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सुप्रीम कोर्ट करेगा इच्छामृत्यु में संशोधन पर विचार

भारत में आत्महत्या को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। लेकिन आये दिन इच्छा मृत्यु की मांग उठती रहती है जिसे देखते हुए साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा मृत्यु को मंजूरी दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा मृत्यु के इस फैसले पर संशोधन के संकेत दिए हैं।

 

जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय पीठ का कहना है कि जिन लोगों ने अपनी लिविंग विल बनाई है, गरिमा के साथ मौत उन लोगों का अधिकार है। क्योंकि ये अदालत गरिमा के साथ मरने के अधिकार को मौलिक अधिकार और अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के एक पहलू के रूप में मान्यता दे चुकी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इच्छा मृत्यु को कानून के रूप में लागू करने का सुझाव देते  हुए कहा है कि गंभीर रूप से बीमार वे रोगी, जो इलाज नहीं चाहते, उनके लिए इसे क़ानूनी रूप से मन्यता प्रदान की जाय।सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु के फैसले पर संसोधन का संकेत इच्छामृत्यु को सरल और सहज बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया । यह याचिका  अरविंद दत्तार और प्रशांत भूषण  द्वारा दायर की गई जिनका कहना है कि मृत्यु की स्थिति में जटिल प्रक्रियाओं को पूरा कर पाना असंभव है, जिस वजह से लोग बीमारी गंभीर से पीड़ित लोग गरीमापूर्ण तरीके से मर भी नहीं पा रहे हैं।

भारत में क्या है इच्छामृत्यु का नियम 

दुनिया के कुछ ही देश ऐसे हैं जहाँ लोगों को इच्छामृत्यु का क़ानूनी अधिकार प्राप्त है। भारत में इच्छामृत्यु को लेकर अब तक कोई कानून नहीं बनाया गया है। हालांकि साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु को मंजूरी दी थी, लेकिन इसकी प्रक्रिया काफी धीमी और मुश्किल है। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लाये गए फैसले के अनुसार कोर्ट ने असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को निष्क्रिय अवस्था में इच्छामृत्यु की अनुमति  दी थी। अदालत ने सम्मान के साथ मृत्यु के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मन्यता दी थी। लेकिन इससे पहले पीड़ित को लिविंग विल लिखना आवश्यक है। इस अधिकार के तहत 2 प्रकार सेलोगों को इच्छा मृत्यु दी जा सकती है । जिसमें एक्टिव यूथेनेशिया और पैसिव यूथेनेशिया शामिल हैं। एक्टिव यूथेनेशिया: इस स्थिति में इच्छामृत्यु मांगने वाले किसी व्यक्ति को इस कृत्य में सहायता प्रदान की जाती है, जैसे-ज़हरीला इंजेक्शन लगाना या पेन किलर का ओवरडोज़ देना। जिससे बिना किसी पीड़ा के व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
पैसिव यूथेनेशिया: इस स्थिति में इच्छामृत्यु  के लिये व्यक्ति को किसी प्रकार चिकित्सक सहायता प्रदान नहीं की जाती। अर्थात एक्टिव यूथेनेशिया वह प्रक्रिया है, जिसमें मरीज़ की मृत्यु के लिये कुछ किया जाए, जबकि पैसिव यूथेनेशिया वह प्रक्रिया है जिसमें मरीज़ की जान बचाने के लिये कुछ न किया जाए।

 

क्या है लिविंग विल 

 

लिविंग विल इच्छामृत्यु के लिये लिखी गई वसीयत कही जा सकती है।  यह एक ऐसा लिखित दस्तावेज है, जिसमें कोई मरीज़ पहले से यह लिख देता है कि मृत्यु की स्थिति में पहुँचने या इच्छामृत्यु की रजामंदी नहीं दे पाने की स्थिति में होने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाए। या मृत्यु के निकट पहुँचने पर उसे इलाज देना बंद कर दिया जाये ताकि वह गरिमा के साथ मर सके।

 

इच्छामृत्यु को लेकर किन देशों में क्या है कानून

 

साल 2002 में नीदरलैंड ने इच्छा मृत्यु को कानूनी रूप से वैध घोषित किया गया। इसके बाद कई ऐसे देश भी हैं जहाँ गंभीर बीमारी से ग्रसित लोगों को इक्का मृत्यु प्रदान की जाती है।

बेल्जियम : नीदरलैंड के अलावा, बेल्जियम दूसरा देश है जहां गंभीर मानसिक बीमारियों वाले लोगों को भी कानूनी तौर पर बहुत सख्त शर्तों के साथ अपनी जान लेने की अनुमति है। हालांकि, अगर शर्तों का ठीक से पालन नहीं किया जाता है, तो मरने में मदद करने वाले व्यक्ति को एक से तीन साल तक की जेल हो सकती है।

लक्समबर्ग : वर्ष 2008 में यहां भी इच्छामृत्यु और चिकित्सा सहायता को वैधता मिली। यह गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए एक कानूनी विकल्प बन गया। इसके लिए मरीज को बार-बार मांग करनी पड़ती है और अपने पक्ष में दी गई सलाह को कम से कम दो डॉक्टरों और एक मेडिकल पैनल को लिखित में देना होता है।

स्विट्ज़रलैंड : अब तक कई देशों ने इसे कानूनी मान्यता दी है, लेकिन स्विट्जरलैंड एकमात्र ऐसा देश है जहां कोई भी विदेशी कानूनी तौर पर इच्छामृत्यु प्राप्त कर सकता है। मरीज चाहे तो चिकित्सकीय सहायता ले सकता है। अपनी जान लेना यहां अपराध नहीं है। साथ ही यहां दुनिया की पहली सुसाइड मशीन भी बन गई है।

ऑस्ट्रेलिया : विक्टोरिया ऑस्ट्रेलिया का पहला राज्य है जहां जून 2019 में इच्छामृत्यु कानून लागू हुआ। यह केवल उन लोगों पर लागू होता है जो घातक बीमारी से पीड़ित हैं और उनका दिमाग ठीक से काम कर रहा है। साथ ही जिनकी जिंदगी के सिर्फ छह महीने बचे हैं। उम्मीद है कि इसके बाद क्वींसलैंड और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया राज्यों में भी ऐसे कानून पारित किए जा सकते हैं।

कोलंबिया : वर्ष 2015 में कोलंबिया इच्छामृत्यु को मान्यता देने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया। हालांकि कोलंबिया की संवैधानिक अदालत ने वर्ष 1997 में ही इसके पक्ष में फैसला सुनाया था, लेकिन डॉक्टर ऐसा नहीं करना चाहते थे। वजह थी देश का एक और कानून जिसमें दया-मृत्यु के लिए छह महीने से तीन साल तक की कैद का प्रावधान था।

अमेरिका : कुछ अमेरिकी राज्यों जैसे ओरेगन में इच्छामृत्यु 1997 से कानूनी है। बाद में इसे कैलिफोर्निया में भी मान्यता दी गई थी। जो व्यक्ति आत्महत्या करना चाहता है, उसे डॉक्टर दवा देते हैं, जिसे कॉकटेल कहते हैं। इसे लेते ही रोगी सो जाता है और आधे घंटे के भीतर उसकी मृत्यु हो जाती है।

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