कोरोना वायरस से बचने के लिए और उसके उपचार के लिए दुनिया भर के देश अपने अपने स्तर से हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं।इसी बीच यह सामने आया है कि कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में मलेरिया की दवाई को मददगार माना जा रहा है। भारत से राष्ट्रपति ट्रंप ने पीएम मोदी को फ़ोन कर मलेरिया की दवाई यानी हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन भेजने का अनुरोध किया था।भारत ने इस दवाई के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर रखा है क्योंकि घरेलू खपत ही बहुत ज़्यादा है।6 अप्रैल को राष्ट्रपति ट्रंप ने यहां तक कह दिया कि अगर भारत ने दवाई नहीं भेजी तो अमरीका जवाबी कार्रवाई कर सकता है।
7 अप्रैल को विदेश मंत्रालय ने इस बारे में बयान जारी किया है और स्थिति स्पष्ट की है।विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ”कुछ मीडिया संस्थान कोविड-19 से जुड़ी दवाओं और फ़ार्मास्युटिकल्स को लेकर बेवजह विवाद खड़ा कर रहे हैं। किसी भी ज़िम्मेदार सरकार की तरह हम पहले यह सुनिश्चित करेंगे कि हमारे पास अपने लोगों के लिए दवाओं का पर्याप्त स्टॉक है।इस लिहाज़ से कुछ दवाओं के निर्यात को रोकने के लिए अस्थायी क़दम उठाए गए थे।
इसके साथ ही अलग-अलग परिस्थितियों में संभावित ज़रूरतों को लेकर भी विचार किया गया। ज़रूरी दवाओं की पर्याप्त उपलब्धता की पुष्टि होने के बाद रोक हटा दी गई है।6 अप्रैल को डीजीएफ़टी ने 14 दवाओं पर लगी रोक हटाने की जानकारी दी है। पैरासीटामॉल और हाइड्रोक्लोरोक्वीन को लाइसेंस की कैटिगरी में रखा जाएगा और उनकी मांग पर लगातार नज़र रखी जाएगी।हालांकि स्टॉक की स्थिति देखते हुए हमारी कंपनियां अपने कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक़ निर्यात कर सकती हैं।”
उन्होंने आगे कहा, ”कोरोना वायरस महामारी की गंभीरता को देखते हुए भारत ने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मज़बूत एकजुटता और सहयोग दिखाना चाहिए।इस दृष्टि से अन्य देशों के नागरिकों की निकासी को लेकर भी निर्देश जारी किए गए है। महामारी के मानवीय पहलुओं के मद्देनजर यह निर्णय लिया गया है कि भारत अपने सभी पड़ोसी देशों, जो हमारी क्षमताओं पर निर्भर हैं, में उचित मात्रा में पैरासीटामॉल और एचसीक्यू के लाइसेंस देगा।महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए कुछ देशों को भी हम इन ज़रूरी दवाओं की आपूर्ति करेंगे।इसलिए हम इस संबंध में किसी भी तरह की अटकलें या राजनीति को ख़ारिज करेंगे।”