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कृष्ण कुमार

राज्य में बेरोजगारों की फौज बढ़ती जा रही है। लेकिन राजनेताओं को सत्ता हासिल करने के बाद सिर्फ अपने चहेतों की चिंता रही है। इसके लिए उन्होंने कायदे-कानूनों की भी जमकर धज्जियां उड़ाई। अधिकारी भी उनका अनुसरण करने में पीछे नहीं रहे। उत्तराखण्ड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र को ही ले लीजिए। यहां उच्च अधिकारी अपने चहेतों को नौकरी दिलाने के लिए पहले से कार्यरत उन कर्मियों को चुन-चुनकर बाहर कर रहे हैं, जिन्होंने निष्ठा से संस्थान को अपनी सेवाएं दी हैं

उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद युवाओं को रोजगार से जोड़ने के तमाम दावे किये गये, लेकिन राज्य सेवा योजन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में तकरीबन ९ लाख पंजीकूत बेरोजगारों की फौज रोजगार पाने के लिए तरस रही है। यह आंकड़े केवल पंजीकृत बेरोजगारों के हैं। असल में बेरोजगारों की संख्या इससे भी कहीं अधिक बताई जाती है। छोटे से राज्य में इतनी बड़ी संख्या में बेरोजगार युवा होने से साफ है कि रोजगार दिए जाने के वादों और दावों पर कोई भी सरकार खरी नहीं उतरी। नतीजा यह है कि हर वर्ष राज्य में बेरोजगारों की संख्या बढ़ती ही रही है। ऐसा नहीं है कि राज्य में रोजगार के साधन पैेदा नहीं किए गए लेकिन हकीकत में इनका फायदा सिर्फ राजनेताओं और अफसरों के चहेतों को ही मिल पाया है। अपने चहेतों के लिए बैकडोर से एंट्रियां तक की गई हैं। सचिवालय और विधानसभा में तो राज्य बनने के बाद से जमकर बैकडोर से नौकरियां बांटी गई हैं। अभी हाल ही में विधानसभा अध्यक्ष के सुपुत्र के लिए भी उपनल के माध्यम से जल संस्थान में गुपचुप तरीके से नौकरी की व्यवस्था खासी चर्चाओं में रही। इसके लिए नियम और कानून तोड़े जाने की चर्चा रही। जाहिर है कि बड़े पदों पर बैठे लोगों के लिए नियम-कानूनों का पालन नहीं किया जाता है। आश्चर्यजनक है कि एक ओर सरकार बेरोजगारों को रोजगार देने के अपने वादे पर खरा नहीं उतर पा रही है तो दूसरी तरफ जो युवा कहीं रोजगार से जुड़े हैं उनको भी बेरोजगार करने का षड्यंत्र किया जा रहा है। हाल ही में उत्तराखण्ड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र का एक ऐसा ही मामला सामने आया है जिसमें विगत सात वर्ष से आउट सोर्सिंग डाटा ऑपरेटर के पद पर कार्यरत शीला रावत को संस्थान के नए निदेशक द्वारा कार्यमुक्त कर दिया गया, जबकि शीला रावत ७ वर्ष से अपनी सेवायें निरंतर दे रही थीं। संस्थान उनके सेवा कार्य से पूरी तरह से संतुष्ट भी था जिसका प्रमाण स्वंय संस्थान द्वारा जारी किया गया है। बसंत विहार स्थित उत्तराखण्ड अंतरिक्ष विज्ञान उपयोग केंद्र की स्थापना कांग्रेस की तिवारी सरकार के समय की गई थी। वर्तमान में इस संस्थान में नियमित २२ पद स्वीकूत है। साथ की इसमें आउटसोर्सिंग के माध्यम से कई वर्षों से कर्मचारियों के पद भरे गए हैं। इनमें उपनल के माध्यम से ११ पदों पर आउट सोर्सिंग के कर्मचारी हैं तो बीएसएन सर्विस के माध्यम से ८ पदों पर कर्मचारियों को रखा गया है। इससे तकरीबन १९ बेरोजगारों को आउटसोर्सिंग के माध्यम से रोजगार मिला हुआ है। सूत्रों की मानें तो संस्थान में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा अपने चहेतों को संस्थान में भर्ती करने का खेल रचा जा रहा है। लेकिन पदों के अनुरूप सामंजस्य न बैठ पाने के चलते किसी तरह से आउट सोर्सिंग कर्मचारियों को एक-एक कर निकाले जाने का षड्यंत्र रचने का काम