प्रदेश में पर्यटन और शीतकालीन खेलों को बढ़ावा देने का नतीजा यह है कि करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद दस साल बाद भी देहरादून में आईस स्केटिंग रिंग का निर्माण अधूरा है। हैरतनाक यह है कि करोड़ों के निर्माण कार्य का ठेका देने के लिए सत्ता में बैठे लोगों, नौकरशाहों, आयोजन समिति को कुछ ज्यादा ही बेसब्री रही। जिस कंपनी को आईस स्केटिंग जैसे महत्वपूर्ण कार्य का कोई अनुभव नहीं था उसे करोड़ों का ठेका दे दिया गया। निर्माण के लिए विभागीय डीपीआर बनाने और एमओयू तक की जरूरत नहीं समझी गई। निर्माण का बजट बढ़ाकर 85 करोड़ कर दिया गया। स्वभाविक है कि यह सब करोड़ों रुपए के घोटाले को अंजाम देने के लिए ही किया गया। हालांकि 2009 से लेकर अब तक चार मुख्यमंत्री राज्य में शासन कर चुके हैं। हर बार इस मामले में सख्त कार्रवाई की बातें हुई, लेकिन नतीजा जीरो है। जीरो टॉलरेंस की सरकार के खेल मंत्री अरविंद पाण्डे ने आईस स्केटिंग रिंग प्रकरण को मकबरे की संज्ञा अवश्य दी है, लेकिन सरकार की ओर से कोई कार्रवाई होती नहीं दिखाई दी है
सत्ता में बैठे लोगों, नौकरशाहों और ठेकेदारों का गठजोड़ किस तरह जनता की गाढ़ी कमाई को लूटता है, इसे देहरादून के रायपुर स्थित महाराणा स्पोर्ट कॉलेज में आईस स्केटिंग रिंग के निर्माण से समझा जा सकता है। हैरानी की बात यह कि जनता के पैसों को बर्बाद करने वाले आज भी शासन-प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर तैनात हैं। सबसे हैरतनाक यह है कि इस पूरे घोटाले को किसी एक सरकार नहीं, बल्कि चार-चार मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में किया जाता रहा और हर मुख्यमंत्री इस पर कार्यवाही करने के बजाय मामले को ठंडे बस्ते में ही डालने का काम करते रहे।
उत्तराखण्ड राज्य को वर्ष 2009 में दक्षिण एशियाई शीतकालीन खेलों यानी सैफ विंटर गेम्स की मेजबानी मिली। जिसके लिए भाजपा की तत्कालीन भुवनचंद्र खण्डूड़ी सरकार द्वारा सैफ विंटर गेम्स ऑर्गेनाइजिंग कमेटी का गठन किया गया। केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने उत्तराखण्ड को विंटर गेम्स के आयोजन के लिए जरूरी सुविधाएं जुटाने के लिए करोड़ों का फंड अवमुक्त किया था। इसी करोड़ों के फंड को लूटने का काम कमेटी ने किया। बगैर किसी तैयारी, अनुभव के चलते राज्य में सरकारी धन की बर्बादी हुई। इसके साथ ही यह भी साफ हो गया कि उत्तराखण्ड इस तरह के खेलों का आयेजन करवाने में सक्षम नहीं है।
विंटर गेम्स के आयोजन के लिए बनी कमेटी द्वारा देहरादून के महाराणा प्रताप स्पोर्ट कॉलेज में पहली बार राज्य में आईस खेलों के आयोजन के लिए आईस रिंग के निर्माण का निर्णय लिया गया। केंद्र सरकार द्वारा मुक्तहस्त से इन खेलों के आयोजन के लिए बजट दिया गया। यानी धन की किसी प्रकार की कमी नहीं थी। बस यही एक सबसे बड़ा कारण था जिसके चलते राज्य में जमकर सैफ खेलों के नाम पर लूट-खसोट की गई।
