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दिनेश पंत

चु नाव में जीत महत्वपूर्ण होती है फिर वह एक मत से हो या फिर हजार मतों से। यह कई कमजोरियों व खामियों को ढकने का काम करती है तो व्यक्ति, संगठन व पार्टी में एक नया आत्मविश्वास भी पैदा करती है। इस लिहाज से भाजपा अपने कद्दावर नेता पूर्व वित्त मंत्री प्रकाश पंत के निधन से रिक्त हुई सीट जो उसकी नाक का प्रश्न भी बनी हुई थी, जीतने में सफल रही। लेकिन वहीं कांगे्रस खेमा भी अधिक निराश नहीं है क्योंकि उनके जिस प्रत्याशी को हल्का व कमजोर माना जा रहा था वह मजबूत टक्कर देने में सफल रही। बहरहाल भाजपा प्रत्याशी चंद्रा पंत अपनी प्रतिद्वंदी कांगे्रस की अंजू लुंठी को 3348 वोटों से शिकस्त देने में सपफल रही। भाजपा उम्मीदवार चंद्रा पंत को 25646 तो कांगे्रस प्रत्याशी अंजू लुंठी को 22298 मत प्राप्त हुये। वहीं तीसरे प्रत्याशी समाजवादी पार्टी के मनोज कुमार भट्ट को 821 मत प्राप्त हुए।
इस उपचुनाव में सहानुभूति की वह लहर नहीं दिखाई दी, जैसी कि उम्मीद थी। पहले यह माना जा रहा था कि भाजपा से महिला उम्मीदवार होने व स्वर्गीय प्रकाश पंत के प्रति महिला मतदाताओं की सहानुभूति का लाभ पार्टी प्रत्याशी को मिलेगा। लेकिन कांगे्रस ने अंत समय में जिस तरह से महिला उम्मीदवार को चुनाव में उतारा तो वह रणनीतिक तौर पर आगे निकल गई। मतगणना के हर राउंड में जिस तरह से कांगे्रस प्रत्याशी मजबूती के साथ उभरकर सामने आई तो गली-चैराहों में यह चर्चा चल निकली कि अगर पूर्व विधायक मयूख महर चुनाव लड़ते तो शायद कांग्रेस इस सीट को आसानी से निकाल ले जाती। जब इस सीट पर वर्ष 2017 के मुकाबले 17.40 प्रतिशत कम मतदान हुआ तो भाजपा कहीं न कहीं अंदर से डरी हुई थी। यह तय था कि सहानुभूति का वातावरण नहीं बना। वर्ष 2017 में इस सीट पर जहां 67007 मतदाताओं ने मतदान किया तो वहीं इस बार 50191 मतदाताओं ने ही अपने मत का प्रयोग किया। इस बार 47.48 प्रतिशत ही मतदान हुआ। जबकि कुल 105117 मतदाता पंजीकृत थे। अगर सहानुभूति की लहर होती तो मतदान प्रतिशत बढ़ना चाहिये था। इस सीट पर कम मतदान से यह बात तो साबित हो गई कि मतदाता सरकार की कार्यशैली व नीतियों से खुश नहीं थे। अगर ऐसा नहीं होता तो जहां लोग मतदान करने से परहेज नहीं करते तो वहीं इस विधानसभा सीट के देवदार बूथ के लोग इस चुनाव का सामूहिक बहिष्कार नहीं करते। देवदार बूथ पर एक भी वोट नहीं पड़ा, जबकि यहां 461 मतदाता थे। सड़क, पानी, संचार सुविधायें लोगों न मिलने से लोग नाराज चल रहे थे। अगर लोग सरकार की नीतियों से खुश होते तो नोटा का प्रयोग नहीं करते। जबकि इस उपचुनाव में 808 लोगों ने नोटा का प्रयोग किया। यह बताता है कि वे सरकार की विकास नीतियों से कतई खुश नहीं हैं।
पिथौरागढ़ उपचुनाव में कांग्रेस ने रणनीतिक चूक न की होती तो भाजपा की यहां हार तय थी। कांग्रेस की जिस प्रत्याशी को कमजोर समझा जा रहा था, उसने कड़ी टक्कर दी। इससे साबित होता है कि लोग राज्य सरकार की कार्यशैली और नीतियांे से खुश नहीं हैं
