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Country Uttarakhand

कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र

इसमें कोई शक-शुबहा नहीं कि प्रियंका के राजनीति में खुलकर आने से कांग्रेस समर्थकों और कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह है। यह उत्साह केवल उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं बल्कि इसका प्रभाव दक्षिण भारत से लेकर पूर्वोत्तर तक स्पष्ट नजर आ रहा है। यही कारण है कि भाजपा ने कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाते हुए उसे ‘ओनली राहुल-ओनली प्रियंका’ की पार्टी कह डाला है। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का प्रियंका गांधी की नियुक्ति पर कांग्रेस को घेरना अपने आप में यह साबित करता है कि भाजपा राहुल के इस मास्टर स्ट्रोक से कहीं ना कहीं प्रभावित हो रही है
देश की राजनीति में एक और गांधी की एंट्री सत्तारूढ़ गठबंधन से लेकर विपक्षी महागठबंधन में भारी बेचैनी का कारण बन चुकी है। बरसों से इस गांधी के राजनीति में आने की आस संजोए कांग्रेसियों में जहां भारी उत्साह है वहीं भाजपा नेताओं की अमर्यादित भाषा उनकी बौखलाहट को दर्शा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यकायक ही अपनी बहन प्रियंका गांधी को महासचिव नियुक्त कर तुरूप का ऐसा इक्का चल दिया है जो निश्चित ही आगामी आम चुनाव में न केवल एनडीए बल्कि कांग्रेस विरोधी उन विपक्षी दलों के समीकरणों को भी प्रभावित करेगा जो भले ही वर्तमान दौर में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता से आक्रांत हैं, लेकिन कांग्रेस को साथ लेकर चलने से परहेज रखते स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। इस घबराहट और बौखलाहट के पीछे दरअसल प्रियंका गांधी से कहीं ज्यादा भारतीय आमजन में इंदिरा गांधी का वह अक्स है जो प्रिवी पर्स बंद करने, बांग्लादेश निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने, निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने और गरीबी हटाओ अभियान के चलते चेतन-अचेतन मस्तिष्क में कहीं गहरे बैठा हुआ है। प्रियंका गांधी में उन्हें इंदिरा नजर आती हैं। यही कारण है कि लंबे अर्से से कांग्रेसी प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाए जाने की पुरजोर कोशिश करते आए हैं। 12 जनवरी 1972 को जन्मी प्रियंका गांधी पहली बार वर्ष 1988 में सार्वजनिक मंच में नजर आई थीं। तभी से यह माना जाने लगा था कि भविष्य में नेहरू-गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी की यह संतान राजनीति में उतरेगी जरूर। इक्कीस साल बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रियंका को महासचिव बना इसको सही साबित कर डाला। हालांकि महासचिव बनने से बहुत पहले ही प्रियंका राजनीति के मैदान में उतर चुकी हैं। रायबरेली और अमेठी संसदीय क्षेत्र की जिम्मेदारी वे लंबे अर्से से संभाल रही हैं। सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने बाद से ही वे राष्ट्रीय मुद्दों पर भी लगातार सक्रिय रह पर्दे के पीछे से काम करती रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने अपनी पुस्तक ‘24 अकबर रोड’ में प्रियंका को लेकर रोचक जानकारी दी है। बकौल किदवई 2004 के आम चुनाव में सोनिया गांधी को कांग्रेस के लिए काम कर रही एक एजेंसी ने सलाह दी थी कि वे राहुल और प्रियंका में से किसी एक को अपने साथ राजनीति में अवश्य लें। इस एजेंसी की सलाह बाद ही राहुल ने सक्रिय राजनीति में प्रवेश लिया था। किदवई के अनुसार बाद में इसी एजेंसी ने सोनिया गांधी को प्रियंका की बाबत सलाह दी कि भाई-बहन की संयुक्त टीम कांग्रेस के लिए रामबाण साबित होगी।
आजादी की लड़ाई के दौरान आंदोलनकारियों का गढ़ रहे इलाहाबाद के आनंद भवन में सत्रह अगस्त, 2013 की सुबह एक पोस्टर देखने को मिला था। इस पोस्टर का स्मरण आज इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे आम कांग्रेसी, विशेषकर उत्तर प्रदेश में पूरी तरह हाशिए पर सिमट चुकी पार्टी की दशा और दिशा से दुखी कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की प्रियंका गांधी से लगी आस झलकती है। इस पोस्टर में लिखा था ‘मैया रहती है बीमार/भैया पर बढ़ गया है भार/ प्रियंका फूलपुर से बनो उम्मीदवार/ पार्टी का करो प्रचार/ कांग्रेस की सरकार बनाओ तीसरी बार।’ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 6 साल बाद ही सही प्रियंका गांधी को महासचिव बना और पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान सौंप पार्टी कार्यकर्ताओं की लंबे अर्से से चली आ रही मांग को पूरा कर डाला है। प्रियंका गांधी की नियुक्ति के बाद मीडिया से मुखातिब कांग्रेस अध्यक्ष ने बहुत सधे हुए अंदाज में ऐलान किया कि ‘कांग्रेस बैकफुट नहीं खेलेगी। मैं प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया को केवल दो महीने के लिए नहीं भेज सकता। मैं इन्हें यूपी में कांग्रेस की विचारधारा को बढ़ाने के लिए भेज रहा हूं।’
इसमें कोई शक-शुबहा नहीं कि प्रियंका के राजनीति में खुलकर आने से कांग्रेस समर्थकों और कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह है। यह उत्साह केवल उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं, बल्कि इसका प्रभाव दक्षिण भारत से लेकर पूर्वोत्तर तक स्पष्ट नजर आ रहा है। यही कारण है कि भाजपा ने कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाते हुए उसे ‘ओनली राहुल-ओनली प्रियंका’ की पार्टी कह डाला है। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का प्रियंका गांधी की नियुक्ति पर कांग्रेस को घेरना अपने आप में यह साबित करता है कि भाजपा राहुल के इस मास्टर स्ट्रोक से कहीं ना कहीं प्रभावित हो रही है। मोदी सरकार अपने अंतिम चरण पर है। बेरोजगारी, भुखमरी, भ्रष्टाचार, कालाधन, खस्ताहाल आर्थिकी जैसे मुद्दों ने मोदी की करिश्माई छवि को काफी हद तक डैमेज कर डाला है। ऐसे में प्रियंका की बाबत कुछेक भाजपा नेताओं के अमर्यादित बयान और सोशल मीडिया में उनके खिलाफ बढ़ता दुष्प्रचार नेहरू की परनातिन की लोकप्रियता का पैमाना कहा जा सकता है। यहां यह भी गौरतलब है कि केवल भाजपा अकेले राहुल के इस मास्टर स्ट्रोक से प्रभावित नहीं हुई है, बल्कि उत्तर प्रदेश में कांग्र्रेस की अनदेखी कर गठबंधन करने वाली सपा और बसपा में भी अंदरखाने खलबली मच चुकी है। बहुत संभव है कि कांग्रेस के लिए मात्र दो सीटें छोड़ने वाले गठबंधन के नेता अब अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने को मजबूर हो जाएं।

