लॉकडाउन के दौरान 30 मार्च को पीलीभीत निवासी तोले खान को उत्तराखंड की सीमा में आना महंगा पड़ गया। उसे क्या पता था कि लॉकडाउन का पालन करने के दौरान पुलिस उसे बॉर्डर से ही उठा लेगी और क्वॉरेंटाइन कर देगी। हालांकि, यह उत्तराखंड पुलिस की अच्छाई ही कही जा सकती है कि वह बाहर से आ रहे लोगों को कोरोना महामारी के मद्देनजर क्वॉरेंटाइन कर रही हैं।
लेकिन सवालिया निशान यह है कि जब मेडिकल जांच में किसी व्यक्ति की रिपोर्ट कोरोना निगेटिव पाई जाए तो क्या ऐसे में भी उसे क्वॉरेंटाइन करना जरूरी होता है। बताया जा रहा है कि पीलीभीत निवासी तोले खान (54) खटीमा में किसी काम के लिए आया था। लेकिन बाद में प्रशासन की देखरेख में उसे रुद्रपुर स्थित एक गेस्ट हाउस में 14 दिन के लिए क्वॉरेंटाइन कर दिया गया। कहा जा रहा है कि इस दौरान वह अकेला और बंद कमरे में रहने के कारण शायद अवसाद का शिकार हो गया।
बताया जा रहा है कि उसको केवल खाना देने के समय ही कमरे के दरवाजे खुलते थे। कल रात जब तोले खान का दरवाजा खोला गया तो कमरे के अंदर का दृश्य देखकर खाना देने जाने वाला व्यक्ति चीख मारकर वापस उल्टे पांव लौट आया। उसने आकर गेस्ट हाउस के प्रशासन को कमरे के अंदर का हाल बताया। तब जाकर देखा गया तो वह बेडशीट से फंदा बनाकर फांसी पर लटका हुआ था। हालांकि, अभी तोले खान की पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं आई है।
लेकिन कहा जा रहा है कि वह शायद अवसाद में आ गया या किसी मामले को लेकर आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठा लिया। उत्तराखंड में यह पहला मामला है जब कोई व्यक्ति कोरोना निगेटिव होने के बावजूद भी फांसी के फंदे पर लटक गया। इस बाबत जब ‘दि संडे पोस्ट’ ने उधम सिंह नगर के पुलिस क्षेत्राधिकारी देवेंद्र पिंचा से बात की तो उन्होंने कहा कि मृतक के परिजनों को बुला दिया गया है और पोस्टमार्टम होने के बाद उसका शव परिजनों को दे दी जाएगा। जब उनसे पूछा गया कि कोरोना निगेटिव होने के बाद भी मृतक को क्वॉरेंटाइन करने की जरूरत होती है तो इस पर उन्होंने जवाब दिया कि यह सरकार का नियम है कि कोई भी व्यक्ति को 14 दिन से पहले क्वॉरेंटाइन किए बिना घर जानने की इजाजत नहीं है।