देश की सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली पार्टी कांग्रेस के बहुत बुरे दिन चल रहे हैं। जहां एक ओर केंद्र और राज्यों में उसका जनाधार सिमटता जा रहा है, वहीं पार्टी के सामने अहम सवाल यह भी है कि आखिर भविष्य में पार्टी का खेवनहार कौन होगा? पार्टी अपना नेतृत्व ही तय नहीं कर पा रही है। लोकसभा चुनाव के बाद सोनिया गांधी ही अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम कर रही हैं। पार्टी में जारी वैचारिक मतभेद के बीच अब पांच राज्यों पश्चिम बंगाल ,असम ,केरल ,तमिलनाडु और पड्डुचेरी में आगामी विधानसभा चुनावों का ऐलान भी हो चुका है, लेकिन कांग्रेस पार्टी से असंतुष्ट नेता खुलकर सामने आ गए हैं। कांग्रेस आलाकमान का रुख भी इनको लेकर सख्त होता दिख रहा है। पार्टी नेतृत्व इन नेताओं से अब बातचीत न कर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद इनके पर कतरने की तैयारी कर रहा है। नेतृत्व कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई न कर अप्रत्यक्ष रूप से इन्हें मिली जिम्मेदारियां वापस लेकर किनारे लगाए। जाहिर है कि आगामी दिनों में कांग्रेस का अंदरूनी घमासान और तेज होगा।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि जी-23 नाम पर एक दर्जन नेता ही इस तरह का अभियान चलाकर अपना और पार्टी का नुकसान कर रहे हैं। शुरुआती दौर में पत्र में हस्ताक्षर करने वाले कुछ नेताओं ने तभी नेतृत्व से मिलकर अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया था, लिहाजा वे चेहरे जम्मू में नहीं थे। जबकि इनमें से कुछ असंतुष्ट भी दिखना चाहते हैं और मौका पड़ने पर संतुष्ट भी दिख रहे हैं। राहुल के करीबी नेता के मुताबिक असंतुष्टों की चौकड़ी गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल और मनीष तिवारी इस मूवमेंट को हवा दे रहे हैं।
सबसे बड़ा सवाल जी-23 में शामिल हुड्डा फैमिली को लेकर है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा खुलकर गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में बगावती तेवर दिखा रहे हैं। जबकि उनके सांसद बेटे दीपेंद्र इससे दूरी बनाकर खुद को राहुल गांधी के खेमे से जुड़ा बता रहे हैं। यही कारण है कि तब पार्टी में उन्हें हरियाणा से राज्यसभा भेजने पर विरोध नहीं हुआ। हरियाणा के प्रभारी विवेक बंसल इस विषय में कुछ बोलने को तैयार नहीं है लेकिन उनका कहना है कि पार्टी नेतृत्व सब चीजों का संज्ञान ले रहा है।
मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा को दिग्विजय सिंह का करीबी बताया जाता है और 2017 में उन्हें राज्यसभा भेजने की सिफारिश भी उन्होंने की थी, लेकिन बताते हैं कि कपिल सिब्बल के कहने पर तन्खा इस मूवमेंट का हिस्सा बने हैं। तन्खा का राज्यसभा का कार्यकाल भी 2022 में खत्म हो रहा है। पार्टी नेतृत्व ने कई महीने पहले ही गुलाम नबी आजाद के विकल्प के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे को राज्यसभा भेज दिया था। आजाद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उपनेता आनंद शर्मा को राज्यसभा में विपक्ष के नेता के पद की आस थी, लेकिन पार्टी नेतृत्व अपने फैसले पर अड़ा रहा।
कपिल सिब्बल की नाराजगी का एक कारण डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी को मिल रही तरजीह है। पार्टी तमाम कानूनी दांवपेंच में सिंघवी को आगे कर रही है। पार्टी में मुकुल वासनिक की नाराजगी का कारण उनके अधिकारों में की गई कटौती है। वासनिक महाराष्ट्र से राज्यसभा में जाना चाहते थे, लेकिन राहुल ने अपने करीबी राजीव सातव को भेज दिया। वहीं केरल में विधानसभा चुनाव से पहले वासनिक से वहां का प्रभार ले लिया गया। मनीष तिवारी लंबे समय से नाराज हैं और लोकसभा चुनाव जीतकर आने के बाद वरिष्ठता को दरकिनार कर अधीर रंजन चौधरी को पार्टी दल का नेता बना दिया गया।