‘टू फिंगर टैस्ट’ पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध लगाते हुए पीड़ितों के साथ हुए बलात्कार की जांच करने के तरीकों पर सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के मामलों में ‘टू-फिंगर टेस्ट’ पर रोक लगा दिया है। कोर्ट ने साफ़ कहा है कि पीड़ितों के साथ इस तरह की जांच करने वाले व्यक्तियों को दोषी ठहराया जायेगा। न्यायधीश चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली एक पीठ ने फैसला सुनाते हुए यौन उत्पीड़न के मामलों में ‘टू-फिंगर टेस्ट’ के इस्तेमाल की निंदा की है । कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है ,”इस टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और पीड़िता के साथ हुए यौन उत्पीड़न के सबूत तौर पर ये अहम नहीं है। कोर्ट के मुताबिक यह नहीं कहा जा सकता है कि सेक्सुअली एक्टिव महिला का रेप नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने नराजगी जताते हुए कहा “जो इस तरह का परीक्षण करता है उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए, इस तरह का टेस्ट पीड़िता को दोबारा यातना देने जैसा है। झारखंड हाईकोर्ट के रेप और हत्या के दोषी को बरी करने के फैसले को ख़ारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को उम्र कैद की सजा सुनाई है। न्यायधीश ने टू-फिंगर टेस्ट को महिला की गरिमा और निजता का उल्लंघन करार दिया है। गौतलब है कि 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट ने टू फिंगर टेस्ट को असंवैधानिक करार दे दिया था। उसके बावजूद इसे इस्तेमाल में लाया जा रहा है। कोर्ट के मुताबिक भी काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह प्रथा आज भी प्रचलन में है।
कोर्ट ने केंद्र और राज्य के स्वास्थ्य सचिवों को सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के सिलेबस से टू-फिंगर टेस्ट की पढ़ाई हटाने का कड़ा निर्देश दिया है। वहीं सभी राज्यों के डीजीपी और स्वास्थ्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि ये “टू फिंगर टैस्ट” नहीं होना चाहिए।
क्या है टू फिंगर टैस्ट
टू-फिंगर टेस्ट में पीड़िता के गुप्तांग में एक या दो उंगली डालकर उसकी वर्जिनिटी का पता लगाया जाता है। पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध बने थे या नहीं इसे पता करने के लिए यह परीक्षण किया जाता है। यदि गुप्तांग में आसानी से दोनों उंगलियां चली जाती हैं तो महिला को सेक्चुली एक्टिव माना जाता है और इसे ही महिला के वर्जिन या वर्जिन न होने का भी सबूत मान लिया जाता है। जो कि मानवीय और कानूनी तौर पर भी गलत है।