घोटाले का पहला चरण
घोटाले को अंजाम देने के लिए किस- किस तरह से प्रपंच किए गए यह भी बड़ी दिलचस्प कहानी है जिसके सूत्रधार दक्षिण एशियाई शीतकालीन खेलों की आयोजन कमेटी और शासन में बैठे उच्चपदस्थ नौकरशाहों और निर्माण कंपनी के बीच गठजोड़ हुआ और फिर घोटाले को अंजाम दिया गया। सबसे पहले कमेटी द्वारा प्रस्ताव बनाया गया कि राज्य में शीतकालीन खेलों के आयोजन से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। कमेटी द्वारा इसके लिए एक आईस हॉकी रिंग के साथ-साथ स्वीमिंग पूल और लैंड स्केपिंग यानी सौंदर्यीकरण का काम किया जाना तय किया गया। तकरीबन 50 करोड़ इसकी लागत तय की गई। यहां पर एक बात समझनी जरूरी है कि सरकार द्वारा हर निर्माण कार्य के लिए डीपीआर बानाई जाती है, लेकिन इस काम के लिए कोई डीपीआर नहीं बनाई गई। बावजूद इसके इस करोड़ों के काम के लिए टेंडर मांग लिए गए।
यहीं से पूरा खेल आरंभ किया गया। सूत्रों की मानें तो कमेटी के बड़े सूत्रधारों जिसमें नौकरशाहों का दखल सबसे अधिक था, ने टंडर निकाले जाने से पहले निर्माण कंपनी की खोज की जिससे केंद्र सरकार द्वारा दिए गए करोड़ों रुपयों से अपना हित साधा जाए। इसी कड़ी में दिल्ली में रियल स्टेट का करोबार करने वाली कंपनी पाईन एंड पीक डेवलपर्स लिमिटेड के एमडी मुकेश जोशी सामने आए। मुकेश जोशी भले ही मूल रूप से उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले के हों, लेकिन उत्तराखण्ड में कंपनी को किसी तरह का काम करने का अनुभव नहीं था। बताया जाता है कि इसके लिए बकायदा एक कैंपेनिंग चलाई गई और शासन- प्रशासन के अलावा सरकार में बैठे लोगों द्वारा कंपनी के लिए लाल कारपेट बिछाकर प्रदेश में स्वागत किया गया।
घोटाले का दूसरा चरण
अब इस पूरे खेल के दूसरे चरण को अंजाम दिया गया। सैफ खेलों के तहत आईस खेलों के आयोजन के लिए देहरादून के रायपुर स्थित महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज के परिसर को आयोजन स्थल बनाया गया। इसी स्पोर्ट कॉलेज में आईस खेलों की प्रतियोगिताएं आयोजित की जानी थी।
वर्ष 2007 में राज्य में भाजपा की सरकार बनी थी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खण्डूड़ी ने कमान संभालते ही राज्य में निर्माण कार्यों के लिए उत्तराखण्ड राज्य अवस्थापना निगम की स्थापना की। उन्होंने बड़े निर्माण कार्य निगम को दिए जाने के आदेश जारी किए थे। साथ ही निर्माण कार्यों के लिए कम से कम तीन टेंडर की शर्त का कड़ाई से पालन करने का आदेश भी जारी किया गया था। लेकिन बीसी खण्डूड़ी की कड़क छवि भी इस घोटाले की नींव को पड़ने से रोकने में नाकाम रही। नतीजतन
नौकरशाहों, सरकार में बैठे लोगों और ठेकेदार के मजबूत गठजोड़ के चलते इस पूरे घोटाले और सरकारी धन की बर्बादी को रोका नहीं जा सका।