किया गया। इस पूरे षड्यंत्र के पीछे कांग्रेस की पूर्ववर्ती हरीश रावत सरकार के एक आदेश को माना जा रहा है। दरअसल, हरीश रावत सरकार द्वारा राज्य में कार्यरत संविदाकर्मियों को पांच वर्ष की सेवा पूर्ण होने पर नियमित करने और आउट सोर्सिंग के माध्यम से कार्यरत कर्मियों को सविंदा में किये जाने की द्घोषणा की गई थी। इससे राज्य में आउट सोर्सिंग के माध्यम से रोजगार पाने वाले हजारों कर्मियों को अपना भविष्य सुरक्षित होने की आशा भी जगी थी। इसी के चलते उत्तराखण्ड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र में बैठे उच्चाधिकारियों ने अपने चहेतों के लिए संस्थान में गुपचुप तरीके से भर्ती करने का जरिया बनाने का प्रयास किया गया। इसके लिए सबसे पहले बीएसएन सर्विस से अनुबंध समाप्त किया गया। जबकि संस्थान यह बेहतर तरीके से जानता था कि ८ कर्मी बीएसएन सर्विस के माध्यम से कई वर्षों से कार्यरत हैं औेर अनुबंध को बढ़ाया जा सकता था। बावजूद इसके अनुबंध ही समाप्त करने का काम किया गया जिससे बीएसएन सर्विस के माध्यम से कार्यरत कर्मियों को आसानी से सेवा मुक्त किया जाए और इसके बाद अपने चहेतों को अन्य आउट सोर्सिंग एजेंसियों के माध्यम से संस्थान में खाली पदों पर बैठाया जाए। सूत्रों की मानें तो हाईकोर्ट के आदेश के बाद उपनल के माध्यम से केवल सेना से जुड़े लोगों के परिवार और पूर्व सैनिकों के लिए ही रोजगार दिए जाने के आदेश्ा दिए गए थे। जिस पर २०१६ में सरकार द्वारा नियम बनाए गए। अब उपनल के माध्यम से आम नगरिकों को किसी भी सूरत में आउट सोर्सिंग के माध्यम से रोजगार नहीं दिया जा सकता। विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के सुपुत्र को भी जल संस्थान में उपनल के माध्यम से नौकरी दी गई थी। लेकिन नियमानुसार गैर सेैनिक पृष्ठ भूमि के नागरिक को उपनल के माध्यम से सेवा नहीं दी जा सकती। विधानसभा अध्यक्ष के सुपुत्र को त्यागपत्र देना पड़ा। अब अपने चहेतों को रोजगार दिलाने के मकसद से राज्य में आउट सोर्सिंग ऐजेंसियों की महत्ता बढ़ गई है। अब इनके द्वारा सरकारी विभागों में आउट सोर्सिंग से कर्मियों को भर्ती किया जा रहा है। शायद इसी के चलते यूसेक में बीएसएन सर्विस का अनुबंध समाप्त किया गया जिससे अन्य दूसरी आउट सोर्सिंग ऐजेंसी के साथ अनुबंध किया जा सके और अपने चहेतों को मनमाफिक पदों पर भर्ती किया जा सके। महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट के यूसैक के नए निदेशक बनते ही इस काम को सबसे पहले किया गया। उनके नये निदेशक का पद भार संभालते ही सबसे पहले बीएसएन सर्विस के माध्यम से रोजगार पाने वाली एक महिलाकर्मी को संस्थान से त्याग पत्र देने के लिए मजबूर किया गया। उक्तकर्मी के बगैर किसी विरोध के त्याग पत्र दिए जाने से संस्थान के अधिकारियों के हैासले बुलंद हो गए और एक माह के बाद अचानक शीला रावत को भी संस्थान से चलता करने के आदेश जारी कर दिए गए। हैरानी की बात यह है कि शीला रावत को सेवा मुक्त करने के पीछे बीएसएन सर्विस से अनुबंध समाप्त किया जाना मुख्य कारण बताया गया है लेकिन अन्य सेवारत कर्मी जो कि बीएसएन सर्विस के माध्यम से आउट सोर्सिंग पर कार्यरत हैं, उनमें से किसी को नहीं हटाया गया है। जानकारी के अनुसार शीला रावत के पद पर निदेशक और वित्त अधिकारी अपने चहेते को भर्ती करने के प्रयास में हैं। इसके चलते ही उन्हें सेवा मुक्त किया गया। शीला रावत द्वारा इसका विरोध किया गया। ३३ दिनों से वह संस्थान के बाहर नियमित धरने पर महज इसलिए बैठी हैं कि सात वर्षों से कार्यरत होने