जहां काम चल रहा था, उसके ठीक सामने एक जनरल स्टोर है। स्टोर संचालक रामवीर सिंह ने घटना की सूचना देकर आसपास के लोगों को बुलाया। उसने ही पुलिस को फोन कर बुलाया। मृतकों में से चार मजदूर बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले हैं। गाजियाबाद में उनका कोई परिजन नहीं रहता है । इस सम्बन्ध में ज्यादातर लोग बात करने से बचते नजर आये।
वार्ड नंबर 11 की पार्षद माया देवी ने बताया कि कृष्णाकुंज का मामला है, जहां जल निगम की पाइप डाली जा रही है और सीवर का कम चल रहा है। उसको लेकर वहां खुदाई चल रही है। ऐसे में ठेकेदार के दो लोग पहले गए। जब दो नहीं निकले तो दो और गए। इसके बाद एक और आदमी अन्दर गया। तीन की मौके पर मौत हो गई, जबकि दो ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। नंदग्राम के पास कृष्णा कुंज में उत्तर प्रदेश जल निगम के द्वारा नई सीवर लाइन को पुरानी सीवर लाइन से जोड़ने का काम चल रहा था। दोपहर 2.30 बजे जैसे ही एक मजदूर नई सीवर लाइन के चैंबर को पुरानी लाइन से जोड़ने के लिए ढक्कन हटाकर सीवर में उतरा, जहरीली गैस ने उसकी सांसें रोक दीं। बाहर खड़े मजदूरों ने अंदर उतरे साथी को आवाज लगाई, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। उसके बाद एक-एक कर चार और मजदूर सीवर में उतरे।सभी को आनन-फानन में अस्पताल पहुंचाया गया, जहां इलाज के दौरान सभी की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि सभी की मौत दम घुटने से हुई है।
फिलहाल घटना के बाद नगर निगम और जलकल विभाग एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे हैं। हलाकि इस मामले में जल विभाग के चार अधिकारिओ को निलंबित किया जा चूका है। जिनमे प्रकल्प खंड के अधिशासी अभियंता रविंद्र सिंह , यमुना प्रदूषण इकाई के महाप्रबंधक कृष्ण मोहन यादव , सहायक अभियंता प्रवीण कुमार आदि है। जबकि इस काम को करा रही ईएमएस एफराकोंन कम्पनी को ब्लैक लिस्टिड कर दिया गया है। ढेकेदार फरार है। उधर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने मृतकों के परिजनों को 10 – 10 लाख रुपए आर्टिक सहायता देने की घोषणा की है।
फिलहाल मामले की जांच की जा रही है. घटना कैसे हुई? ये लोग किसके कहने पर सफाई के लिए उतरे थे? उनके पास सुरक्षा के उपकरण थे कि नहीं सब की जांच की जाएगी।
सुधीर कुमार, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गाजियाबाद
देश में सीवर की सफाई करते हुए मजदूरों की जान जाने की दुर्घटनाएं आम हो गई हैं। आंकड़े बताते हैं कि हर पांच दिन में एक मजदूर की जान सीवर साफ करने के दौरान जान चली जाती है। कई बार ऐसा हुआ है कि एक मजदूर पहले जहरीली गैस की चपेट में आता है फिर उसे बचाने के चक्कर में दूसरों की भी जान चली जाती है। 2011 की जनगणना में पाया गया कि भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग के 7.94 लाख मामले सामने आए हैं। वहीं 2017 के बाद से हर 5 दिन में सीवर साफ करने के दौरान एक मृत्यु हो जाती है। सफाई कर्मचारियों के संगठन के अनुसार 2016 और 2018 के बीच दिल्ली में ही 429 मौतें हुईं.सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन आने वाले राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की वेबसाइट पर मिले आंकड़ों के मुताबिक 1993 से लेकर 2018 तक कुल 676 सफाईकर्मियों की सीवर में उतरने से मौत हुई है। इसमें सबसे ज्यादा 194 मौतें तमिलनाडु में हुई हैं। वहीं, गुजरात में 122, दिल्ली में 33, हरियाणा में 56 और उत्तर प्रदेश में 64 मौतें हुई हैं। इस साल के शुरूआती 6 महीनो में सीवर की सफाई के दौरान 50 से ज्यादा लोग जान गवा चुके है। जबकि पिछले ढाई दशक के दौरान सवा छह सौ लोग सीवर की सफाई के दौरान जहरीली गैस की चपेट में आकर मौत के मुँह में समा चुके है।
सीवर कर्मचारियों की स्थिति बहुत खराब है। उनकी तनख्वाह से लेकर उनकी सुविधाओं तक में कटौती की जाती है। लखनऊ में करीब 300 सीवर कर्मचारी हैं। इनमें से 150 के करीब नियमित होंगे बाकी के कॉन्ट्रैक्ट बेस हैं। कॉन्ट्रैक्ट बेस सफाई कर्मियों को सिर्फ साढ़े सात हजार तनख्वाह मिलती है। अब आप सोचिए कि आज के समय में इतने कम तनख्वाह में कैसे काम चलेगा।विजय कुमार धानुक, अध्यक्ष सीवर सफाई कर्मचारी संघ उत्तर प्रदेश
हाईटेक सिटी नोएडा में भी नहीं है बचाव के उपाय
21 सितंबर 2017 से लेकर 4 मई 2019 तक नोएडा में सीवर की सफाई के दौरान 5 लोगों की मौत हुई थी। बावजूद इसके अथॉरिटी ने अब तक सीवर की सफाई के लिए पुख्ता और हाइटेक इंतजाम नहीं किए हैं। आज भी ठेकेदार चोरी छिपे मजदूरों से मेन्युअली सीवर की सफाई करा रहे हैं। प्राधिकरण की माने तो कई सालों से नोएडा में सीवर की मेन्युअली सफाई बैन है। ऐसे में सवाल यह है कि अगर मेन्युअली सफाई बैन है तो सुपर सकर मशीन क्यों नहीं खरीदी जा रही है। क्या अथॉरिटी फिर से किसी हादसे का इंतजार कर रही है?
बताया जा रहा है कि नोएडा अथॉरिटी के पास एक भी सुपर सकर मशीन नहीं है। शहर में आए दिन सीवर ओवरफ्लो होते हैं। छोटी-छोटी मशीनों से किसी तरह काम चलाया जा रहा है। ज्यादा दिक्कत होने पर सुपर सकर मशीन किराए पर ले ली जाती है। करीब 3500 रुपये प्रति क्यूबिक मीटर के रेट से सीवर लाइन की सफाई कराई जाती है। अगर अथॉरिटी सुपर सकर मशीन खरीद ले तो किराए में खर्च होने वाले रुपये बचाए जा सकते हैं।
तीन जनवरी 2019 को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत द्वारा राज्यसभा में दिए एक बयान के अनुसार उच्चतम न्यायालय के 1993 के फैसले के मद्देनजर सफाईकर्मियों को 10 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाता है। अब तक 331 लोगों की मौत हुई है और उनमें से 210 लोगों के परिवारों को मुआवजा दिया जा चुका है। गहलोत ने कहा कि इस संबंध में 2013 में एक सर्वेक्षण किया गया था। 17 राज्यों के करीब 160 जिलों में इस संबंध में फिर से सर्वेक्षण किया जा रहा है।
दिल्ली सरकार की सराहनीय पहल