उत्तर प्रदेश के हाथरस में पिछले दिनों बागला चिकित्सालय में आइसोलेट किए गए एक युवक की मौत के बाद उसकी कोरोना वायरस रिपोर्ट निगेटिव आई। रिपोर्ट में पता चला कि मृतक युवक कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं था। वह युवक बुखार होने पर पहले आगरा के पारस अस्पताल में इलाज कराने गया था। उसके बाद वह हाथरस आया था। जहां उसे कोरोना का संदिग्ध मरीज बताकर रविवार देर रात बागला जिला चिकित्सालय के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कराया गया था। 32 वर्षीय युवक की कल मौत हो गई ।
युवक की मौत के बाद उसके शव को स्वास्थ्य विभाग ने परिजनों को नहीं दिया। चौंकाने वाली बात यह है कि मृतक युवक की रिपोर्ट से पहले ही उसे इतना डरा दिया गया कि वह कोरोना होने के भय से ही चल बसा। सच क्या है यह तो ईश्वर ही जाने। लेकिन मृतक के परिजनों ने डाक्टरों पर यह आरोप लगाया है। जिसके अनुसार डाक्टरों ने पहले तो उसे यह कहकर डरा दिया कि वह कोरोना वायरस का संदिग्ध मरीज है।
इसके बाद उसको आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कराकर रही सही कसर भी पूरी कर दी। इसी के साथ परिजनों का यह भी कहना है कि अगर समय रहते रिपोर्ट आ जाती तो वह मौत के मुँह में जाने से बच जाता। यानी कि जो खौफ युवक के दिल में कोरोना को लेकर हुआ था वह निगेटिव रिपोर्ट आने पर खत्म हो जाता और वह बच जाता।
अभी कुछ दिन पहले कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने यह कहकर सरकार की घेराबंदी की थी कि कोरोना सदिग्धो की रिपोर्ट आने में देरी हो रही है। जो इस बीमारी को और भी भयावह बना रही है। राहुल गांधी की इस बात को सत्ता पक्ष ने गंभीरता से नहीं लिया।
अगर राहुल गांधी की रिपोर्ट में देरी और कोरोना की धीमी होती जांच को सरकार सिरियसली ले लेती तो शायद उत्तर प्रदेश का यह युवक भी बच सकता था। उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में कोरोना की धीमी होती जांच से शायद अब तक कितनी जाने जा चुकी होगी फिलहाल यह जांच का विषय है।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने ट्विटर पर इस बाबत लिखा है कि कोरोना पर जीत के लिए बड़ी संख्या में जांच की जरूरत है। भारत जांच में कहीं ठहरता नहीं है। बहुत कम स्तर पर जांच हो रही है। इस धीमी गति से जांच लाओस व नाइजर में चल रही है। जांच किट खरीदने में देरी का नतीजा है कि हम जांच में बहुत पीछे हैं।
राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में यह भी कहा कि कोरोना की लड़ाई में उसकी जांच सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, लेकिन इस मामले में हम लाओस, नाइजर और होंडुरास के साथ खड़े हैं। जहां दस लाख लोगों पर क्रमश: 157, 182 और 162 लोगों के टेस्ट हो रहे हैं।
गौरतलब है कि कल लॉकडाउन को 21 दिन हो गए हैं। इस दौरान देश के सबसे बडे़ राज्य उत्तर प्रदेश जिसकी आबादी करीब 21 करोड़ हैं वहां सोमवार तक केवल 13,287 लोगों की कोरोना जांच हुई है। देखा जाए तो यहां रोजाना औसतन 633 लोगों की जांच हो रही है। खास बात ये है कि यहां लॉकडाउन से पहले से ही जांच हो रही है। प्रदेश में फिलहाल कुल चौदह लैब चल रही हैं। इसके हिसाब से एक लैब में रोजाना तकरीबन 45 सैंपल की ही जांच हो रही है।
जांच की यही गति अगर दूसरे देशों में देखी जाए तो वह हमारे यहा के मुकाबले बहुत अधिक है। इटली की ही बात करे तो यहां 10,10,193 जांच हुई और 1,56,363 लोगों में वायरस मिला। इसी तरह स्पेन में छह लाख जांच हुई और 1,69,496 लोगों में वायरस मिला। फ्रांस में 3,33,807 सैंपल लिए और 1,32,591 लोग कोरोना पाजिटिव पाए गए। इसी तरह ब्रिटेन में अब तक 3,52,974 सैंपल लिए गए। जिनमें 84, 279 लोग संक्रमित पाए गए।
अमेरिका की बात करे तो यहा प्रति दस लाख की आबादी पर 8,559 लोगों की जांच हुई है। इटली में 15,935, स्पेन में 7,593, ब्रिटेन में 5,200 और फ्रांस में 5,114 लोगों की जांच अब तक हुई है। हालांकि, अमेरिका की आबादी करीब 32 करोड़ है। इस तरह 135 करोड़ से अधिक की आबादी वाले भारत में प्रति दस लाख की आबादी पर केवल 150 लोगों की ही कोरोना जांच हो रही है।