देशभर में लाखों लोगों की जान जा चुकी है जबकि करोङों लोग इस संक्रमण से संक्रमित हुए। यह वायरस हर रोज नए रूप धारण कर रहा है। जिससे ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। कई देशों में तो तीसरी लहर ने भी दस्तक दे दी है और कई देशों को कोरोना की तीसरी लहर का डर सता रहा है। इस बीच भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद(ICMR) के विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ समय बाद कोरोना महामारी इंफ्लुएंजा यानी फ्लू की तरह हो जाएगी। इसके साथ ही आईसीएमआर ने कहा है कि इससे बचने के लिए हर साल कोरोना वैक्सीन लेने की जरूरत पड़ सकती है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) में डिवीजन ऑफ ऐपिडेमियोलॉजी और कम्युनिकेबल डिसीज के प्रमुख समीरन पांडा ने कहा है कि कुछ समय के बाद कोरोना वायरस एंडेमिक स्टेज पर पहुंच जाएगा। इसका मतलब हुआ कि यह हमेशा एक निश्चित आबादी या क्षेत्र में मौजूद रहेगा लेकिन ये सामान्य बुखार जैसा हो जाएगा। उन्होंने साथ ही कहा है कि वायरस का रूप बदलना(म्यूटेशन) एक सामान्य बात है और इसमें घबराने की कोई जरूरत नहीं है।
क्या होता है एंडेमिक ?
सेंटर्स फॉर डिसीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल (CDC) के मुताबिक, किसी भौगोलिक क्षेत्र के भीतर एक आबादी में किसी बीमारी या संक्रामक वायरस की मौजूदगी या प्रसार को एंडेमिक कहते हैं। जब ये कभी वायुमंडल से कभी खत्म ना हो लेकिन ये सामान्य स्थिति में मौजूद रहे।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के विशेषज्ञ समीरन पांडा ने कहा कि इन्फ्लुएंजा, जिसे आमतौर पर फ्लू के रूप में जाना जाता है। इससे पहले 100 साल पहले एक महामारी आई थी लेकिन आज यह सामान्य बीमारी है। इसी तरह कोरोना महामारी के मामले में हम उम्मीद करते हैं कि यह महामारी होने की अपनी वर्तमान स्थिति से धीरे-धीरे एंडेमिक हो जाएगा। हम फिलहाल सिर्फ बुजुर्गों को हर साल कोरोना वैक्सीन लेने की सलाह देते हैं। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे कोरोना वायरस म्यूटेशन करता जाता है हम वैक्सीन में मामूली बदलाव करते रहते हैं। इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है।
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पांडा ने बताया कि कोरोना के खिलाफ वैक्सीन संक्रमण से नहीं बचाती, लेकिन बीमारी को गंभीर नहीं होने देती। उन्होंने कहा कि ICMR में हुए प्रयोगों में यह साबित हुआ है कि फिलहाल भारत में मौजूद टीके नए कोरोना वेरिएंट के खिलाफ भी प्रभावी हैं। हालांकि अलग-अलग वैरिएंट पर इनका अलग-अलग असर दिख सकता है।
इस दौरान उन्होंने शिशुओं को स्तनपान कराने वाली माताओं को वैक्सीन लेने की सलाह दी है। पांडा ने कहा कि वैक्सीन के बाद मां में विकसित हुईं एंटीबॉडीज स्तनपान के दौरान बच्चे तक पहुंचती हैं। साथ ही ये बच्चे के लिए काफी मददगार हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि टीके सभी के लिए बिल्कुल सुरक्षित हैं, जिनमें अस्थमा, धूल एलर्जी, परागकणों की एलर्जी जैसी सामान्य एलर्जी वाले लोग शामिल हैं।
दोनों डोज लेने से 95प्रतिशत कम हुआ मौत का खतरा
कुछ ही दिन पहले यानी सात जुलाई को आईसीएमआर (ICMR) ने कहा कि कोरोना वैक्सीन की दो डोज लेने से मौत का खतरा 95 फीसदी कम हो गया है। जबकि सिंगल डोज मौत के खतरे को 82 फीसदी तक कम कर देता है। यह दावा तमिलनाडु पुलिस कर्मियों पर किए गए एक अध्ययन पर आधारित है। इस साल 1 फरवरी से 14 मई तक तमिलनाडु में पुलिस कर्मियों पर अध्ययन किया गया।
आइसीमार के अध्ययन में शामिल तमिलनाडु के 67 हजार 673 पुलिसकर्मियों ने टीके की दो खुराक ली है। जबकि 32 हजार 792 लोगों ने केवल एक खुराक ली और 17 हजार 59 ऐसे लोग थे जिन्होंने एक भी खुराक नहीं ली। इनमें से 31 की मौत हो चुकी है। जबकि मरने वालों में वैक्सीन की दोनों डोज लेने वाले 4 लोग ही हैं। एक डोज लेने वालों में 7 लोग और वैक्सीन की एक भी डोज नहीं लेने वाले 20 लोग शामिल थे।
आईसीएमआर के अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन लोगों को टीका लगाया गया था। उनके अस्पताल में भर्ती होने की संभावना 77 फीसदी कम हो जाती है। साथ ही ऑक्सीजन की आवश्यकता 95 प्रतिशत कम रहती है। उन्हें आईसीयू में भर्ती करने की आवश्यकता 94 प्रतिशत कम होती है।