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कांग्रेस में अब प्रशांत किशोर को लेकर मचा घमासान 

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अपने अंदरूनी झगड़ों से उबर ही नहीं पा रही है। एक को मनाओ तो दूसरा रूठ जाता है। आलाकमान पंजाब , उत्तराखंड ,राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के अंदरूनी झगड़ों को निपटने में पसीने – पसीने हो रहा है , तो राष्ट्रीय स्तर पर भी नेताओं की नाराजगी सिरदर्द का कारण बनी हुई है। इस बार राष्ट्रीय नेताओं की नाराजगी की वजह यह है कि  पार्टी में एक बार फिर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को शामिल किये जाने की अटकलें तेज हो गई हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि वे जल्द ही कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले सकते हैं। लेकिन पार्टी के कुछ ऐसे नेता भी हैं जो प्रशांत किशोर को कांग्रेस में शामिल करने के सख्त खिलाफ हैं।

 

 


कपिल सिब्बल के घर पर एक अहम बैठक में शामिल हुए G-23 ग्रुप के नेता

 

जानकारी के मुताबिक, 30 अगस्त को  कपिल सिब्बल के घर पर एक अहम बैठक हुई थी। इस बैठक में कांग्रेस के G-23 ग्रुप के नेता शामिल हुए थे। इनमें से अधिकतर नेता प्रशांत किशोर को कांग्रेस में शामिल किये जाने के पक्ष में नहीं हैं। हो सकता है कि ये सभी नेता प्रशांत किशोर का खुलकर विरोध करें। इस ग्रुप के नेता चुनाव से जुड़े अहम फैसले लेने के लिए ‘आउटसोर्सिंग’ से निराश हैं। हालांकि कुछ नेता प्रशांत किशोर के समर्थन में भी दिखे।

सूत्रों के अनुसार बैठक के दौरान कुछ नेताओं ने विरोध जताते हुए कहा कि कांग्रेस 135 साल पुरानी पार्टी है न कि कोई स्टार्ट-अप है जहां कोई फैंसी विचारों के साथ आए और उसे शामिल कर लिया जाए।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन या आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के बिना उनकी रणनीति नहीं चल पाएगी। हमने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनकी प्रभावशीलता देखी है जब उन्होंने कांग्रेस-सपा गठबंधन के लिए काम किया था। उन्होंने आगे कहा कि प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल करने के किसी भी प्रस्ताव पर कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में चर्चा की जानी चाहिए।

सूत्रों के अनुसार 30 अगस्त को G-23 नेताओं ने कपिल सिब्बल के घर पर बैठक की और प्रशांत किशोर को महासचिव पद पर नियुक्त करने के पार्टी के फैसले को लेकर चर्चा हुई।  इस बैठक में कपिल सिब्बल के अलावा गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, शशि थरूर, मनीष तिवारी, भूपिंदर सिंह हुड्डा समेत कई नेता मौजूद थे। बताया जा रहा है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी और अंबिका सोनी को प्रशांत किशोर पर पार्टी नेताओं के विचारों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है।

यह सबकुछ ऐसे समय पर हो रहा है जब पार्टी पर  अगले साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की रणनीति बनाने का दबाव  है,लेकिन पार्टी इन दिनों कई राज्यों में अंदरूनी झगड़ों का सामना भी कर रही है। कांग्रेस पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह बनाम नवजोत सिंह सिद्दू, कर्नाटक में सिद्धरमैया बनाम डीके शिवकुमार ,राजस्थान में गहलोत बनाम सचिन पायलट और छत्तीसगढ़ में भूपेश और टीएस सिंह देव के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए चल रही लड़ाई भी किसी  से छिपी नहीं है।
दूसरी ओर सत्ताधारी भाजपा लगातार यह संदेश देती आ रही है कि उसके शासन में देश की रक्षा सेनाओं का मनोबल ऊंचा हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी किसी न किसी विषय पर लगातार जनता से संवाद बनाए रहते हैं। नतीजा यह है कि 2014 में पार्टी की जो सीटें 282 थी वह 2019 में 303 हो गईं, वोट प्रतिशत में भी लगभग 34 फीसदी  की बढ़ोतरी हुई। करोड़ों लोगों को राशन देना, उज्ज्वला रसोई गैस, मनरेगा मजदूरों का पैसा बढ़ाना जैसे मुद्दों के सहारे भाजपा 2024 में चुनावी मैदान में होगी। ऐसे में कांग्रेस की चुनौतियां और बढ़ जाएंगी।
भाजपा सरकार और संगठन ने 2024 के लिए काफी हद तक अपनी गोटियां बिठा ली हैं, लेकिन अपनी राज्य इकाइयों के आपसी मतभेदों में उलझी हुई कांग्रेस कहां तक पहुंची? क्या वह तय कर चुकी है कि अकेले चुनाव लड़ेगी या विपक्षी दलों को अपने छत्र के नीचे ला देगी? जो भी हो मौजूदा भाजपा सरकार का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस को इस देश की जनता खासकर युवा पीढ़ी के लिए एक ठोस कार्यक्रम देने की जरूरत है, अपना खोया हुआ जनाधार पार्टी इसी से हासिल कर पाएगी? किसी प्रोफेशनल रणनीतिकार के भरोसे नहीं।ऐसी स्थिति में कांग्रेस को आत्मंथन की ज्यादा जरूरत है।

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