खण्डूड़ी सरकार के तमाम आदेशों को पूरी तरह से दरकिनार किया गया और बकायदा टेंडर मांगे गए। आश्चर्यजनक है कि करोड़ों के इस निर्माण के लिए केवल एक ही कंपनी पाईन एंड पीक डेवलपर्स लिमिटेड ने टेंडर भरा जिसका इस तरह के निर्माण का कोई अनुभव तक नहीं था। पाईन एंड पीक डेवलपर्स को तकनीकी अनुभव न होने से मामला उलझ गया तो उसने लुईस वर्जर को अपनी सहयोगी कंपनी बनाकर टेंडर की शर्तों को पूरा किया। दावा किया गया कि सहयोगी कंपनी को इस तरह के काम का अनुभव है। पाईन एंड पीक डेवलपर्स को अनुभव और उत्तराखण्ड में काम करने का कोई इतिहास न होने के बावजूद करोड़ों का ठेका एक तरह से तश्तरी में रखकर सौंप दिया गया।
किस तरह से इस घोटाले को अंजाम दिया गया यह इस बात से समझा जा सकता है कि शासन द्वारा करोड़ों के इस निर्माण के लिए कोई भी एमओयू तक साइन नहीं किया गया। महज सैफ विंटर गेम्स ऑर्गेनाइजर कमेटी के और पाईन एंड पीक डेवलपर्स के साथ एक अनुबंध लिखकर करोड़ों का काम दिया गया। न तो पहले इस निर्माण के लिए कोई विभागीय डीपीआर बनाई गई और न ही एमओयू साइन किया गया, इससे साफ है कि यह पूरा खेल घोटाले को अंजाम देने के लिए किया गया था। यही नहीं इसका बजट बढ़ाकर 85 करोड़ तक कर दिया गया।
सूचना अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार आईस स्केटिंग रिंग के निर्माण में पाईन एंड पीक डेवलपर्स द्वारा ही टेंडर डाला गया, जबकि आईस स्केटिंग रिंग का काम आज 10 वर्ष के बाद भी पूरा नहीं हो पाया है। सैफ खेलों में पूरी तरह से अव्यवस्थाओं का आलम यहां तक था कि औली जैसे क्षेत्र में भी स्केटिंग के लिए बर्फ नहीं जम पाई और देहरादून में आईस खेल भी नहीं हो पाया। गोर करने वाली बात यह है कि 2009 में शीतकालीन खेलों का आयोजन होना था और इसके लिए आठ माह में ही आईस स्केटिंग रिंग और अन्य जरूरी सुविधाएं पूरी किए जाने की शर्त रखी गई थी। लेकिन दस वर्ष बीत जाने के बाद भी न तो आईस स्केटिंग रिंग का निर्माण पूरा हो पाया है और न ही राज्य में इस तरह के खेलों को कोई बढ़ावा ही मिल पाया है।
राज्य में एक बार फिर से नेतृत्व परिवर्तन हुआ और रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ मुख्यमंत्री बने। निशंक के कार्यकाल में ही सैफ खेलों का आयोजन किया गया, जबकि इन खेलों में कई गंभीर अनियमितताआें की खबरें आती रहीं और कांग्रेस ने इसे एक मुद्दा भी बनाया। मुख्यमंत्री निशंक ने भी इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया और जिस आईस हॉकी रिंग को 8 माह में बन जाना चाहिए था वह निश्ांक के कार्यकाल में भी पूरा नहीं हो पाया। हालांकि इस दौरान कई बार इसके लिए बैठकें होती रहीं।
समाचार पत्रों में सरकार औेर आयोजन कमेटी की जमकर फजीहत हुई तो कमेटी द्वारा कठोर कार्यवाही करने की बातें होने लगी। इसके लिए कई बैठकें भी की गईं। हर बैठक का लव्वोलुआब यही था कि समय पर काम पूरा किया जाए। इन बैठकों से क्या हासिल हुआ यह इस बात से पता चल जाता है कि 22 अगस्त 2008 से लेकर 2 फरवरी 2012 तक कुल 19 बैठकें कमेटी और शासन द्वारा की गईं जिसमें हर बैठक में पाईन एंड पीक डेवलपर्स के संचालक मुकेश जोशी भी शामिल रहे।
