हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर है। हालांकि किसानों और जाटों की नाराजगी को देखते हुए कांग्रेस का पलड़ा भारी लग रहा है। कांग्रेस इस बार अपने 10 वर्ष के वनवास को खत्म करने की रणनीति बनाने में जुटी है तो भाजपा तीसरी बार हरियाणा की सत्ता पर काबिज होने के लिए हिंदुत्व और गैर जाट के दम पर मैदान में है। कांग्रेस ने पहलवानों और किसानों का समर्थन हासिल कर अपनी बढ़त बना ली है। बहरहाल दलित वोटरों पर सभी की नजरें टिकी हैं जो प्रदेश की सत्ता की चाबी कहा जा रहा है। गठबंधन और जातिगत समीकरण इस चुनाव परिणाम को त्रिशंकु विधानसभा की ओर ले जाते प्रतीत हो रहे हैं
मैं ने पिछले दो बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट दिया था। लेकिन भाजपा का सिर्फ धर्म और हिंदुत्व का एजेंडा मुझे अच्छा नहीं लगता है। एक दशक तक भाजपा के शासन में रहने के बावजूद लोगों के जीवन में कोई सुधार नहीं हुआ है। इस बार मैं भाजपा को वोट नहीं दूंगी।’’ यह कहना है फरीदाबाद के बदरौला निवासी पूनम सराधना का। पूनम के भाजपा विरोधी बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हरियाणा चुनाव में इस बार दो बार सत्ता में रही बीजेपी को एंटी एनकम्बेंसी का सामना करना पड़ सकता है। सवाल है कि क्या ऐसे में हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर निर्णायक साबित होगी? क्या वोट बंटेंगे? किस हद तक जातिगत समीकरण यह तय करेंगे कि सत्ता किसके हाथ आएगी? उक्त सभी सवालों के जवाब 8 अक्टूबर को उस समय सामने आएंगे जब चुनाव परिणाम घोषित होंगे। फिलहाल प्रदेश की सभी 90 विधानसभा सीटों पर चुनावी अखाड़े सजे हुए हैं जिसमें सभी दल जोर आजमाइश में लगे हैं। लेकिन चुनावी बयार में किसकी बहार आएगी यह देखना बाकि है।
गौरतलब है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता की हैट्रिक लगाने की रणनीति बनाने में जुटी है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस दस साल बाद सत्ता में वापसी के लिए बेताब है। इनेलो और जेजेपी जैसे दल अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की जंग लड़ रहे हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि सभी की निगाहें दलित वोटों पर टिकी हैं। राज्य में जाटों के बाद दूसरा सबसे बड़ा मतदाता दलित ही है। कांग्रेस जाटों के साथ ही दलित वोटों के समीकरण पर विशेष ध्यान दे रही है। भाजपा ने पूर्व में दलित सम्मेलनों के जरिए उनका भरोसा जीतने की पूरी कोशिश की है। दलित मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के मद्देनजर ही इनेलो ने बसपा तो जेजेपी ने आजाद समाज पार्टी (चंद्रशेखर) जैसे दलित आधार वाले दलों के साथ गठबंधन कर लिया है। ऐसे में देखना है कि दलित समाज किसका खेल बनाते हैं और किसका बिगाड़ने का काम करेंगे?
हरियाणा की सियासत में 20 फीसदी दलित वोटर काफी अहम हैं, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। सूबे की 17 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, जो दलित बाहुलय हैं। पूरे प्रदेश में देखें तो दलित समुदाय 35 विधानसभा सीटों पर महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। इस बार जिस तरह से दलित वोटों पर सभी दलों की निगाहें हैं, उसके चलते दलित वोटों की सियासी अहमियत को समझा जा सकता है।
चुनावी अखाड़े में मजबूती से उतरी कांग्रेस हरियाणा की सत्ता में वापसी के लिए पूरी तरह से जाट और दलित वोटों पर निर्भर है। हरियाणा में जाट करीब 30 प्रतिशत हैं। 30 प्रतिशत जाट और 20 प्रतिशत दलितों के वोट बैंक का हिसाब लगाएं तो कांग्रेस 50 फीसदी वोटबैंक को अपने साथ जोड़ने का लक्ष्य लेकर चुनावी अखाड़े में है। बताया जा रहा है कि हरियाणा में जब से भाजपा ने गैर जाट राजनीति शुरू की थी तभी से कांग्रेस जाटों के साथ ही दलित का समीकरण साधने में लगी थी। इसी समीकरण के हिसाब से भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पार्टी का सर्वोच्च नेता बनाया गया है जबकि उनके साथ दलित नेता चौधरी उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। यही नहीं बल्कि इसके अलावा हरियाणा में कुमारी शैलजा कांग्रेस में दलितों का बड़ा चेहरा हैं। तीनों की तिगड़ी मिलकर जद (जाट-दलित) गठजोड़ को मजबूत करने में जुटी है।