अगर देखा जाय तो भाजपा भी खुद जीत को लेकर शुरुआती दौर में आश्वस्त नहीं थी। तभी तो चुनाव प्रचार के दौरान स्थानीय रामलीला मैदान में हुई सभा में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट कांगे्रस के पूर्व विधायक मयूख महर के चुनाव न लड़ने पर उनका शुक्रिया अदा न कर रहे होते। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के मन में भी यह बात थी कि अगर मयूख महर चुनाव लड़ते तो शायद उनके लिये यह सीट निकालना आसान नहीं था। अब मयूख क्यों नहीं चुनाव लड़े, इस पर तो कई अटकलें लगती आई हैं। लेकिन 2017 के चुनाव की हार वह अब तक नहीं भूले हैं। यही वजह थी कि वह कांगे्रस प्रत्याशी अंजू लुंठी के पक्ष में जहां भी सभायें कर रहे थे तो लोगों से यही सवाल पूछ रहे थे कि उनके द्वारा पिथौरागढ़ विधानसभा में किये गये तमाम विकास कार्यों के बाद भी आखिर आपने मुझे क्यों हराया? शायद इसी वजह से वह चुनाव नहीं लड़े। लेकिन इसे वह भावनात्मक तरीके से कांगे्रस प्रत्याशी के पक्ष में मोड़ने में सफल रहे। वह मतदाताओं को याद दिलाते रहे कि अगर उन्हें विकास चाहिये तो कांगे्रस प्रत्याशी को जिताइये। इसकी एक वजह यह रही है कि मयूख को पिथौरागढ़ विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेसियों द्वारा विकास पुरुष के नाम से संबोधित किया जाता है। जबकि इस विधनसभा सीट में भाजपा के पास ऐसा कोई चेहरा हाल-फिलहाल नहीं है। भले ही कांगे्रस अपने प्रत्याशी को जिता पाने में सफल नहीं रही, लेकिन एक मजबूत प्रत्याशी के तौर पर उसकी छवि बनाने में वह अवश्य कामयाब हो गयी।
लेकिन इसके उलट भाजपा इस चुनाव में सहानुभूति व स्व. प्रकाश पंत की छवि पर निर्भर थी। पंचायती चुनावी के दौरान अंदरखाने जो घमासान हुआ था, उससे भी भाजपा अंदरखाने डरी हुई थी। भाजपा संगठन भी एकजुट नहीं दिखाई दे रहा था। स्व. प्रकाश पंत की मौत के बाद संगठन से जुड़े कई चेहरे इस सीट में अपना भविष्य तलाश रहे थे। संगठन व पार्टी के कई नेता महत्वाकांक्षा के शिकार भी दिखाई दिये। चुनावों के दौरान भाजपा संगठन को जिस तरह से एकजुट दिखाई देना था, इस चुनाव में वह नहीं दिखाई दिया। पूर्व वित्त मंत्री प्रकाश पंत की मौत के बाद जब उनकी पत्नी चंद्रा पंत ने चुनाव लड़ने से इंकार किया और स्व. पंत के भाई भूपेश पंत जो भाजपा संगठन में लंबे समय से जुड़े हुये थे उनके नाम की चर्चा चली तो एक दर्जन से अधिक पार्टी नेताओं ने दावेदारी पेश कर दी। अंततः पार्टी को स्व. पंत की पत्नी को टिकट देना पड़ा था। यह दिखाता है पार्टी के अंदरखाने सब कुछ अच्छा नहीं है। अगर होता तो पार्टी प्रत्याशी चंद्रा पंत की जीत कहीं अधिक बड़ी होनी चाहिये थी।
कुल मिलाकर भाजपा भले ही यह उपचुनाव जीतने में सफल रही हो, लेकिन पूरी ताकत झोंकने के बाद भी हार व जीत के कम अंतर, नोटा का उपयोग, चुनाव बहिष्कार, कम मतदान सरकार की कार्य प्रणाली के साथ पार्टी संगठन पर भी सवाल खड़े करता है।
शिकायत निवारण के नाम पर खानापूर्ति

जसपाल नेगी