अपनी खाल बचाने के लिए कमेटी द्वारा पाईन एंड पीक डेवलपर्स के एमडी मुकेश जोशी को समय पर कार्य पूरा नहीं करने पर कार्यवाही की चेतावनियां दी जाती रहीं। 10 मार्च 2009 की बैठक में पाईन एंड पीक डेवलपर्स के खिलाफ दंड वसूले जाने का निर्णय भी लिया गया। इसके लिए तत्कालीन सचिव उत्पल कुमार सिंह जो कि वर्तमान में राज्य के मुख्य सचिव भी हैं, ने निदेशक खेल निदेशालय को स्पष्ट तौर पर आदेश किया कि समय पर कार्य पूरा न होने पर कुल लागत के आंगणन का दस प्रतिशत निर्माण इकाई से बसूला जाए। लेकिन इस मामले में वही सब कुछ हुआ जो कि पूर्व की बैठकों में लिए गए निर्णयों का हश्र हुआ। पाईन एंड पीक डेवलपर्स से एक भी पाई दंड के नाम पर नहीं वसूली जा सकी है।
सबसे गंभीर सवाल यह है कि आखिर किसके इशारे और दबाव में पाईन एंड पीक डेवलपर्स पर कार्यवाही नहीं की गई, जबकि दस वर्ष बीत चुके हैं और आज तक न तो आईस स्केटिंग रिंग औेर न ही लैंड स्केपिंग का काम पूरा हो पाया है। यहां तक कि जिस स्वीमिंग पूल का निर्माण पूरा दिखाया गया है वह भी मानकों के अनुसार नहीं है। दर्शकों की तो छोड़िए खिलाड़ियों के बैठने की व्यवस्था तक स्वीमिंग पूल में नहीं बनाई गई है।
मार्च 2012 में राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ लेकिन राज्य को आईस स्केटिंग रिंग का तोहफा नहीं मिल पाया। तत्कालीन कांग्रेस की विजय बहुगुणा सरकार पर गंभीर सवाल उठने लगे तो अपनी साख बचाने के लिए आईस स्केटिंग रिंग के पूरा होने की बात प्रचारित की जाने लगी। फरवरी 2013 को सरकार द्वारा साफ किया गया कि आईस स्केटिंग रिंग और जरूरी सुविधाएं जैसे स्वीमिंग पूल और लैंड स्केपिंग का कार्य पूर्ण हो गया है और सरकार को जल्द ही इसका स्वामित्व मिल जाएगा।
तत्कालीन सरकार ने इसको अपनी एक बड़ी उपलब्धि बताते हुए आईस स्केटिंग रिंग को राज्य के खेलों के लिए ऐतिहासिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसा नहीं कि कांग्रेस सरकार ने इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया हो। तत्कालीन खेल मंत्री दिनेश अग्रवाल ने इस पूरे प्रकरण में नारजगी जताते हुए सैफ विंटर खेलों के आयोजन में खर्च की गई धनराशि का हिसाब मांगा।
दिलचस्प यह है कि मंत्री दिनेश अग्रवाल कार्यवाही करने की बात तो कहते रहे लेकिन स्वयं ही उन्होंने आईस स्केटिंग रिंग को समय पर पूरा किए जाने के आदेश भी दिए। जिससे साफ हो गया कि सरकार में कोई भी हो पाईन एंड पीक डेवलपर्स पर कार्यवाही होना दूर की कौड़ी ही है। बहुगुणा सरकार के समय इस आईस स्केटिंग रिंग को पीपीपी मोड पर संचालित करने की बात की गई। बकौल सरकार इससे राज्य में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा लेकिन जो आईस स्केटिंग रिंग आज तक पूरी तरह से मानकों पर खरा नहीं उतर पाया है और न ही उसकी सभी सुविधाएं पूरी हो पाई हों औेर तो और आज तक सरकार को हैंड ओवर तक नहीं हो पाया हो, इस पर न तो जिम्मदार लोग कुछ कहना चाहते हैं ओैर न ही वर्तमान सरकार कोई प्रयास कर रही है।
