पिछले दो साल से देश कोरोना की मार झेल रहा है। इस महामारी के चलते लाखों लोगों की नौकरी चली गई लोग अनाज के एक- एक दाने को मोहताज हैं। ऐसी हालत में चरम पर पहुंच चुकी महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी, के बीच रोजमर्रा के खर्चों के नियंत्रित करने की जद्दोजहद लोगों के जीवन की सच्चाई को उजागर कर रही है, तो वहीं दूसरी तरफ सरकार लगातार सपनों के झूठ के सहारे लोगों को भटकाने का प्रयास कर रही है। सरकार को वह महंगाई नहीं दिखाई देती जो आम आदमी पर लगातार भोझ बढ़ाये जा रही है । देश में इन दिनों महंगाई को लेकर राजनीतिक सियासत चरम पर है। केंद्र की सत्ताधारी पार्टी भाजपा जहां करीब आठ महीनों से तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों के निशाने पर है।वहीं बढ़ती महंगाई को लेकर जनता को राहत देने में असमर्थ दिखाई दे रही है।

लगातार बढ रही महंगाई के बीच पेट्रोल-डीजल ने भी सेंचुरी मार दी है। आम लोगों को अब अपने वाहनों से भी सफर करना महंगा साबित हो रहा है। इस बीच अब बढ़ती महंगाई को लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस की खुंभकरणी नीद भी खुलने लगी है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की कीमतों में लगातार हो रही वृद्धि और महंगाई के मुद्दे पर कोंग्रस पार्टी ने मोर्चा संभालने के लिए अपने वरिष्ठ नेताओं को सड़क पर उतारने जा रही है।एक दर्जन से अधिक वरिष्ठ नेता आने वाले दिनों में देश के प्रमुख शहरों में प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी बात रखेंगे। इस बार पार्टी ने अभियान में जी -23 के असंतुष्ट नेताओं को भी शामिल किया गया हैै।
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महंगाई को लेकर अर्थशास्त्रियों ने क्या कहा –
अर्थशास्त्र के जानकार भी मान रहे हैं कि महंगाई बेलगाम हो चुकी है। बेरोजगारी बढ़ी है। खाली जेब बाजारों में मांग पैदा नहीं हो सकती। उद्योग व व्यापार को पटरी पर आने में अभी सालों लग सकते हैं।हजारों की संख्या में जो कारोबारी हैं उन्हें न सिर्फ अपने कारोबार को पटरी पर लाना है बल्कि साथ में महंगाई से भी लड़ना है। उद्योग जगत को भी नौकरियों को पैदा करने में समय लगता है। अर्थशास्त्रियों के इस तर्क को भी नकारा नहीं जा सकता कि जब तक लोगों के हाथ में पैसा नहीं आएगा, तब तक खरीददारी नहीं होगी। ऐसे में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना मुकिश्कल होगा। पिछले साल लाॅक डाउन में लाखों लोगों की नौकरियां छूट गई तो बीमारी से बचने के लिए परिवार सहितअपने – अपने गावों को लौटे , लेकिन पिछले दो वर्षों से बेरोजगार हैं। आमदनी शून्य है लेकिन खर्चे यथावत हैं। महंगाई के चलते चिंता में डूबे हैं कि घर के खर्चे चलाएं तो कैसे? ऐसी स्थिति देशभर के लाखों लोगों की है।