उम्मीदों के अनुरूप ही चुनाव तारीखों की घोषणा के पश्चात सियासी दलों की रणनीति अब खुलकर सामने आने लगी है। जहां एक ओर भाजपा के कई नामचीन मौजूदा सांसदों का टिकट कटना तय है वहीं दूसरी ओर कुछ दल और गठबन्धन ऐसे हैं जिन पर ‘सिर मुंड़ाते ही ओले पड़ने’ की कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही है। यहां बात हो रही है सपा-बसपा गठबन्धन की उम्मीदों पर पानी फिरने की, जिसकी शुरुआत कांग्रेस की तरफ से नकारात्मक व्यवहार से हो चुकी है।
बसपा प्रमुख मायावती ने आज अचानक आयोजित एक प्रेस वार्ता में इस बात की घोषणा करके सबको चैंका दिया कि कांग्रेस को न तो गठबन्धन का हिस्सा बनाया जायेगा और न ही बसपा उसके साथ किसी और राज्य में गठबन्धन करेगी।
मायावती की इस घोषणा के पीछे कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी से दूरभाष पर हुई वार्ता के बाद ही उन्हांेने इस तरह का बयान सार्वजनिक किया है। बताते चलें कि प्रियंका गांधी के रोड शो की सफलता के बाद से ही कांग्रेसी दिग्गज हाई कमान पर लगातार इस बात को लेकर दबाव बना रहे थे कि कांग्रेस को इस बार अकेले दम पर मैदान में उतरना चाहिए। विशेषतौर पर उस यूपी में जहां पर प्रियंका के रोड शो के दौरान जनता की तरफ से बेहद प्यार और समर्थन मिला हो। शायद यही वजह है कि बसपा प्रमुख मायावती को अब कांग्रेस के खिलाफ खुलकर बोलना पड़ा। आज अचानक इस सूचना के बाद से यूपी के सियासी हलकों में हलचल तेज हो गयी है।
अभी कुछ ही मिनट पूर्व बसपा द्वारा जारी किए गए बयान में कहा गया है कि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी किसी भी राज्य में कांग्रेस के साथ कोई भी चुनावी समझौता अथवा तालमेल नहीं करेगी। इससे पूर्व उन्होंने पार्टी नेताओं के साथ बैठक की। बैठक में ही इस तरह के फैसले पर मुहर लगायी गयी। पार्टी द्वारा जारी बयान में कहा गया कि बैठक में उन राज्यों में भी पार्टी की तैयारियों की विशेष समीक्षा की गई जिन राज्यों में बसपा पहली बार गठबंधन कर लोकसभा चुनाव लड़ रही है।
पार्टी की तरफ से जारी बयान में यह भी कहा गया है कि बसपा और सपा का गठबंधन आपसी सम्मान व पूरी नेक नीयत के साथ काम कर रहा है और यह गठबन्धन भाजपा को परास्त करने की पूरी क्षमता रखता है।
दावा किया जा रहा है कि बसपा प्रमुख के इस फैसले के बाद से यूपी के गठबन्धन में कांग्रेस को शामिल किए जाने वाली अटकलें स्वतः समाप्त हो चुकी हैं। अब यह भी साफ हो चुका है कि यूपी में यह गठबन्धन अब सिर्फ राष्ट्रीय लोकदल को ही मिलाकर मैदान में बाजी मारने उतरेगा।
इन अटकलों के साथ एक नया शिगूफा भी छोड़ा जा रहा है वह यह कि क्या गठबन्धन द्वारा कांग्रेस के सम्मान में छोड़ी गयी अमेठी और रायबरेली में भी गठबन्धन की तरफ से कोई प्रत्याशी उतारा जायेगा? फिलहाल इसका जवाब तो किसी के पास नहीं है लेकिन उम्मीद जतायी जा रही है कि जल्द ही इस पर फैसला ले लिया जायेगा।
चुनाव तारीख की घोषणा के बाद से भाजपा में भी गुस्से और बगावत की बू आने लगी है। उन्नाव से मौजूदा भाजपा सांसद साक्षी महाराज का टिकट इस बार कटने वाला है। इस बात की जानकारी मिलते ही साक्षी महाराज अपने चिर-परिचित अंदाज में आग उगल रहे हैं। साक्षी महाराज ने स्पष्ट कह दिया है कि यदि भाजपा ने उन्नाव से उनका टिकट काटा तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे।
भाजपा हाई कमान ने साक्षी महाराज की इस अशोभनीय प्रतिक्रिया को संज्ञान में लेते हुए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई किए जाने की बात कही है। इसी के साथ साक्षी का टिकट काटे जाने के आसार भी बढ़ गए हैं। इतना ही नहीं यूपी के कई अन्य लोकसभा सीटों से भी कुछ इसी प्रकार की प्रतिक्रियाओं के मिलने की उम्मीद जतायी जा रही है।
बताते चलें कि टिकट को लेकर मारामारी सिर्फ भाजपा में ही नहीं बल्कि सपा-बसपा में भी है लेकिन कांग्रेस इस बार काफी सुकून में है। क्योंकि अमेठी और रायबरेली को यदि छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस का कोई भी संभावित प्रत्याशी इतनी हैसियत नहीं रखता है जो यह बात दावे के साथ कह सके कि फलां स्थान की सीट पर उसकी जीत सुनिश्चित है।
फिलहाल बसपा कार्यालय से जारी हुआ प्रेस नोट मीडिया में तो सुर्खी बना ही हुआ है साथ ही यूपी की राजनीतिक उथल-पुथल में भी बराबर की भूमिका निभा रहा है।