कांग्रेस की अंदरुनी लड़ाई विधानसभा चुनावों में पार्टी के लिए काफी नुकसानदायक साबित होगी
कांग्रेस का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से जुड़ा हुआ है। इस पार्टी का गठन वर्ष 1885 में एलन आॅक्टेवियन ह्यूम ने किया था। उन्हीं की अगुआई में बाॅम्बे में पार्टी की पहली बैठक हुई थी। मौजूदा समय में सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली इस पार्टी के बहुत बुरे दिन चल रहे हैं। पार्टी का नेतृत्व किन हाथों में हो, इस मुद्दे पर नेताओं का आपसी घमासान थम नहीं पा रहा है। आगामी दिनों में यह घमासान और तेज होने के आसार हैं। ऐसा इसलिए कि न तो असंतुष्ट नेता अपने कदम पीछे खींचने को तैयार हैं और न ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल उनकी बात मानने के मूड में दिखाई देते हैं।
कांग्रेस के लिए वाकई चिंता का विषय है कि जहां एक ओर केंद्र और राज्यों में उसका जनाधार सिमटता जा रहा है, वहीं पार्टी के सामने अहम सवाल यह भी है कि आखिर भविष्य में पार्टी का खेवनहार कौन होगा? पार्टी अपना नेतृत्व ही तय नहीं कर पा रही है। लोकसभा चुनाव के बाद सोनिया गांधी ही अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम कर रही हैं। पार्टी में जारी वैचारिक मतभेद के बीच अब पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पड्डुचेरी में आगामी विधानसभा चुनावों का ऐलान भी हो चुका है, लेकिन पार्टी आपसी झगड़ों को निपटाकर चुनावों के लिए तैयार नहीं हो पा रही है।
लोकसभा चुनाव 2019 में बुरी तरह परास्त होने के बाद से लगातार कांग्रेस सिमटती जा रही है। कांग्रेस के कुछ बागी नेताओं की ओर से पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी गई थी। इस शिकायती चिट्ठी से पार्टी में खासा हंगामा हुआ था। इन बागी नेताओं के गुट को जी-23 गुट कहा जाता है। ऐसे वक्त में जब पांच राज्यों में चुनाव का बिगुल बज चुका है, जी-23 गुट के नेताओं ने जम्मू में शांति सम्मलेन की अपनी नाराजगी जाहिर की। इससे कांग्रेस के आम कार्यकर्ता चिंतित हैं कि कहीं पिछले साल जैसा भूचाल फिर खड़ा न हो जाए।
दिल्ली में दो बार कांग्रेस के सांसद रहे संदीप दीक्षित उन नेताओं में से हैं, जिन्होंने कांग्रेस में अध्यक्ष न चुने जाने के मसले को सबसे पहले उठाया था। राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और तब से लेकर अब तक पार्टी को स्थायी अध्यक्ष नहीं मिल सका है। दीक्षित ने कहा कि अगर राहुल फिर से कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनना चाहते तो वह इसका सम्मान करते हैं और ऐसे वक्त में सीनियर नेताओं की जिम्मेदारी होनी चाहिए थी कि हम किसी नेता को कांग्रेस अध्यक्ष चुनें।
बीते साल अगस्त में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में हुए हंगामे के बाद सोनिया गांधी को ही अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और कहा गया था कि 6 महीने के अंदर पार्टी में अध्यक्ष पद का चुनाव कराया जाएगा लेकिन 6 महीने का वक्त बीतने के बाद भी इस दिशा में कुछ हुआ हो, ऐसा नहीं लगता। इसके अलावा जी-23 गुट के गुलाम नबी आजाद सहित बाकी नेता पार्टी में आंतरिक चुनाव की मांग कई बार कह चुके हैं।
कपिल सिब्बल कांग्रेस में प्रभावी नेतृत्व न होने की बात कहने को लेकर बाकी नेताओं के निशाने पर रहे। जम्मू में जुटे सारे नेता कांग्रेस में लंबा वक्त गुजार चुके हैं और अनुभवी हैं, ऐसे हालात में पार्टी आलाकमान को इनसे बातचीत कर उनकी समस्याओं या उनकी मांगों का हल निकालना होगा।
पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले कांग्रेस में आंतरिक कलह चरम पर पहुंच गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने पश्चिम बंगाल में मुस्लिम धर्मगुरु अब्बास सिद्दीकी के नेतृत्व वाले इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) के साथ पार्टी के गठजोड़ की आलोचना करते हुए कहा कि यह पार्टी की मूल विचारधारा तथा गांधीवादी और नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। इस पर कांग्रेस की पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष अधीर रंजन चैधरी ने उन पर पलटवार किया है कि वे भाजपा की लाइन पर बोल रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रभारी जितिन प्रसाद ने भी कहा कि गठबंधन के फैसले पार्टी के हितों को ध्यान में रख कर लिये जाते हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री शर्मा पार्टी के उन 23 नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी में संगठनात्मक बदलाव की मांग की थी।
गौरतलब है कि आनंद शर्मा पर पलटवार करने वाले जितिन प्रसाद कुछ दिन पहले तक जी-23 गुट में शामिल थे, लेकिन अब उनके सुर बदले हुए हैं। इसे जी-23 के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है कि उनके साथी सोनिया-राहुल कैंप में वापसी करने लगे हैं।
राजनीतिक पंडितों के मुताबिक कांग्रेस के घमासान में अंततः होगा वही जो सोनिया या राहुल कैंप चाहेगा, लेकिन फिलहाल असंतुष्ट नेताओं के बागी तेवरों से लग रहा है कि कांग्रेस के भीतर विरोधी गुट के रूप में एक और कांग्रेस पैदा हो गई है। इससे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस की स्थिति असहज और दयनीय बन गई है। पार्टी की कलह विधानसभा चुनावों में बहुत भारी पड़ेगी।