भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए किए गए मोदी सरकार के प्रयास रंग दिखाने लगे हैं। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के ‘द इंडिया करप्शन सर्वे 2019’ के मुताबिक, भारत की रैंकिंग सुधरी है और बीते साल के मुकाबले तीन पायदान का सुधार आया है और दस फीसदी की गिरावट आई है। बेनामी संपत्ति और कालाधन रखने वालों पर भी मोदी सरकार का चाबुक जोरों से चल रहा है। आयकर विभाग ने फरवरी 2018 तक 1600 से अधिक लेनदेन का पता लगाने के साथ 3,900 करोड़ की बेनामी संपत्तियां जब्त की है।
बेनामी संपत्तियों की कुर्की के लिए 1500 से अधिक मामलों में कारण बताओ नोटिस जारी किए गए और 1200 से अधिक मामलों में कुर्की भी की जा चुकी है। कुर्की की जाने वाली संपत्तियों का मूल्य 3900 करोड़ रुपये से अधिक है। आयकर विभाग ने ऑपरेशन क्लीन मनी के तीन चरणों में 22.69 लाख ऐसे व्यक्तियों की पहचान की है जिनका कर प्रोफाइल उनके द्वारा नोटबंदी के दौरान जमा की गई धन राशि से मेल नहीं खाता है।
नोटबंदी की अवधि के दौरान इन 22.69 लाख करदाताओं के मामले में बैंक खातों में कुल 5.27 करोड़ की धनराशि जमा पाई गई है। आयकर विभाग के मुताबिक बेनामी संपात्ति लेन-देन रोकथाम कानून के तहत कार्रवाई तेज कर दी गई है। मोदी सरकार ने 1 नवंबर, 2016 को इस कानून को लागू किया था। इस कानून के तहत, चल- अचल किसी किस्म की बेनामी संपत्तियों को फौरी तौर पर कुर्क करने और फिर उनको पक्के तौर पर जब्त करने की कार्रवाई का प्रावधान शामिल है।
इस बरस की शुरूआत साल के पहले दिन केंद्र सरकार की राजस्व खुफिया एजेंसी डीआरआई पर सीबीआई के चाबुक कसने से हुई। सीबीआई ने राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी को तीन करोड़ रुपये घूस लेने के मामले में दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी की पहचान डीआरआई के अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) चंद्रशेखर के रूप में हुई है। जांच एजेंसी ने दो बिचैलियों को भी गिरफ्तार है, जो एडीजी शेखर की ओर से घूस लेते रंगे हाथ पकड़े गए।जांच एजेंसी ने एडीजी शेखर के नोएडा, दिल्ली और लुधियाना के ठिकानों को खंगाला।
सीबीआई शेखर लुधियाना में डीआरआई के एडीजी के रूप में तैनात हैं। सीबीआई अधिकारियों के मुताबिक, अनूप जोशी और राजेश ढांडा को 25 लाख रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया, जो शेखर की ओर से घूस ले रहे थे। पूछताछ में एडीजी चन्द्र शेखर का नाम सामने आया है। संदेह के घेरे में आए एडीजी को बाद में सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया। एजेंसी का कहना है कि जोशी क्लीयरिंग हाउस का एजेंट है, जबकि ढांडा एडीजी शेखर का करीबी दोस्त है। सीबीआई एडीजी शेखर से पूछताछ कर रही है।
सीबीआई के प्रवक्ता के मुताबिक, डीआरआई ने पिछले साल जून में विभिन्न निर्यातकों को सेवा उपलब्ध कराने वाली एक निजी क्लीयरिंग एजेंसी के यहां छापा मारा था। इस दौरान डीआरआई ने एक निर्यातक से जुड़े कुछ दस्तावेज जब्त किए थे। शिकायतकर्ता के अनुसार, इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर जोशी और ढांडा ने एक वरिष्ठ अधिकारी की ओर से तीन करोड़ रुपये की रिश्वत की मांग की थी। रिश्वत के रूप में 25 लाख रुपये की पहली किस्त लेते हुए जोशी और ढांडा को सीबीआई ने दबोच लिया।
