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कोवैक्सीन केवल 50% प्रभावी, द लैसेंट के चौंकाने वाले निष्कर्ष!

दिल्ली AIIMS समेत देश के छह शहरों में शुरू हुआ कोरोना वैक्सीन का मानव परीक्षण

कोरोना के खिलाफ भारत और अमेरिका सहित कई देशों ने टीके विकसित किए हैं। कोरोना से त्रस्त विश्व भर के वैज्ञानिकों ने कोरोना वैक्सीन बनाई और इसमें भारत भी अग्रणी रहा। दुनिया के तमाम देश धीरे-धीरे भारत में बनी वैक्सीन का लोहा मान रहे हैं। कई दावे हुए कि भारतीय वैक्सीन बेहद प्रभावी हैं। कुछ हालिया रिपोर्ट्स अभी भी इसकी पुष्टि करती हैं। वर्तमान में भारत की स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन कोरोना के खिलाफ 77.8 फीसदी प्रभावी रही है। मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित हुई स्टडी से इस बात की जानकारी मिली है। लेकिन द लैंसेट की ही एक रिपोर्ट बताती है कि जब कोरोना से देश बुरी तरह बेहाल था,तब कोवैक्सीन केवल 50 प्रतिशत प्रभावी थी ।

गौरतलब है कि भारत में सबसे पहले कोविशील्ड वैक्सीन का प्रयोग किया गया था। इसके बाद हैदराबाद में भारत बायोटेक द्वारा निर्मित कोवैक्सीन को भी आपातकालीन उपयोग के लिए केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया था। विश्व स्वास्थ्य परिषद द्वारा हाल ही में कोवैक्सीन की मंजूरी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोवैक्सीन के उपयोग की बाधा को भी दूर कर दिया है। हालांकि, लैंसेट पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में कोवैक्सीन के बारे में चौंकाने वाले निष्कर्ष सामने आए हैं। अध्ययन के अनुसार, अध्ययन समूह में कोवैक्सीन केवल 50 प्रतिशत प्रभावी पाई गई ।

ये लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के निष्कर्ष हैं। इस स्टडी के लिए दिल्ली के एम्स अस्पताल के कुल 2,714 स्वास्थ्य कर्मियों की जांच की गई। कर्मचारी कोरोना के लक्षणों का अनुभव कर रहे थे और 15 अप्रैल से 15 मई के बीच RTPCR परीक्षण किया था। इन सभी कर्मचारियों कोवैक्सीन की खुराक दी गई। अध्ययन परीक्षणों से पता चला है कि इन कर्मचारियों पर कोवैक्सीन की दो खुराक 50 प्रतिशत प्रभावी थीं।

कोवैक्सीन की दो खुराक के बाद परीक्षण

अध्ययन मुख्य रूप से तब किया गया जब देश में कोरोना की दूसरी लहर सबसे गंभीर थी। इस बीच कोरोना के कुल मामलों में से 80 प्रतिशत डेल्टा वैरियंट के कारण बताए गए थे। इस दौरान जिन स्वास्थ्य कर्मियों के कोरोना से संक्रमित होने की सबसे अधिक संभावना है, उनके नमूने अध्ययन के लिए लिए गए। इन स्वास्थ्य कर्मियों को कोवैक्सीन के टीके की खुराक दी गई।

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निष्कर्ष क्या है?

देश में 16 जनवरी से स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स का टीकाकरण शुरू हो गया है। एम्स ने 23,000 कर्मचारियों को कोवैक्सीन का टीका लगाया। इस अध्ययन के लिए चुने गए 2 हजार 714 कर्मचारियों में से 1 हजार 617 कर्मचारी वैक्सीन की दो खुराक लेने के बाद भी कोरोना से संक्रमित पाए गए।

टीका कम प्रभावी क्यों है?

ध्ययन कुछ कारण भी बताता है कि क्यों केवल 50 प्रतिशत ही प्रभावी है। इनमें से अधिकांश स्टाफ परीक्षण टीकाकरण के पहले 20 दिनों के भीतर किए गए थे। साथ ही यह स्टडी तब की गई जब कोरोना सबसे गंभीर रूप में था। इसके अलावा, अध्ययन कोरोना के उच्चतम जोखिम वाले उच्च जोखिम वाले अस्पताल के कर्मचारियों पर किया गया था। अध्ययन तब किया गया जब दिल्ली में सकारात्मकता दर अपने उच्चतम स्तर पर थी। इसके अलावा अध्ययन से पता चलता है कि डेल्टा संस्करण के तेजी से प्रसार के कारण उस समय के दौरान टीका कम प्रभावी हो सकता है।

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