वर्तमान भाजपा सरकार में खेल मंत्री अरविंद पाण्डे भी आईस स्केटिंग रिंग के प्रकरण में कार्यवाही करने से बच रहे हैं, जबकि स्वयं पाण्डे ने आईस स्केटिंग रिंग को एक मकबरा तक कहा है। अभी तक न तो सरकार द्वारा सरकारी खजाने से की गई लूट पर कोई कार्यवाही करने का प्रयास किया गया है और न ही इसके लिए कोई दावा किया है, जबकि अब यह आईस स्केटिंग रिंग चाहे अधूरा ही सही लेकिन पूरा हो चुका है। इस पर सरकारी खजाने से 85 करोड़ खर्च हो चुके हैं। बावजूद इसके अभी तक इसका कोई उपयोग नहीं किया जा रहा है। सरकार स्वयं ही असमंजस में है। खेल विभाग और पर्यटन विभाग भी असमंजस में है। सरकार की पीपीपी मोड पर संचालन करने की घोषणा भी अमल में नहीं आ पाई है। हालांकि सरकार के दावे हैं कि इसे स्पोर्ट स्टेडियम चलाने वाली कंपनी को ही संचालन के लिए दिया जाएगा। लेकिन जिस रिंग का हैंडओवर सरकार को ही नहीं मिला उसको किस आधार पर किसी दूसरी संस्था को दिया जा सकता है, यह समझ से परे है।
बात अपनी-अपनी
जब मैं खेल मंत्री बना तो मैंने इस मामले की समीक्षा की थी। स्केटिंग रिंग का काम पूरा हो चुका था, लेकिन इसमें कई तकनीकी खामियां थी। निर्माण में भी बहुत देरी हो रही थी। इसको लेकर मैंने विभाग और अधिकारियों को निर्देश भी दिए थे। मामला पुराना है इसलिए ज्यादा तो नहीं बता सकता। लेकिन तब हमें प्रतियोगिता भी करवानी थी और 30 देशों के खिलाड़ियों को हमने इस रिंग में प्रतियोगिता भी करवाई। इतना मुझे याद है कि इस आईस स्केटिंग रिंग के निर्माण और ऑली में आईस मशीन के काम में बहुत देरी हुई। स्केटिंग रिंग के रखरखाव के लिए बाहर की कंपनियों को बुलाया जाता था जिसमें बहुत खर्चा आ रहा था। ऑली में मशीनें जंक खाती रही हैं। उनका कुछ काम नहीं हो पाया। निश्चित ही इसमें कुछ तो कमियां जरूर हैं, यह मैं मानता हूं। वर्तमान खेल मंत्री भी इसकी समीक्षा करन वाले हैं। मुझको लगता है कि जल्द ही हमारे प्रदेश को इस आईस स्केटिंग रिंग का फायदा मिलेगा।
खजान दास, पूर्व खेल मंत्री
भइया, अब बात बहुत पुरानी हो गई है। मुझे याद नहीं है कि मैंने इससे संबधित कोई आदेश दिए होंगे। मैंने अगर कोई आदेश दिए भी होंगे वह डिपार्टमेंट मीटिंग में दिए होंगे। उन पर क्या कार्यवाही हुई इसकी मुझे जानकारी नहीं है। मुझे जो जानकारी है उसके मुताबिक इस सरकार ने स्डेडियम चलाने वाली कंपनी को ही इसका संचालन दे दिया है। आईस स्केटिंग रिंग को सरकार को हैंडओवर हुआ है या नहीं यह तो सरकार ही बता सकती है या सेक्रेट्री ही बता सकते हैं।
दिनेश अग्रवाल, पूर्व खेल मंत्री