[gtranslate]
  •             वृंदा यादव

 

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर और मनोचिकित्सा विभाग के डॉक्टरों द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि देश में बीते 26 वर्षों में मानसिक बीमारियों और नशीली दवाओं के इस्तेमाल चलते आत्महत्या के मामले करीब तीन गुना बढ़ गए हैं। यह अध्ययन हाल ही में ‘एशियन जर्नल ऑफ साइकेट्री’ में प्रकाशित हुआ है। सर्वे के मुताबिक देश में नशा करने वालों की संख्या 37 करोड़ के पार चली गई है। जिसमें 17 साल से कम उम्र के 20 लाख बच्चे गांजे की लत का शिकार हैं। साथ ही शराब पीने वालों में करीब 19 प्रतिशत (लगभग 3 करोड़) लोग ऐसे हैं जो बिना शराब के रह नहीं पाते। 2.26 करोड़ लोग अफीम, इसके डोडे, हेरोइन, स्मैक और ब्राउन शुगर जैसी ड्रग्स का शिकार हैं


फोटो ‘प्रिवेलेस’ पोर्टल से साभार

‘सिगरेट पीना आपके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है’ इतनी बड़ी चेतावनी स्पष्ट रूप से लिखे होने के बाद भी लोगों में सिगरेट के सेवन का नशा खत्म नहीं हो रहा है। इसी प्रकार लोगों को इस बात की जानकारी तो है, कि सिगरेट ही नहीं अन्य किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता और अधिक प्रयोग से व्यक्ति की जान भी जा सकती है। लेकिन इसके बावजूद पिछले कुछ वर्षों से देश के लोगों में नशे की लत लगतार बढ़ती जा रही है। हालात ये हैं कि व्यस्क या बुजुर्ग ही नहीं बल्कि नाबालिग बच्चे भी नशे के इस भयावह जाल में फंसते जा रहे हैं। हाल ही में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर और मनोचिकित्सा विभाग के डॉक्टरों द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि देश में बीते 26 वर्षों में मानसिक बीमारियों और नशीली दवाओं के इस्तेमाल के कारण आत्महत्या के मामले करीब तीन गुना बढ़ गए हैं। यह अध्ययन हाल ही में ‘एशियन जर्नल ऑफ साइकेट्री’ में प्रकाशित हुआ है। यह सर्वे एम्स के नेशनल ड्रग्स डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर द्वारा समाज कल्याण एवं सशक्तिकरण मंत्रालय ने कराया था। सर्वे के मुताबिक देश में नशा करने वालों की संख्या 37 करोड़ के पार चली गई है। जिसमें 17 साल से कम उम्र के 20 लाख बच्चे गांजे की लत का शिकार हैं। साथ ही शराब पीने वालों में करीब 19 प्रतिशत (लगभग 3 करोड़) लोग ऐसे हैं जो बिना शराब के रह नहीं पाते। 2.26 करोड़ लोग अफीम, इसके डोडे, हेरोइन, स्मैक और ब्राउन शुगर जैसी ड्रग्स का शिकार हैं।

अध्ययन में डॉक्टरों ने वर्ष 1995 से लेकर वर्ष 2021 तक आत्महत्या के कारणों पर तुलनात्मक अध्ययन किया है। जिसमें आत्महत्या का एक बड़ा नशीली दवाओं के सेवन के रूप में उभरकर आया है। अध्ययन के अनुसार मानसिक बीमारियों और नशीली दवाओं का इस्तेमाल आत्महत्या का एक बड़ा कारण बनने लगा है। डॉक्टरों ने अनुमान लगाते हुए आशंका जाहिर की है कि वर्ष 2026 तक आत्महत्या के करीब 17 प्रतिशत मामलों का कारण मानसिक बीमारी और नशीली दवाएं बनेंगी। साल 2019 मे एम्स नई दिल्ली के द्वारा की गई रिसर्च में भी ऐसे ही भयावह आंकड़े सामने आए थे जिसमें देखा गया कि भारत में कुल 4 करोड़ लोग विभिन्न प्रकार के नशे के आदि हैं, जिनमें से 2.9 करोड़ शराब, 28 लाख डोडा (पोस्त, अफीम, स्मैक), 25 लाख कैनाबिस (भांग, गांजा, चरस) आदि जैसे नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं।

क्या कहता है अध्ययन

एम्स के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर और मनोचिकित्सा विभाग के डॉक्टरों द्वारा किए गए सर्वे में इस बात की जानकारी भी दी गई है कि मानसिक एवं नशीली दवाओं के इस्तेमाल के कारण होने वाली आत्महत्या की घटनाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता, बल्कि आत्महत्या के मामलों की जांच में ज्यादातर सामाजिक और आर्थिक कारण ही तलाशे जाते हैं। लेकिन नशीली दवाओं के कारण होने वाली आत्महत्या की बात रिकॉर्ड में ज्यादा नहीं आ पाती। हो सकता है यही वजह है कि महिलाओं के अपेक्षा पुरुषों की आत्महत्या दर अधिक है। आंकड़ों के अनुसार पुरुषों में आत्महत्या मृत्यु दर (एसडीआर) 34.6 प्रतिशत है, तो महिलाओं के मालमों में यह आंकड़ा 13.1 प्रतिशत है। इस स्टडी में जनसांख्यिकीय डेटासेट का उपयोग करके भारत में की जाने वाली आत्महत्या दरों का अध्ययन किया गया था।