इस बार कांग्रेस ने युवाओं में पैंठ बनाने को एक बड़ा दांव खेला है। जिसमें पार्टी ने पहलवान विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया को अपने साथ जोड़ा है। दोनों ने आंदोलनकारी किसानों का भी समर्थन किया है। अब जब फोगाट जुलाना से चुनाव लड़ रही हैं, तो कांग्रेस महिलाओं, युवाओं और किसानों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सधे कदम उठा रही है। हरियाणा में लोकसभा में कुल दस सीटें हैं। गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 10 में से 5 सीटें जीतने के बाद से उत्साहित है। गत माह किए गए सीएसडीएस- लोकनीति के सर्वेक्षणों ने कांग्रेस को बढ़त हासिल करते हुए दिखाया है। इस सर्वेक्षण में खुलासा किया गया था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के वोट शेयर में काफी वृद्धि हुई है। जिसका आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फायदा मिलने के कयास लगाए जा रहे हैं।
उधर दूसरी तरफ भाजपा जाति और धार्मिक समीकरणों के हिसाब से हरियाणा में अपनी सफलता गैर-जाट मतदाताओं पर आधारित मानती है। इस चलते भाजपा हरियाणा चुनाव को जाट बनाम गैर-जाट बनाने की कोशिश में जुटी है। कहा जाता है कि जाट, जो कि हरियाणा की आबादी का 30 प्रतिशत हिस्सा हैं, आमतौर पर भाजपा का समर्थन नहीं करते हैं। जाट भाजपा से नाखुश हैं और इस पार्टी को ब्राह्माणों और पंजाबी हिंदुओं की पार्टी मानते हैं। रही बात स्थानीय पार्टियों की तो उसकी भी दाल भाजपा के साथ नहीं गली। 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जेजेपी ने भाजपा से नाता तोड़ दिया था। जेजेपी मुखिया दुष्यंत चौटाला ने भाजपा से अपना गठबंधन तोड़कर अपने से दूर होते किसानों को अपनी तरफ आकर्षित करने का काम किया है। हालांकि दुष्यंत चौटाला के इस कदम से जेजेपी के 4 नेता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। हरियाणा खासकर किसान बाहुल्य इलाकों में भाजपा की स्थिति यह है कि अप्रैल-मई में हुए लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान, कई गांवों ने भाजपा की रैलियों और सभाओं का बहिष्कार किया था।
गौरतलब है कि पंजाब के किसानों के साथ-साथ हरियाणा के किसान भी कृषि कानूनों पर भाजपा के रुख के खिलाफ थे। 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने के बावजूद भी किसान अपनी पर मांगों अडे हुए हैं। इस दौरान किसानों की मौत पर भाजपा की चुप्पी किसानों को रास नहीं आई थी इसको लेकर वे आज भी नाराज हैं। किसान बाहुल्य हरियाणा के विधानसभा चुनावों में ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन 10 साल से सत्ता का स्वाद ले रही भाजपा को फिलहाल मतदाताओं के बीच जाकर दांत खट्टे होना उसके लिए चिंतित करने वाला है।
कहीं जाट न खड़ी कर दे भाजपा की खाट
भाजपा अपने दम पर 2014 और 2019 में हरियाणा में अपनी सरकार बना चुकी है, लेकिन इस बार की राह उसकी आसान नहीं लग रही है। भाजपा के लिए इस बार के विधानसभा चुनाव में कई चुनौतियां लेकर सामने आ रहे है। इसमें किसानों का मुद्दा काफी अहम है। कृषि कानूनों के विरोध में चले किसान आंदोलन का हरियाणा में अच्छा-खासा प्रभाव रहा था और भाजपा को वहां लोकसभा चुनाव में भी किसान राजनीति वाली बेल्ट में काफी नुकसान उठाना पड़ा था। भाजपा के सामने एक बड़ी मुश्किल यह है कि जाटों की नाराजगी कैसे दूर करें। जाट समुदाय की हरियाणा में आबादी 30 प्रतिशत तक है। इतने बड़े समुदाय की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है। पिछले साल जब महिला पहलवानों ने भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाया था तो हरियाणा में काफी बवाल मचा था। भाजपा ने इस मुद्दे पर हरियाणा में जाट समुदाय की नाराजगी को देखते हुए बृजभूषण शरण सिंह को टिकट नहीं दिया था लेकिन उनकी जगह उनके बेटे को टिकट दिया और वह जीत कर सांसद बने हैं। फिलहाल राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि जाट भाजपा की खाट खड़ी कर सकते हैं।