देश में बीते 15 वर्षों के भीतर 10 रेल मंत्री बदले गए, लेकिन रेल हादसों की तस्वीर नहीं बदली है। रेल मंत्री से लेकर अधिकारी तक अक्सर हादसों को लेकर जीरो टॉलरेंस की बात करते हैं। पिछले दो दशकों से रेलवे में हादसों को रोकने के लिए कई नई तकनीकों पर विचार जरूर हुआ है, मगर आज भी एक ऐसी तकनीक का इंतजार है जो रेलवे सुरक्षा की तस्वीर बदल सके। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव पिछले साल यानी मार्च 2022 में सिकंदराबाद में ‘कवच’ (एंटी कोलेजन डिवाइस) के ट्रायल में खुद शरीक हुए थे, बावजूद इसके कोई परिणाम देखने को नहीं मिले हैं। हालात यह है कि पिछले हफ्ते हुई तीन ट्रेनों की भिड़ंत में लगभग 300 लोगों की जान चली गई और 1 हजार 75 लोग घायल हो गए। इस हादसे को भारतीय रेलवे का सबसे बड़ा हादसा माना जा रहा है
गत सप्ताह मालगाड़ी, कोरोमंडल एक्सप्रेस और हावड़ा एक्सप्रेस ट्रेनों की टक्कर बाद इस हादसे में जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को केंद्र सरकार की ओर से दो लाख रुपये तो घायलों को 50 हजार रुपए दिए जाने की घोषणा की गई है। वहीं रेल मंत्रालय की ओर से मृतक के परिजनों को 10-10 लाख रुपए, गंभीर रूप से घायलों के लिए दो लाख रुपए, मामूली रूप से चोटिलों के लिए 50 हजार रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की गई है। वहीं तृणमूल सरकार के द्वारा भी 2-2 लाख रुपए घायलों को दिए गए हैं। यह हादसा इतना भयानक था कि लोग लाशों के टुकड़ों में अपने परिजनों को तलाश रहे हैं तो कहीं लाशों के ढेर पहचाने न जाने की वजह से अस्पतालों में पड़े हैं। हालांकि उड़ीसा में मच रहे इतने बड़े कोहराम के बाद न केवल राजनीतिज्ञ, अभिनेता, संगीतकार बल्कि आम जनता भी मदद के लिए सामने आ रहे हैं। उड़ीसा के अस्पतालों में रक्तदान के लिए हजारों की संख्या में लोग उमड़ आये हैं, इनके साथ कुछ एनजीओ भी हैं जो मदद के लिए सामने आ रही हैं।
कैसे हुआ हादसा
रेलवे बोर्ड ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया, 1 हजार 257 यात्री रिजर्व कोरोमंडल एक्सप्रेस में बैठे थे जबकि 1 हजार 39 रिजर्व पैसेंजर यशवंत एक्सप्रेस में थे। अपलाइन में कोरोमंडल एक्सप्रेस फुल स्पीड से आ रही थी। जबकि डाउनलाइन में यशवंत एक्सप्रेस, यशवंतपुर से हावड़ा की ओर जा रही थी। कॉमन लूप में मालगाड़ी खड़ी थी, उसी रूट पर जाने के लिए कोरोमंडल एक्सप्रेस को ग्रीन सिग्नल मिला और कोरोमंडल एक्सप्रेस माल गाडी से टकरा कर पटरी से उतर गई, कोरोमंडल पटरी से उतर कर यशवंतपुर एक्सप्रेस से टकराई जिसके बाद यह तिहरा ट्रेन हादसा हुआ।
रेल मंत्री के इस्तीफे की मांग
इस हादसे के बाद राजनीतिक दल और राजनेता जहां एक तरफ हादसे पर दुख जता रहे हैं तो वहीं रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को बुरी तरह घेरा जा रहा है। विपक्षी दलों का कहना है कि रेलवे में इतनी बड़ी लापरवाही स्वीकार्य नहीं है इसलिए रेल मंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए। पश्चिम बंगाल में सत्तासीन तृणमूल कांग्रेस ने भी रेल मंत्री से इस्तीफा मांगा है। सीपीआई सांसद बिनॉय विश्वम ने भी कहा कि इस हादसे की जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री को तुरंत इस्तीफा देना चाहिए।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार ने भी भीषण ट्रेन हादसे के बाद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के इस्तीफे की मांग की है। पवार ने लाल बहादुर शास्त्री का उदाहरण देते हुए कहा कि ‘जब लाल बहादुर शास्त्री रेल मंत्री थे, तब एक हादसा हुआ और उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया। जबकि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस्तीफा देने के फैसले के खिलाफ थे। लेकिन शास्त्री ने कहा कि यह मेरी नैतिक जिम्मेदारी है। आज देश में ऐसी घटनाओं के बाद राजनेताओं को ऐसे कदम उठाने चाहिए।’
पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने हादसे को लेकर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के इस्तीफे की मांग करते हुए कहा कि ‘केंद्र ऐसे हादसों को रोकने के बजाय विपक्षी नेताओं की जासूसी करने के लिए सॉफ्टवेयर डेवलप करने पर करोड़ों रुपए खर्च कर रहा है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार जनता को गुमराह करके राजनीतिक समर्थन हासिल करने के लिए वंदे भारत ट्रेनों और नवनिर्मित रेलवे स्टेशनों का डींग हांक रही है, लेकिन सुरक्षा उपायों की उपेक्षा कर रही है।’
उधर सीपीआई सांसद बिनॉय विश्वम ने कहा है कि ‘सरकार सिर्फ लग्जरी ट्रेनों पर फोकस कर रही है, बल्कि सरकार को आम लोगों की रेलगाड़ियों और पटरियों की तरफ ध्यान देना चाहिए। उड़ीसा में मौतें उसी का परिणाम हैं।’
कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया कि प्रारंभिक समाचार रिपोर्टों से पता चलता है कि बालासोर, ओडिशा ट्रेन दुर्घटना सिग्नलिंग प्रणाली की विफलता के कारण हुई। रेल मंत्री और रेल मंत्रालय क्यों बेपरवाह या अनभिज्ञ या लापरवाही कर रहे थे। सुरजेवाला ने कहा कि हाल ही में कई मालगाड़ियों के पटरी से उतरने, जहां कई लोको पायलटों की मौत हो गई और वैगन नष्ट हो गए, रेल सुरक्षा की कमी पर पर्याप्त अलार्म क्यों नहीं उठाया गया? ऐसी बड़ी जिम्मेदारी के समय रेल मंत्रालय का सो जाना बेहद शर्मनाक है।
सवालों के घेरे में रेल मंत्री
ममता बनर्जी ने दावा किया है कि जब वह रेल मंत्री थीं तो ट्रेनों के आपस में टकराने से रोकने की सुरक्षा प्रणाली पर काम कर रही थीं। दरअसल भारत में दो ट्रेनों के आपस में टकराने (हेड ऑन कोलेजन) को रोकने के लिए गंभीरता से काम साल 1999 में हुए गैसल रेल हादसे के बाद शुरू हुआ था। इस हादसे में अवध-असम एक्सप्रेस और ब्रह्मपुत्र मेल ट्रेन आपस में टकरा गई थीं, जिससे करीब 300 लोगों की मौत हो गई थी। उसके बाद भारतीय रेल के कोंकण रेलवे ने गोवा में एंटी कोलेजन डिवाइस या एसीटी यानी कवच की तकनीक पर काम शुरू किया था। इसमें ट्रेनों में जीपीएस आधारित तकनीक लगाई जानी थी, जिससे दो ट्रेन एक ही ट्रैक पर, एक-दूसरे के करीब आ जाएं तो सिग्नल और हूटर के जरिए इसकी जानकारी ट्रेन के पायलट को पहले से मिल जाए।
पिछले 15 साल में दस से ज्यादा रेल मंत्री पाने के बाद भी भारत में रेल हादसे नहीं रुके हैं। हादसों के लिहाज से भारत में पिछली सरकारों का रिकॉर्ड भी खराब रहा है और मौजूदा सरकार में भी कई बड़े रेल हादसे हो चुके हैं। रेलवे में कई हादसे ऐसे भी होते हैं जिसकी चर्चा तक नहीं होती है। ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के महामंत्री शिव गोपाल मिश्रा कहते हैं, ‘हर साल करीब 500 रेलवे कर्मचारी ट्रैक पर काम करने के दौरान मारे जाते हैं। यही नहीं मुंबई में हर रोज कई लोग पटरी को पार करते हुए मारे जाते हैं। रेलवे की प्राथमिकता ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने की नहीं बल्कि सुरक्षा होनी चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं, ‘रेलवे में ट्रेन हादसों को रोकने की बात दशकों से होती है, लेकिन होता कुछ नहीं है। ऐसा लगता है कि कोई सरकार इसे लेकर गंभीर नहीं है और इस पर खर्च नहीं करना चाहती है।’
घटनास्थल पर पहुंचे राजनेता
दुर्घटना स्थल पर पहुंची पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि यह राजनीति करने का समय नहीं है। मैं यहां रेल मंत्री, भाजपा सांसदों के साथ खड़ी हूं हम अपने राज्य से 5 लाख देंगे। हमने बंगाल से 40 डॉक्टर भेजे हैं और दो बसें भेजी हैं, इसकी कड़ी जांच होनी चाहिए कि इतने लोग कैसे मरे, मैंने सुना है कि 500 लोगों की मौत हो गई है?
