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‘पीएम श्री’ योजना से मजबूत होगा देश का भविष्य

देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चों की बुनियाद को और मजबूत बनाने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के बाद बड़ा कदम उठाया है।जिसके तहत देशभर के लगभग 14500 स्कूलों को ‘पीएम श्री’ (प्रधानमंत्री स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया) योजना के तहत अपग्रेड किया जाएगा। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘शिक्षक दिवस’ के मौके पर इसकी घोषणा की है। इस योजना के तहत वर्ष 2022-23 से 2026 तक पांच वर्षों की अवधि के लिए 27360 करोड़ रुपये की लागत से पीएम श्री (पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) योजना प्रोजेक्ट को लागू किया जाएगा।

पीएम श्री योजना की विशेषताएं

पीएम श्री एक समान, समावेशी और आनंदमय स्कूल वातावरण में उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करेगा, जो बच्चों की विविध पृष्ठभूमि, बहुभाषी जरूरतों और विभिन्न शैक्षणिक क्षमताओं का ख्याल रखेगा और साथ ही उन्हें अपनी स्वयं की सीखने की प्रक्रिया में भी भागीदार बनाएगा।

इसके अलावा पीएम श्री के अंतर्गत स्कूल अपने-अपने क्षेत्रों के अन्य स्कूलों को मेंटरशिप प्रदान करके उसका नेतृत्व करेंगे। पीएम श्री स्कूलों को ग्रीन स्कूल के रूप में विकसित किया जाएगा, जिसमें सौर पैनल और एलईडी लाइट, प्राकृतिक खेती के साथ पोषण उद्यान, अपशिष्ट प्रबंधन, प्लास्टिक मुक्त, जल संरक्षण और संचयन, पर्यावरण की सुरक्षा से संबंधित परंपराओं , प्रथाओं का अध्ययन जैसे पर्यावरण के अनुकूल पहलुओं को शामिल किया जाएगा।

इन स्कूलों में अपनाई गई शिक्षाशास्त्र अधिक अनुभवात्मक, समग्र, एकीकृत, खेल/खिलौना-आधारित (विशेषकर, मूलभूत वर्षों में) पूछताछ-संचालित, खोज-उन्मुख, चर्चा-आधारित, लचीला और मनोरंजन होगा। प्रत्येक क्लास में प्रत्येक बच्चे के सीखने के परिणामों पर ध्यान दिया जाएगा। सभी स्तरों पर मूल्यांकन वैचारिक समझ और वास्तविक जीवन स्थितियों में ज्ञान के अनुप्रयोग पर आधारित होगा और योग्यता आधारित होगा।

प्रत्येक डोमेन के लिए उपलब्ध संसाधनों और उपलब्धता, पर्याप्तता, उपयुक्तता और उपयोग के संदर्भ में उनकी प्रभावशीलता और उनके प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों का आकलन किया जाएगा और अंतराल को व्यवस्थित और नियोजित तरीके से भरा जाएगा। रोजगार बढ़ाने और बेहतर रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए क्षेत्र कौशल परिषदों और स्थानीय उद्योग के साथ जुड़ाव का पता लगाया जाएगा।

इसके जरिए स्कूल गुणवत्ता आकलन ढांचा विकसित किया जा रहा है। मानकों को सुनिश्चित करने के लिए नियमित अंतराल पर इन स्कूलों का गुणवत्ता मूल्यांकन भी किया जाएगा। हालांकि प्रधानमंत्री जिसे नई पहल का नाम दे रहे हैं उसकी घोषणा पिछले साल के बजट भाषण में हो चुकी है। फरवरी 2021 के बजट भाषण में निर्मला सीतारमण ने खुद 15000 ऐसे स्कूलों के बारे में ऐलान किया था जो, स्कूल नई शिक्षा नीति के सभी गुणों से लैस होंगे, जहां मॉडर्न तकनीक, स्मार्ट क्लासरूम, खेल और अन्य सुविधाओं सहित आधुनिक बुनियादी ढांचा पर ज़ोर दिया जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर इन स्कूलों की घोषणा पहले ही हो चुकी है, तो पीएम इन योजनाओं को दोबारा क्यों लागू कर रहे हैं, अगर ये कोई नए स्कूल हैं तो बजट वाले पुराने स्कूलों का एक-डेढ़ साल में क्या हुआ?

