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असम में स्कूलों के विलय को लेकर घमासान

असम सरकार द्वारा सरकारी प्राथमिक स्कूलों का दूसरे स्कूलों में विलय करने की नीति के चलते पिछले एक साल में 20 जिलों में 1,710 से ज्यादा स्कूल बंद हो गए हैं। जिसे लेकर पर विवाद बढ़ता ही जा रहा है। इस नीति का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि सरकार स्कूलों की संख्या बढ़ाने के बजाए उन्हें बंद करने में जुटी हुई है।इससे पहले इस साल अगस्त में दसवीं की परीक्षा में एक भी छात्र के पास नहीं होने की वजह से 34 सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया गया था। इस मुद्दे पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के बीच ट्विटर पर जंग भी हो चुकी है। तब अरविंद केजरीवाल का कहना था कि मौजूदा दौर में देश में नए स्कूलों की जरूरत है लेकिन असम सरकार जो स्कूल हैं उन्हें भी बंद करने में जुटी है।

 

दरअसल, पिछले एक साल में असम सरकार ने राज्य के 1,710 स्कूलों को बंद कर दिया है। हालांकि सरकारी भाषा में इसे विलय कहा जा रहा है। यानी जिन स्कूलों में विभिन्न वजहों से छात्रों, शिक्षकों या आधारभूत ढांचे की कमी है उनको दूसरे स्कूलों के साथ विलय कर दिया गया है। इस शिक्षा विभाग का कहना है कि ऐसे कुछ स्कूलों में कुछ कक्षाओं में तो छात्रों की संख्या बहुत कम थी। इससे पहले सरकार ने ऐसे तमाम स्कूलों को नोटिस भेज कर विलय की जानकारी दी थी जहां छात्रों की तादाद 30 से कम थी। उन स्कूलों का विलय नजदीक के सरकारी स्कूल में कर दिया गया। इस दौरान शिक्षकों का भी तबादला कर दिया गया था। इस पर शिक्षा विभाग कहना है कि असम के विभिन्न इलाकों में बड़ी तादाद में अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की स्थापना के बाद सरकारी स्कूलों में छात्रों की तादाद कम हो गई थी। कई स्थान पर तो जरूरत से ज्यादा स्कूल हो गए थे। जिन 1,710 स्कूलों को अब तक बंद किया गया है उनमें सबसे ज्यादा 148 मोरीगांव जिले में हैं। लेकिन विरोध के बाद असम सरकार का कहना है कि इसका मकसद छात्र,शिक्षकों अनुपात बेहतर बनाना है। इसके अलावा स्कूलों पर होने वाला प्रशासनिक खर्च कम करना है।असम के शिक्षा मंत्री रनोज पेगु का कहना है कि यह प्रक्रिया अभी जारी रहेगी। राज्य बोर्ड परीक्षाओं के नतीजों और छात्रों की संख्या के आधार पर भविष्य में भी स्कूलों के विलय का फैसला किया जाएगा। राज्य सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए जो कदम उठाए हैं उनमें जरूरत से ज्यादा स्कूलों वाले इलाकों में उनका विलय और कम स्कूल वाले इलाकों में नए स्कूल खोलना शामिल है।

इससे पहले भी सरकार स्कूलों का विलय करती रही है लेकिन पिछले साल से इस प्रक्रिया में काफी तेजी आई है। इस साल दसवीं की बोर्ड परीक्षा में 102 स्कूलों का प्रदर्शन काफी खराब रहा था। कुल मिला कर पूरे राज्य में 56 फीसदी छात्र ही इस परीक्षा में पास हो सके थे। उसके बाद ही सरकार ने उन 34 स्कूलों को बंद करने का फैसला किया जहां एक भी छात्र पास नहीं हुआ था। शिक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 45 हजार ऐसे सरकारी स्कूल हैं जहां आठवीं कक्षा तक पढ़ाई होती है। अब इनमें से ज्यादातर स्कूलों का नजदीकी हाई स्कूल या हायर सेकेंडरी स्कूलों में विलय पर विचार चल रहा है।सरकारी नियमों के मुताबिक दो किलोमीटर के दायरे में स्थित दो स्कूलों में से अगर किसी में हर कक्षा में 40 से ज्यादा छात्र नहीं हों, तो उस स्थिति में उन दोनों का विलय किया जा सकता है।

विलय का विरोध क्यों

 