भाजपा नेता और लोकसभा सांसद वरुण गांधी ने सभी सांसदों से अनुरोध किया कि वे अपने वेतन का एक हिस्सा ओडिशा ट्रेन दुर्घटना में अपने रिश्तेदारों को खोने वाले परिवारों को दान करें। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि ‘यह हादसा दिल दहला देने वाला है! हमें इस हादसे से टूटे परिवारों के साथ चट्टान की तरह खड़ा होना है। मैं सभी साथी सांसदों से अनुरोध करता हूं कि वे अपने वेतन का एक हिस्सा दान करके शोक संतप्त परिवारों की मदद के लिए आगे आएं। पहले उन्हें सहारा मिले, फिर न्याय।’
कोरोमंडल एक्सप्रेस के पायटल को क्लीन चिट रेलवे ने शुरुआती जांच में कोरोमंडल एक्सप्रेस के ड्राइवर को क्लीन चिट दे दी है। रेलवे ने कहा कि कोरोमंडल एक्सप्रेस ‘अधिक गति से नहीं चल रही थी और उसे लूप लाइन में एंट्री करने के लिए हरी झंडी मिल गई थी, जिस पर एक मालगाड़ी खड़ी थी।’ इस तरह रेलवे ने ट्रेन के ड्राइवर की एक्सीडेंट में किसी भी भूमिका को नकार दिया है। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, ‘दो लाइन में पटरी की मरम्मत का काम लगभग पूरा हो गया है।
सीबीआई के हवाले दुर्घटना की जांच
रेल हादसे की प्रारंभिक जांच में यह पता चला है कि दुर्घटनाग्रस्त हुई कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन बाहानगा बाजार स्टेशन से ठीक पहले मेन लाइन यानी मुख्य मार्ग के बजाय ‘लूप लाइन’ (ट्रैन को खड़ा करने के लिए बनाई गई लाइन) पर चली गई और वहां खड़ी एक मालगाड़ी से टकरा गई। आशंका जताई जा रही है कि मालगाड़ी से टकराने के बाद कोरोमंडल एक्सप्रेस के डिब्बे बगल की पटरी पर जा गिरे, जिसकी चपेट में बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस के डिब्बे आ गए। सूत्रों के मुताबिक, कोरोमंडल एक्सप्रेस की रफ्तार 128 किमी प्रति घंटा और बेंगलुरु- हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस की गति 116 किमी प्रति घंटा थी। रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को सौंपी गई है। ये रेलगाड़ियां आमतौर पर अधिकतम 130 किमी प्रति घंटे की गति तक चलती हैं। प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया गया है कि ट्रेन को सिग्नल दिया गया था, जिसे बाद में बंद कर दिया गया। हालांकि रेलवे ने उच्चस्तरीय जांच शुरू की है। इसका नेतृत्व रेलवे सुरक्षा आयुक्त, दक्षिण पूर्व क्षेत्र करेंगे। केंद्र सरकार ने इस दुर्घटना के पीछे किसी षड्यंत्र की आशंका को देखते हुए रेलवे बोर्ड के अलावा केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई से भी जांच कराए जाने का फैसला लिया है।