बता दें कि इसी वर्ष जून 2022 में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी देश भर में 15,000 पीएम श्री स्कूल स्थापित करने की बात कही थी। अब 5 सितंबर को पीएम मोदी ने 14,500 स्कूलों का ऐलान किया है।

ऐसे में ये समझ के परे है कि आखिर कागज़ों पर स्कूलों की संख्या पहले ही 500 कैसे घट गई और अगर ये कोई नए स्कूल हैं तो जहां शिक्षा का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है, शिक्षकों की भारी कमी के चलते स्कूल बंद हो रहे हैं, वहां महज़ एक से डेढ़ प्रतिशत स्कूलों का विकास करके क्या हासिल होगा। क्या बिना भेदभाव देश के सभी सरकारी स्कूलों को पीएम श्री स्कूल नहीं बनाया जा सकता है। क्या प्राइमरी शिक्षा के लिए भी अब सरकार अपने ही सरकारी स्कूलों में भेदभाव करेगी।

क्या है असल मुद्दा

 

केंद्र में भाजपा का पूर्णबहुमत है और भाजपा अपने हर काम को अभूतपूर्व और ऐतिहासिक बताने की कोशिश करती रही है। शायद इसी कोशिश के जाल में पीएम श्री योजना भी फंस गई है। जहां स्कूलों का तो पता नहीं लेकिन ऐलान पर ऐलान जरूर हो रहे हैं। फिलहाल देश में जवाहर नवोदय विद्यालय और केंद्रीय विद्यालय को सरकारी शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट माना जाता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी, ये दोनों स्कूल शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। मार्च 2022 में संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार 116 नवोदय विद्यालयों में प्रिंसिपल ही नहीं हैं। 23 प्रतिशत स्कूलों में वाइस प्रिंसिपल ही नहीं हैं। 1900 के करीब पीजीटी और टीजीटी टीचर नहीं हैं। इतना ही नहीं पिछले पांच साल में केवल 55 नए जवाहर नवोदय विद्यालय खुले हैं।

इसी वर्ष मानसून सत्र में लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया था कि, केंद्रीय विद्यालयों में टीचर्स के 12 हजार से ज्यादा पद खाली हैं। वहीं अगर नवोदय विद्यालय की बात करें, तो यहां 2021 में टीचर्स के कुल 3158 पद खाली हैं। ऐसे में ये सवाल भी उठता है कि जब इन स्कूलों में शिक्षक ही नहीं होंगे, तो पढ़ाई-लिखाई कैसे होगी। और जो स्कूल पहले से गुणवत्ता वाले हैं, सरकार उनकी अनदेखी क्यों कर रही है।

लगभग 72 हजार सरकारी स्कूल बंद

 

एक ओर सरकार देश को विश्व गुरु बनाने के सपने दिखा रही है तो वहीं दूसरी ओर शिक्षा के क्षेत्र से शिक्षकों को ही गायब करती जा रही है। बड़े पैमाने पर स्कूलों को बंद किया जा रहा है, जो शायद मर्जर और डिजिटलाइजेशन की धुंध में किसी को दिखाई नहीं दे रहा। एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2018 से लेकर वर्ष 2019 के बीच 51 हजार सरकारी स्कूल बंद कर दिए गए। आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी यह दावा किया है कि भाजपा सरकार ने पूरे देश में लगभग 72 हजार सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया है। ये कोई मामूली संख्या नहीं है।

गौरतलब है कि सरकार जो नई शिक्षा नीति से इन स्कूलों को लैस करने की बात कर रही है, वो नीति खुद ही विवादों में है। आलोचक इस नीति को आने वाले दिनों में शिक्षा के क्षेत्र में खराब बता रहे हैँ। ये नीति 10+2 की जगह 5+3+3+4 की बात करती है। यानी तीन साल प्री-स्कूल के और क्लास 1 और 2 उसके बाद के 3 का मतलब है क्लास 3, 4 और 5 उसके बाद के 3 का मतलब है क्लास 6, 7 और 8 और आखिरी में 4 का मतलब है क्लास 9, 10, 11 और 12. इसका मतलब है कि अब बच्चे 6 साल की जगह 3 साल की उम्र में फॉर्मल स्कूल में जाने लगेंगे। अब तक बच्चे 6 साल में पहली क्लास मे जाते थे, तो नई शिक्षा नीति लागू होने पर भी 6 साल में बच्चा पहली क्लास में ही होगा, लेकिन पहले के 3 साल भी फॉर्मल एजुकेशन वाले ही होंगे। प्ले-स्कूल के शुरुआती साल भी अब स्कूली शिक्षा में जुड़ेंगे।