प्रियंका का संकट

पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनाई गईं प्रियंका गांधी की राह लेकिन कांटों से भरी हैं। कांग्रेस  का उत्तर प्रदेश में वजूद लगभग समाप्त हो चला हैं। कभी पार्टी का कोर वोट बैंक रहे दलित अब बसपा के साथ हैं तो मुसलमान सपा के। ब्राह्मण मतदाता कांग्रेस का साथ कभी का छोड़ भाजपा संग हो लिया है। ऐसे में मात्र प्रियंका गांधी की करिश्माई छवि कांग्रेस के परपरांगत वोट बैंक को वापस पाने के पर्याप्त नहीं। प्रियंका को ना केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे राज्य में धुंआधार तरीके से प्रचार में उतरने के साथ-साथ हर उस कांग्रेसी नेता की घर वापसी के लिए भी खुलेमन से प्रयास करना होगा जो पार्टी छोड़ दूसरे दलां की शरण में आ चुके है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में सत्ताईस लोकसभा सीटें हैं। यह इलाका कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। मूलतः ब्राह्मण, मुस्लिम, दलित, ओबीसी और बुनकर समाज बाहुल्य इस क्षेत्र में आज भी कांग्रेस की विचारधारा पर यकीन करने वालों की भारी तादात है जो प्रियंका गांधी के आने के बाद कांग्रेस की तरफ वापसी कर सकता है। कुल मिलाकर यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि ना केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश भर कांग्रेस को प्रियंका की सक्रियता का लाभ मिलना तय है। लेकिन इसकी भारी कीमत प्रियंका गांधी को चुकाने के लिए तैयार रहना होगा। ना केवल दुष्प्रचार बल्कि उनके पति रॉबर्ट वाड्रा पर चल रहे सरकारी जांचों में भी तेजी आना तय है। आने वाले समय में प्रियंका गांधी को नाना प्रकार के आरोपों को झेलने और उन पर सफाई देने के लिए तैयार रहना है। ऐसे आरोपों की शुरुआत गांधी परिवार के कभी करीबी रहे भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी कर भी चुके हैं।

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