सी एम पोर्टल पर दर्ज शिकायतों का समय से और सही प्रकार से निराकरण नहीं हो पा रहा है। कागजी कार्यवाही कर मात्र खाना पूर्ति की जा रही है। मुख्य मंत्री कार्यालय तक को कार्यवाही की फर्जी रिपोर्ट भेजी जा रही है। केस न ़ एक पत्रांक  मे ़का ़श्री/बे ़चि ़/सफाई/2018-19/1316 शिकायत संख्या च्ळ631332018 में दर्ज शिकायत जो कि बेस चिकित्सालय के शौचालय व्यवस्था को लेकर की गयी थी, में अधिकारियों ने केवल शौचालय मरम्मत की बात लिखकर अपनी रिपोर्ट प्रेषित कर दी गई, जबकि एक वर्ष बीत जाने के उपरांत भी स्थिति जस की तस है। आज भी बेस चिकित्सालय श्रीकोट में शौचालय इतने गंदे हंै कि उपयोग करने की स्थिति में नहीं है।
केस न0 2 में अधिशासी और मुख्य अधिकारी लोक निर्माण विभाग द्वारा शिकायतकर्ता को शिकायत संख्या च्ळ621152018 का प्रतिउत्तर पत्रांक 3819/48- समाधान-रा ़मा ़(उ0) /2018 में  उसके टूटे खेत की सुरक्षा हेतु 4 मीटर दीवार निर्माण का लिखित पत्र दिया गया था जिसका निर्माण आज तक नहीं हुआ। जबकि पत्र में स्पष्ट है कि सम्बंधित ठेकेदार को 4 मीटर दीवार के निर्देश दिये गये हैं। इन बातांे से तो यही स्पष्ट होता है कि मात्र खानापूर्ति हेतु ही पोर्टल पर दर्ज शिकायतांे पर कार्यवाही की जा रही है। ये तो मात्र दो केस हैं, जबकि और न जाने कितने केस विभागों में हैं जो कि खानापूर्ति कर बंद कर दिये गये हैं। इन सभी बातांे से यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि अधिकारी शिकायतकर्ता की शिकायतांे का पूरा निराकरण नहीं करते हैं तो ऐसी योजनाये जो जन हित से जुड़ी हंै उनकी मूल भावना भी फलीभूत नहीं होती और सरकार की छवि भी धूमिल होती है।
रुड़की में हारी सरकार
  • अली खान
रुड़की नगर निगम चुनाव में भाजपा संगठन और सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी थी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सहित तमाम बड़े नेताओं ने जनता को विकास का भरोसा दिया, लेकिन जनता ने निर्दलीय गौरव गोयल के नाम पर मोहर
लगा दी
रुड़की नगर निगम के चुनाव में भकाजपा की करारी हार को राज्य सरकार के खिलाफ उमड़ते जनाक्रोश के तौर पर देखा जा रहा है। चुनाव में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत, कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक और तमाम विधायकों ने दावे किए थे कि भाजपा का मेयर बनने पर रुड़की नगर निगम क्षेत्र का विकास होगा। लेकिन जनता को इन वादों पर भरोसा नहीं रहा। नतीजतन निर्दलीय प्रत्याशी गौरव गोयल ने मेयर पद पर शानदार जीत दर्ज की है। गोयल ने कांग्रेसी प्रत्याशी रिशु राणा को 3451 मतों से हराया और डबल इ ंजर सरकार का राग अलाप रही भाजपा का प्रत्याशी तीसरे स्थान पर चला गया, जबकि मुख्यमंत्री सहित भाजपा और सरकार ने यहां पूरी ऊर्जा झोंक दी थी। निगम के 40 वार्डों में से 20 पर भी निर्दलियों ने जीत दर्ज करके भाजपा को आईना दिखाया है। भाजपा ने सत्रह, कांग्रेस ने दो और बसपा ने एक पार्षद सीट जाती है। बीएसएम इंटर काॅलेज में बने मतगणना स्थल पर प्रातः आठ बजे से मतगणना शुरू हुई। इस चुनाव में भाजपा से बगावत कर निर्दलीय रूप से मैदान में उतरे गौरव गोयल ने पहले राउंड से ही बढ़त बनानी शुरू कर दी। तीन राउंड तक उनका मुकाबला भाजपा के मयंक गुप्ता से चलता रहा, लेकिन अंत में मुकाबला गौरव गोयल और कांग्रेस के रिशु राणा के बीच सिमट गया।