इसके अलावा नई शिक्षा नीति में एक और महत्वपूर्ण बात है भाषा के स्तर पर। इसमें 3 लैंग्वेज फॉर्मूले की बात की गई है, जिसमें कक्षा पाँच तक मातृ भाषा/ लोकल भाषा में पढ़ाई की बात की गई है। साथ ही ये भी कहा गया है कि जहाँ संभव हो, वहाँ कक्षा 8 तक इसी प्रक्रिया को अपनाया जाए। संस्कृत भाषा के साथ तमिल, तेलुगू और कन्नड़ जैसी भारतीय भाषाओं में पढ़ाई पर भी ज़ोर दिया गया है। इसके आलोचकों का कहना है कि ये भाषा को लेकर बच्चों के बीच एक बड़ी खाई पैदा कर सकता है। लोग ये भी पूछ रहे हैं कि दक्षिण भारत का बच्चा दिल्ली में आएगा तो वो हिंदी में पढ़ेगा, तो वो कैसे पढ़ेगा?

सीयूईटी पर भी बवाल

इस नीति में तीसरी बात बोर्ड परीक्षा में बदलाव की है। पिछले 10 सालों में बोर्ड एग्जाम में कई बदलाव किए गए. कभी 10वीं की परीक्षा को वैकल्पिक किया गया, कभी नंबर के बजाए ग्रेड की बात की गई। लेकिन अब परीक्षा के तरीके को बदलने की बात सामने आई है। दो बार बोर्ड एग्जाम होंगे, जिसमें अब छात्रों की ‘क्षमताओं का आकलन’ किया जाएगा, ना कि उनके याददाश्त का। केंद्र सरकार की दलील है कि नंबरों का दबाव इससे खत्म होगा। इसी के साथ अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाखिले के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी से परीक्षा कराने की बात कही गई है। साथ ही रीजनल स्तर पर, राज्य स्तर पर और राष्ट्रीय स्तर पर ओलंपियाड परीक्षाएं कराने के बारे में भी कहा गया है। आईआईटी में प्रवेश के लिए इन परीक्षाओं को आधार बना कर छात्रों को दाखिला देने की बात की गई है।

इस साल देश में पहली बार कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट यानी विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा करवाई गई। जिसके चलते ये पहली बार है जब देश में अभी तक सेंट्रल यूनिवर्सिटी में नए छात्रों का दाखिला ही पूरा नहीं हो पाया। जुलाई में जहां कक्षाएं शुरू हो जाती थीं, वहीं अब तक एडमिशन ही नहीं हो पाए हैं। छात्रों का जुलाई और अगस्त परीक्षा होने में ही बीत गया। सितंबर के दिन बीतने की शुरुआत भी हो ही चुकी है। इस परीक्षा का रिजल्ट कब आएगा, फिलहाल किसी को कोई जानकारी नहीं है, किसी तारीख का ऐलान नहीं हुआ है। छात्रों को अभी तक पता नहीं कि उनका नामांकन किस कॉलेज में होगा, उन्हें एडमिशन मिलेगा भी या नहीं। प्राइवेट कॉलेजों की बात करें तो वहां पढ़ाई भी शुरू हो चुकी है। दबाव में आकर छात्र प्राइवेट कालेजों में एडमिशन ले रहे हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के शिक्षक भी इस पर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं।

शिक्षा का फिलहाल देश में जो भी हाल है,आने वाले दिनों में तस्वीर और भयावह ही नजर आती है। शिक्षाविद शिक्षा में कॉरपोरेट डाइजेशन, आरक्षण की अनदेखी और इसके अति-केंद्रीकरण को छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ बता रहे हैं, तो वहीं सरकार इसे न्यू इंडिया की नई शिक्षा नीति का नाम दे रही है। प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया इसकी एक कड़ी है। ऐसे में देखना होगा कि ये नाम सुनने में जितना अच्छा है क्या इन स्कूलों में काम भी उतना ही अच्छा होगा या इसका हाल भी पहले की तरह ही आदर्श स्कूल, प्रतिभा स्कूल, मॉडल स्कूल और स्मार्ट स्कूल वाला होकर रह जाएगा।

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