देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अपने अंदरूनी झगड़ों से उबर ही नहीं पा रही है। एक को मनाओ तो दूसरा रूठ जाता है। आलाकमान पंजाब , उत्तराखंड ,राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के अंदरूनी झगड़ों को निपटने में पसीने – पसीने हो रहा है , तो राष्ट्रीय स्तर पर भी नेताओं की नाराजगी सिरदर्द का कारण बनी हुई है। इस बार राष्ट्रीय नेताओं की नाराजगी की वजह यह है कि पार्टी में एक बार फिर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को शामिल किये जाने की अटकलें तेज हो गई हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि वे जल्द ही कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले सकते हैं। लेकिन पार्टी के कुछ ऐसे नेता भी हैं जो प्रशांत किशोर को कांग्रेस में शामिल करने के सख्त खिलाफ हैं।
जानकारी के मुताबिक, 30 अगस्त को कपिल सिब्बल के घर पर एक अहम बैठक हुई थी। इस बैठक में कांग्रेस के G-23 ग्रुप के नेता शामिल हुए थे। इनमें से अधिकतर नेता प्रशांत किशोर को कांग्रेस में शामिल किये जाने के पक्ष में नहीं हैं। हो सकता है कि ये सभी नेता प्रशांत किशोर का खुलकर विरोध करें। इस ग्रुप के नेता चुनाव से जुड़े अहम फैसले लेने के लिए ‘आउटसोर्सिंग’ से निराश हैं। हालांकि कुछ नेता प्रशांत किशोर के समर्थन में भी दिखे।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन या आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के बिना उनकी रणनीति नहीं चल पाएगी। हमने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनकी प्रभावशीलता देखी है जब उन्होंने कांग्रेस-सपा गठबंधन के लिए काम किया था। उन्होंने आगे कहा कि प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल करने के किसी भी प्रस्ताव पर कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में चर्चा की जानी चाहिए।
सूत्रों के अनुसार 30 अगस्त को G-23 नेताओं ने कपिल सिब्बल के घर पर बैठक की और प्रशांत किशोर को महासचिव पद पर नियुक्त करने के पार्टी के फैसले को लेकर चर्चा हुई। इस बैठक में कपिल सिब्बल के अलावा गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, शशि थरूर, मनीष तिवारी, भूपिंदर सिंह हुड्डा समेत कई नेता मौजूद थे। बताया जा रहा है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी और अंबिका सोनी को प्रशांत किशोर पर पार्टी नेताओं के विचारों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है।
यह भी पढ़ें : कांग्रेस के लिए पीके नहीं, प्रोग्राम जरूरी