भाजपा तीसरे स्थान पर खिसक गई। मेयर का चुनाव जीतने के बाद गौरव गोयल ने समर्थकों के साथ विजयी जुलूस निकाला। बड़ी संख्या में उनके समर्थक मतगणना स्थल पर पहुंच गये थे। विजय का प्रमाण-पत्र लेने के बाद जैसे ही वह बाहर निकले उनके समर्थकों ने नारेबाजी शुरू कर दी। गौरव गोयल ने उनका अभिवादन स्वीकार किया। बाद में समर्थक उन्हें लेकर उनके आवास पर पहुंचे। इस दौरान पत्रकारों से वार्ता में गौरव गोयल ने कहा कि यह उनकी नहीं, बल्कि जनता की जीत है, क्योंकि वह जनता के समर्थन से जीते हैं। भाजपा में वापस जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि वह निर्दलीय जीते हैं। किसी पार्टी में जाने का कोई विचार नहीं है। उन्होंने कहा कि रुड़की की जनता ने उन पर जो विश्वास किया है वे उसे पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाएंगे। चुनाव के दौरान रुड़की शहर को लेकर उन्होंने जो भी वादे जनता से किए उन्हें पूरा किया जायेगा। रुड़की शहर का पुराना गौरव लौटाने के लिए वे हर सम्भव प्रयास करेंगे।
हरिद्वार जिले के रुड़की शहर में भाजपा की दूसरी हार पार्टी के बड़े नेताओं के लिए अच्छा संकेत नहीं है। शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक के गृह जनपद में एक वर्ष के भीतर भाजपा की यह दूसरी हार है। टिकट वितरण में चूक हरिद्वार में भी रही और रुड़की में भी। हरिद्वार मेयर पद पर टिकट वितरण को लेकर भारी विवाद हुआ था। बाद में इसकी कीमत भाजपा को हार से चुकानी पड़ी थी। हरिद्वार के बाद रुड़की में भी टिकट वितरण में कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर एक ऐसे चेहरे को मैदान में उतार दिया। जिसका शहर में कोई खास जनाधार ही नहीं है। जिसे लेकर पहले दिन से ही विरोध शुरू हो गया और अंत में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा। गौरतलब है कि रुड़की में मेयर चुनाव को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शहर में पैदल डोर-टू-डोर जाकर भाजपा प्रत्याशी मयंक गुप्ता के लिए वोट मांगे थे। इसी प्रकार शहरी विकास मंत्री ने भी भाजपा प्रत्याशी को जिताने के लिए रुड़की शहर में जमकर प्रचार किया था। इसके अलावा विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हरबंश कपूर ने रुड़की आकर विशेष रूप से पंजाबी समुदाय भाजपा के पक्ष में मतदान करने का आग्रह किया। एक तरह से भाजपा संगठन और सरकार ने यहां पूरी ताकत लगाई, परंतु रुड़की की जागरूक जनता ने मुख्यमंत्री समेत भाजपा के अनेक नेताओं की अपील को ठुकराकर शहर के ईमानदार और कर्मठ नेता गौरव गोयल को जिताकर भाजपा को बता दिया कि काठ की हांडी बार-बार चूल्हे पर नहीं चढ़ सकती।

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