नशीले पदार्थों के दुष्प्रभाव
अत्यधिक नशा पुरुषों पर कई तरह से प्रभाव डालता है। जैसे, फेफड़ों को क्षति, पुरुषों में धूम्रपान करने की आदत भी बहुत अधिक होती है और वे इसी धूम्रपान के कारण अपने फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे उन्हें सांस लेने में भी बहुत दिक्कतें आती हैं। शराब में अल्कोहल की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है जिसका सीधा असर किडनी व लिवर पर पड़ता है जिसके कारण व्यक्ति की किडनी खराब हो जाती है और इससे उसकी मृत्यु भी हो सकती है। इसके अलावा आंखों पर भी नसे का प्रभाव पड़ता है, क्योंकि विटामिन बी-1 की कमी के कारण नशा करने वालों की आंखों की मांसपेशियों में कमजोरी हो सकती है जिस कारण दृष्टि दोष की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।

वर्तमान में महिलाओं में शराब पीने की लत वैश्विक स्तर पर बहुत बढ़ रही है। महिलाओं में नशे की लत के कारण उन्हें सबसे ज्यादा स्तन कैंसर होने का खतरा होता है। पिछले कुछ वर्षों में अन्य कैंसर की अपेक्षा स्तन कैंसर से दस गुना अधिक महिलाओं की मौत हुई है। साथ ही महिलाओं में नशे की लत के कारण लिवर के खराब होने की आशंका अत्यधिक रहती है। यही वजह है कि विश्व में साल 2000 से 2015 के बीच शराब पीने वाली क़रीब 57 फीसदी महिलाओं की मौत लिवर खराब होने की वजह से हुई।

नशे की लत के कारण

लोगों में नशे की लत के बढ़ने का एक सबसे बड़ा कारण यह है कि ऐसे नशीले पदार्थ उन्हें आसानी से मुहैया हो जाते हैं। नशीला पदार्थ खून में जाते ही आदमी को खुशी और स्फूर्ति का अनुभव करते हैं। अधिकतर लोग नशा करने वाले व्यक्तियों की संगत में आकर दबाव या शौक वश नशा करने लगते हैं और धीरे-धीरे उसके आदि हो जाते हैं। कई मामलों में ऐसा भी होता है कि एक बार नशीली वस्तु का सेवन करने के बाद व्यक्ति को उससे घृणा हो जाती है। कहा जा सकता है कि मानव के मस्तिष्क पर नशीले पदार्थों की प्रतिक्रिया अलग-अलग होती है। किसी भी व्यक्ति को नशे की लत लगने के कई कारण हैं।

आनुवंशिकी और पारिवारिक इतिहास: किसी व्यक्ति की जीनस् भी उसके नशे की आदत को प्रभावित करता है। क्योंकि व्यक्ति का शरीर और मस्तिष्क किसी विशेष दवा के प्रति उसी प्रकार प्रतिक्रिया करता है जिस प्रकार उसके पूर्वजों ने उस पर प्रतिक्रिया की थी। यदि एक व्यक्ति के माता- पिता या उनके माता- पिता मादक पदार्थों के आदि हैं तो उस व्यक्ति में नशे की आदत लगने की संभावना अधिक होती है। पर्यावरणीय कारण: पर्यावरण हर प्रकार से एक व्यक्ति को प्रभावित करता है। जैसे अगर कोई बच्चा नशे की लत वाले घर में बड़ा होता है या वह ऐसे दोस्तों या रिश्तेदारों के साथ रहता है जो नशा करते हैं तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि वह नशीली दवाओं का सेवन करने से नहीं डरेगा।

मनोवैज्ञानिक कारण: नशे की लत को बढ़ावा देने में मनोवैज्ञानिक कारण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होता तब वही खुद को तनाव से दूर करने के लिए इन चीजों का सहारा लेता है। समय के साथ, दवाओं का यह दुरुपयोग एक लत बन सकता है। बेरोजगारी: बरोजगारी और मनोवैज्ञानिक कारण कहीं न कहीं एक दूसरे से संबंधित हैं क्योंकि वर्तमान समय में बढ़ती बेरोजगारी के कारण कई युवा तनाव और उदासीन होते जा रहे हैं। जिसके कारण अपनी परेशानियों को भूलने के लिए वे इन नशीले पदार्थों का सहारा लेते हैं।

नशे की लत छोड़ने के उपाय
सरकारें चाहें तो इन मादक पदार्थों पर रोक लगाकर नशे से होने वाली दिक्कतों को कम कर सकती है। क्योंकि एक ओर तो सरकारें नशीले पदार्थों के प्रयोग को समाप्त करना चाहती हैं और वहीं दूसरी तरफ शराब, तम्बाकू, सिगरेट जैसे उत्पाद खुलेआम दुकानों पर बिकते हैं। किसी तरह बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू के उत्पादों का उत्पादन बंद नहीं कर उन पर चेतावनी छाप कर अपने काम को खत्म समझ लेती है। इसके अलावा व्यक्तिगत स्तर पर भी नशे की आदत को छुड़ाने का प्रयास किया जा सकता है। जैसे नशेलची से घृणा कर दूर भागने के स्थान पर उसने अपनापन रखकर मित्र की तरह व्यवहार करें और नशे से हानि के बारे में जानकारी दें। पढ़ाई या अन्य गृह कार्य का अत्यधिक बोझ न डालें। उस व्यक्ति को अन्य कामों में व्यस्त रखें।

इसके अलावा कई संस्थाएं (नशा मुक्ति केंद्र) भी लोगों में नशे की लत को काम करने या छुड़वाने का लगातार प्रयास कर रहीं हैं। लेकिन काफी प्रयसों के बाद भी अपने उद्देश्य में पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाई हैं। क्योंकि अधिकतर लोग कुछ समय के लिए नशा छोड़ने के बाद फिर नशा करने लग जाते हैं। ऐसे में नशे की आदत को छोड़ने में अहम भूमिका नशा करने वाला व्यक्ति ही दृढ़ संकल्प करके निभा सकता है।

You may also like

MERA DDDD DDD DD