असम सरकार के इस फैसले का राज्य के सामाजिक कार्यकर्ता विरोध कर रहे है। उनका कहना है कि इस फैसले से सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी। इस फैसले का कई स्कूल कर्मचारी भी इस नीति का विरोध कर रहे हैं। राजधानी गुवाहाटी में 50 साल से ज्यादा पुराने नतून फाटासिल टाउन लोअर प्राइमरी स्कूल ने इस विलय नीति के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाने वाले स्कूलों में शामिल था। 327 छात्रों वाले इस स्कूल का जुलाई के आखिर में नतून फाटासिल टाउन हाई स्कूल में विलय कर दिया गया,लेकिन स्कूल प्रबंधन समिति, शिक्षक और अभिभावक इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक,स्कूल के शिक्षक का कहना है कि ‘हाई स्कूल में पहले से ही आठ सौ से ज्यादा छात्र हैं। छात्रों की इतनी भारी तादाद के साथ कोई स्कूल कैसे काम कर सकता है और पठन-पाठन का उचित माहौल कैसे बन सकता है? इसके बावजूद प्रबंधन समिति ने विलय के खिलाफ शिक्षा विभाग को ज्ञापन भी भेजा है। इसी तरह 1951 में स्थापित लुटुमा लोअर प्राइमरी स्कूल का विलय नजदीक के दक्षिण गुवाहाटी हाई स्कूल में किया गया है। इस प्राइमरी स्कूल में 531 छात्र थे, जो विलय के कटऑफ से कहीं ज्यादा हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस स्कूल के भी एक शिक्षक का कहना है कि विलय के पहले प्रबंधन समिति या शिक्षकों से कोई राय नहीं ली गई। हमसे जबरन विलय के कागजात पर हस्ताक्षर कराए गए। हमें धमकी दी गई कि अगर हमने हस्ताक्षर नहीं किए तो हमारा वेतन रोक दिया जाएगा। विलय के बाद हाई स्कूल में छात्रों की तादाद 1000 हजार पार हो गई है जबकि स्कूल महज 31 शिक्षक हैं। इसी दौरान एक अन्य शिक्षक सवाल करते हैं,मौजूदा स्थिति में हम गुणवत्ता कैसे कायम रख सकते हैं।

असम स्टेट प्राइमरी टीचर्स एसोसिएशन ने भी सरकार से इस नीति की समीक्षा करने का अनुरोध किया है। इसके अलावा उन्होंने अपने ज्ञापन में विलय की कई ऐसी मिसाल दी है जहां समुचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था। इस पर असम एसोसिएशन के महासचिव रातुल चंद्र गोस्वामी कहना है कि,स्कूलों के एकीकरण पर जिला स्तरीय समितियों के सदस्यों ने स्कूलों का दौरा किए बिना भी कई मामलों में विलय को अपनी मंजूरी दे दी है। एसोसिएशन ने सरकार पर उन स्कूलों का भी विलय करने का आरोप लगाया जिसमें 300 से अधिक छात्र थे। एएसपीटीए ने सरकार से अपील की है कि सरकारी एजेंसियों के माध्यम से जमीनी स्थिति का सत्यापन नहीं होने तक स्कूलों के एकीकरण की प्रक्रिया रोक दी जाए। इसके अलावा अखिल असम छात्र संघ (आसू) ने भी किया है।आसू के अध्यक्ष का दीपंकर नाथ का कहना है कि असम के कई स्कूलों की स्थापना आम लोगों से दान में मिली जमीन और पैसों से की गई थी। जिसके बाद में सरकार ने उनका अधिग्रहण कर लिया गया था सरकार को इन स्कूलों को बंद करने की बजाय उनके खराब प्रदर्शन की वजहों का पता लगा कर उनको दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

इस पर विशेषज्ञ भी कहते है कि,असम में सरकारी स्कूल निजी स्कूलों के फलने-फूलने की राह में रोड़ा बन रहे थे। इसलिए उनको बंद किया जा रहा है। सरकार भले इसे विलय बता रही हो, यह सीधे स्कूलों को बंद करने का मामला है। इससे संबंधित इलाकों के छात्रों के सामने विकल्प घट गया है। लेकिन विरोध के बाद असम के शिक्षा मंत्री ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। मंत्री रनोज पेगु कहते हैं, शिक्षा विभाग ने स्कूलों के विलय के विरोध में आने वाली याचिकाओं की समीक्षा के लिए एक समिति का गठन किया है।

 

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