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मनरेगा बजट में लगातार जारी है कटौती

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून देश की एकमात्र योजना है, जो 2008 के वैश्विक आर्थिक सुनामी और 2020 में विश्वव्यापी कोरोना महामारी के दौरान लोगों के लिए संजीवनी साबित हुई। वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 1.11 लाख करोड़ रुपये खर्च कर 7.5 करोड़ परिवारों के 11 करोड़ श्रमिकों को रोजगार प्रदान किया था। यह मनरेगा के 16 वर्षो के इतिहास में सर्वाधिक बजटीय आवंटन था। इसका एक प्रमुख कारण कोविड जैसे महामारी में जब देश ही नहीं पूरी दुनिया में आर्थिक गतिविधियां थम गई थीं, तब मजदूरों को इसी योजना ने व्यापक पैमाने पर रोजगार मुहैया कराया था। लेकिन इसके बावजूद ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने वाली मनरेगा योजना में केंद्र की मोदी सरकार लगातार कटौती कर रही है।

 

दरअसल,साल 2023-24 के बजट में मनरेगा के लिए बजट आवंटन महज 60 हजार करोड़ रुपये का है। यह पिछले साल के मुकाबले 33 फीसदी कम है। इससे उलट एक साल पहले इस योजना के लिए बजट में 73 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। बाद में इसे रिवाइज कर 89,400 करोड़ रुपये कर दिया गया था। इससे एक साल पहले मतलब 2021-22 में इस योजना को 98,468 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। साल 2020-21 में तो इसके लिए बजट में तो 61,500 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, लेकिन बाद में इसे रिवाइज कर 1,11,500 करोड़ रुपये कर दिया गया था। इसके बाद से मनरेगा में लगातार कटौती जारी है। हालांकि कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी कहा था कि मनरेगा कांग्रेस के 60 सालों के पापों का नतीजा है। यह उसकी विफलता का स्मारक है। ऐसे में हम इसे बंद करने की गलती करने के बदले पूरे तामझाम और गाजे-बाजे के साथ इस योजना को पेश करते रहेंगे। जिससे, लोगों को पता चलता रहे कि आजादी के 60 साल बाद भी कौन लोगों से गड्ढे भरवा रहा है।

इस को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि मनरेगा में लगातार हो रही कटौती का सीधा असर देश के ग्रामीण खेतिहर मजदूरों पर पड़ेगा,क्योंकि इसके वजह से कई मज़दूरों को काम भी नहीं मिलेगा। इसके अलावा देश के मनरेगा मजदूरों की मजदूरी राज्यों की न्यूनतम कृषि मजदूरी से भी कम है। उन्हें किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा की गारंटी भी नहीं है। रोजमर्रा की खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी चीजें महँगी होने से हालात खराब हो रहे हैं,जो मनरेगा मज़दूरों के लिए नुकशान दायक है। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि मोदी सरकार का बजट जनता के लगातार गिरते विश्वास का सबूत है तथा इसे सिर्फ चुनाव को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इस बजट में दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए कुछ भी नहीं है। उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए एक भी कदम नहीं उठाया गया है। मनरेगा का बजट 38,468 करोड़ रुपए कम कर दिया है। तो गरीबों का क्या होगा ? शिक्षा और स्वास्थ्य बजट में कोई वृद्धि नहीं बल्कि कमी हुई है।

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