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सीपीजे रिपोर्ट: दुनियाभर में हो रही पत्रकारों की हत्या का कारण बना उनका काम

बिहार के मिथलांचल क्षेत्र में स्वास्थ माफियाओं का पोल खोलने वाले पत्रकार अविनाश झा, की पिछले दिनों निर्मम हत्या कर दी गई। यह ‘सुशासन बाबू’ कहे जाने वाले नीतीश राज में हुआ। इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होने जगल राज ख़त्म कर बिहार में ‘सुशासन’ स्थापित किया है। जब ‘सुशासन’ वाले राज्य में पत्रकारों की यह दशा है तो देश भर में इनकी स्थिति का आकलन आसानी से किया सकता है। पूरे देश में पिछले कुछ वर्षों से लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर लगातार हमले हो रहे है। सिर्फ भारत में नहीं बल्कि दुनिया भर से  ऐसी खबरें आ रही हैं। पत्रकारों का एक अमेरीकी संगठन कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि होती है।  

 
 
पत्रकारों के लिए बनी एक अंतरराष्ट्रीय ‘कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’  (सीपीजे)ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया है  कि इस साल 1 दिसंबर तक 293 पत्रकारों को जेल मेंडाला गया  था। इन 293 पत्रकारों में से 40 फीसदी पत्रकार महिलाएं हैं।  9 दिसंबर को प्रेस की स्वतंत्रता और मीडिया पर हमलों पर अपनी सालाना रिपोर्ट में सीपीजे ने कहा कि वर्ष 2021 में दुनिया भर में  रिपोर्टिंग के कारण कम से कम 24 पत्रकारों की हत्या की गई है। जबकि 18 लोगों की ऐसी परिस्थितियों में मौत हुई, जिसमें उनकी मौत का कारण उनके काम को माना गया। अमेरिका स्थित इस संस्था ने कहा कि अलग-अलग देशों में पत्रकारों को जेल में डालने के अलग-अलग कारण रहे। लेकिन अधिकतर पत्रकारों को दुनियाभर में राजनीतिक उथल-पुथल और स्वतंत्र रिपोर्टिंग के प्रति बढ़ती असहिष्णुता के कारण जेल जाना  पड़ा। 2021 भारत में मारे गए पत्रकारों की संख्या 4 है। 
 
इनमे बिहार के बीएनएन न्यूज के अविनाश झा की हत्या शामिल है। इन्होंने  हाल ही में बिहार में मेडिकल माफियाओं को लेकर खुलासा किया था।दूसरे सुदर्शन टीवी के मनीष कुमार सिंह और पुलित्जर विजेता रॉयटर्स के पत्रकार दानिश सिद्दीकी हत्या तालिबान ने कर दी थी।  जबकि एक पत्रकार की मौत विरोध प्रदर्शन को कवर करने के दौरान हुई। 
 
सबसे ज्यादा पत्रकारों को जेल में भेजने के मामले में चीन लगातार तीसरे साल पहले स्थान पर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक वहां 50 पत्रकार जेल में बंद हैं। इसके बाद दूसरे नबंर पर म्यामार  में 26 पत्रकार जेल में बंद हैं।  खास बात ये है कि इससे पहले साल 2020 में यहां एक भी पत्रकार जेल में नहीं था, लेकिन इस साल फरवरी में आंग सांग सू सैन्य तख्तापलट करने के बाद पत्रकारों की स्थिति खराब हुई है। इसके बाद मिस्त्र, वियतनाम और बेलारूस का नंबर आता है।
 
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इस समय सात पत्रकार जेल में हैं।  जिसमें ‘कश्मीर नैरेटर’ के आसिफ सुल्तान, ‘प्रभात संकेत’ के तनवीर वारसी और पांच फ्रीलांसर- क्रमश: आनंद तेलतुम्बड़े, गौतम नवलखा, मनन डार, राजीव शर्मा और सिद्दीक कप्पन शामिल हैं। इसी तरह कई चर्चित पत्रकार जैसे कि चीन की 37 वर्षीय पत्रकार झांग झान, जिन्होंने कोरोना वायरस के शुरुआत में चीनी सरकार के दावों के विपरीत वुहान के अस्पतालों में मरीजों की भीड़ दिखाई थी। बेलारूस के पत्रकार रमन प्रतसेविच और खेल पत्रकार ऑलेक्जेंडर इवुलिन इत्यादि जेलों में बंद हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, कम से कम 17 पत्रकारों को साइबर अपराध के आरोप में जेल में डाला गया है। पश्चिम अफ्रीकी देश बेनिन में दो पत्रकारों पर देश के डिजिटल कोड के तहत आरोप लगाए गए हैं। इसे  मीडिया की स्वतंत्रता पर एक बड़े खतरे के रूप में देखा जाता है। इस रिपोर्ट को तैयार करने के दौरान उत्तरी अमेरिका में किसी पत्रकार को जेल में नहीं डाला गया था। मालूम हो कि भारत में पत्रकारों को नए डिजिटल मीडिया नियमों, पेगासस स्पायवेयर इत्यादि के जरिये डराने-धमकाने की कोशिश की जा रही है। पेगासस के तहत यह खुलासा हुआ था कि इजरायल की इस स्पायवेयर के जरिये नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी कर रहे हैं। 

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