इस दौरान एक निर्यातक से संबंधित कुछ दस्तावेज भी जब्त किए गए थे। संबंधित एजेंसी विक्रेता और खरीदार के बीच सामान के आदान-प्रदान में आने वाली रुकावटों को दूर करने का काम करती है। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि क्लीयरिंग हाउस एजेंट अनूप जोशी और चन्द्रशेखर के करीबी दोस्त राजेश ढांडा ने लोकसेवक की ओर से यह सुनिश्चित करने के लिए तीन करोड़ रुपए की रिश्वत मांगी कि डीआरआई उसे बरामद दस्तावेजों के मामले में नहीं फंसाएगा।
केंद्र में सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार ने कुछ समय पहले एक दर्जन वरिष्ठ अधिकारियों को जबरन रिटायर करने के बाद केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सेंट्रल बोर्ड ऑफ इन्डायरेक्ट टैक्सेज एंड कस्टम्स-सीबीआईसी) से प्रधान आयुक्त (प्रिंसिपल कमिश्नर), आयुक्त (कमिश्नर), अतिरिक्त आयुक्त (एडीशनल कमिश्नर) तथा उपायुक्त (डिप्टी कमिश्नर) रैंक के 15 वरिष्ठ अधिकारियों को जबरन रिटायर कर दिया था। नरेंद्र मोदी सरकार ने इससे पहले भी भ्रष्टाचार और पेशेवर कदाचार के आरोप में आयकर विभाग के 12 वरिष्ठ अधिकारियों को जबरन रिटायर कर दिया था।
इन अधिकारीयों में आयुक्त और संयुक्त आयुक्त स्तर के अधिकारी शामिल थे। उस समय सूची में शामिल एक निलंबित संयुक्त आयुक्त के खिलाफ स्वयंभू धर्मगुरु चंद्रास्वामी की मदद करने के आरोपी व्यवसायी से जबरन वसूली करने तथा भ्रष्टाचार की गंभीर शिकायतें थी। उस सूची में नोएडा में तैनात आयुक्त (अपील) के पद का आईआरएस अधिकारी भी था, जिस पर आयुक्त स्तर की दो महिला आईआरएस अधिकारियों के यौन उत्पीड़न का आरोप भी था।
इनके अलावा, आयकर विभाग के एक आयुक्त के खिलाफ सीबीआई की भ्रष्टाचार रोधी शाखा ने आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया था और उन्हें अक्टूबर, 2009 में सेवा से निलंबित कर दिया गया था। अब सरकार ने उन्हें भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति लेने के लिए कहा है। एक अन्य अफसर, जो भ्रष्टाचार और जबरन वसूली में लिप्त था और जिसने कई गलत आदेश पारित किए थे, जिन्हें बाद में अपीलीय प्राधिकरण ने पलट दिया था, को भी सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
आयुक्त स्तर के एक अन्य अधिकारी पर मुखौटा कंपनी के मामले में एक व्यवसायी को राहत देने के एवज में 50 लाख रुपये की रिश्वत मांगने का आरोप लगा था, इसके अलावा पद का दुरुपयोग कर चल-अचल संपत्ति इकट्ठा करने का भी आरोप इस अधिकारी के खिलाफ था। इस अधिकारी को भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी। दरअसल, यह सर्वे भारत में दिल्ली, बिहार, गुजरात व हरियाणा समेत बीस राज्यों में किया गया था। लोगों ने माना कि रिश्वत का भुगतान नकद के रूप में ही किया जाता है।
वहीं सोलह फीसदी ऐसे लोग भी थे, जिन्होंने कहा कि उन्होंने बिना रिश्वत दिये अपने काम करवाये हैं। लोगों का मानना है कि रिश्वत देने के सबसे ज्यादा मामले प्राॅपर्टी पंजीकरण और जमीन से जुड़े विभागों में सामने आते हैं। निष्कर्ष यह भी है कि देश के आधे लोग मानते हैं कि सरकारी दफ्तरों में बिना रिश्वत दिये काम होना संभव नहीं है।
बहरहाल, पारदर्शिता बढ़ने और भारत की रैंकिंग में सुधार होना उम्मीद जगाता है कि यदि देश के सत्ताधीश ईमानदार पहल करें तो भ्रष्टाचार पर किसी हद तक काबू पाया जा सकता है। पिछले साल जहां 56 फीसदी लोगों ने रिश्वत देने की बात स्वीकारी थी, इस साल यह घटकर 51 फीसदी रह गयी है। कहीं न कहीं रिश्वत के प्रतिशत में आई यह कमी पासपोर्ट व रेलवे बुकिंग आदि सेवाओं में ऑनलाइन सेवा शुरू होने के चलते सामने आई है। इसका निष्कर्ष यह भी निकाला जा सकता है कि जन सेवाओं को केंद्रीयकृत व कम्प्यूटराइज्ड करने से भ्रष्टाचार पर किसी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।