के बावजूद उन्हें षड्यंत्र रचकर बेरोजगार किया जा रहा है। जिस पर उन्हें उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी और आउट सोर्सिंग कर्मचारी संद्घ के अलावा कई राजनीतिक दलों का भी समर्थन मिल रहा है। शीला रावत ने अपने साथ हुए इस अन्याय मुख्यमंत्री, राज्यपाल और सरकार के सभी कैबिनेट मंत्रियों को अवगत कराया है। बावजूद इसके न तो सरकार की ओर से कोई प्रयास किए गए हैं और न ही संस्थान इस पर कोई सकारात्मक रवेैया अपना रहा है। सूत्रों की मानें तो संस्थान में अपने चहेतों के लिए कई नियम- कायदों तो तोड़ा गया है। दो वर्ष से अनुपस्थित रही एक महिला कर्मी को संविदा पर फिर से तैनात करने में संस्थान के अधिकारियों ने एक क्षण भी नहीं लगाया। लेकिन शीला रावत के लिए संस्थान के दरवाजे बंद कर दिए गए हैं।

बात अपनी-अपनी
मैं ७ वर्ष से यूसेक में कार्यरत थी। मुझे नए निदेशक ने आते ही नौकरी से निकाल दिया। जबकि बीएसएन सर्विस से काम करने वाले अन्य लोगों को अभी भी रखा हुआ है। केवल दिखावे के लिए बायोमैट्रिक हाजिरी से कुछ का नाम हटाया गया है लेकिन वे निरंतर काम कर रहे हैं। उनको कहा गया है कि उनका एडजस्टमेंट अन्य प्रोजेक्टों में कर दिया जाएगा। मुख्यमंत्री के अलावा सरकार के सभी मंत्रियों तक से मैंने अपनी विपदा बताई है। सचिव आईटी को भी मेरे प्रकरण की पूरी जानकारी है। अपने चहेतों के लिए निदेशक और अधिकारियों ने मुझे नौकरी से निकाला है। मैं एक महीने से ज्यादा समय से धरने पर हूं लेकिन अभी तक मुझे न्याय नहीं मिला। अब यूसेक कहता है कि सरकार से आउटसोर्सिंग एजेंसियों से कॉन्ट्रैक्ट समाप्त करने के आदेश जारी हुए हैं। लेकिन मुझे २८ फरवरी को नौकरी से निकाला गया है जबकि सरकार ने २७ अप्रैल को आदेश जारी किए थे। इससे स्पष्ट है कि यूसेक के अधिकारी और नए निदेशक मुझे निकालने का पहले ही प्लान बना चुके थे। जब तक मुझे न्याय नहीं मिल जाता तब तक मैं लड़ती रहूंगी। शीला रावत, कार्यमुक्त कर्मचारी यूसेक शीला रावत कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रही थी। कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने पर ही उनको निकाला गया है। बीएसएन सर्विस से कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले अन्य लोगों को नहीं हटाया गया है, यह मेरी जानकारी में नहीं है। मैं इसकी जानकारी लूंगा। रविनाथ रमन, सचिव विज्ञान और प्रौद्योगिकी उत्तराखण्ड आपको पूरी जानकारी नहीं है। बीएसएन सर्विस से कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद ही शीला रावत को हटाया गया है। जब कॉन्ट्रेक्ट ही नहीं है तो उसका वेतन यूसेक कैसे दे सकता है। हमने बीएसएन सर्विस से कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए सभी लोगों को हटा दिया है। महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट, निदेशक यूसेक शीला रावत के साथ कोई अन्याय नहीं हुआ है। उन्हें बीएसएन सर्विस से कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद ही हटाया गया है। बीएसएन सर्विस से कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे सभी कर्मचारियों को भी हटा दिया है। शासन से आदेश आया था कि पदों से ज्यादा कर्मचारी होने पर हटाए जाएं। कुछ को हमने प्रोजेक्ट पर रखा है। शीला रावत की क्वाल्फिकेशन अन्य प्रोजेक्ट के अनुसार नहीं है इसलिए उनको किसी अन्य प्रोजेक्ट में नहीं रखा गया है। राम सिंह मेहता, वित्त अधिकारी एवं प्रभारी प्रशासनिक अधिकारी

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