कांग्रेस आलाकमान फिलहाल एक्टिव मोड में है। पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ ही पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और उत्तर प्रदेश कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी अब पार्टी को मजबूत करने के लिए जी तोड़ मेहनत में जुट गए हैं। इसी का नतीजा है कि पहले पंजाब विवाद सुलझाया गया। इसके बाद उत्तराखंड में पार्टी की अशांत वादियों में शांति स्थापित की गई और पार्टी वीर भूमि राजस्थान के अंदरूनी राजनीति रण में भी सफल होने की ओर अग्रसर है।
अब उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही राजस्थान में चल रहा असंतोष खत्म कर दिया जाएगा। यह सब आगामी 2022 में होने वाले 5 विधानसभा चुनावों के मद्देनजर किया जा रहा है। भाजपा के पास फिलहाल यही मुद्दा है कि कांग्रेस अपने ही नेताओं से आपस में लड़ाई लड़ रही है।इसके चलते ही भाजपा निश्चिंत नजर आ रही है ।
पंजाब में दो सरदारों को किया गया असरदार

पंजाब कांग्रेस में पिछले 4 सालों से मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पूर्व मंत्री रहे नवजोत सिंह सिद्धू के बीच आपसी विवाद चला रहा था । यह विवाद सोशल मीडिया पर खूब जमकर उछलता था। यही नहीं बल्कि देखा जाए तो पंजाब में अपनी ही सरकार के विरोध में खुद नवजोत सिंह सिद्धू इस कदर उतर आए थे कि लोग उन्हें पंजाब में नेता प्रतिपक्ष की उपाधि देने लगे थे। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार को घेरने का कोई मौका नवजोत सिंह सिद्धू नहीं छोड़ते थे।
इसके चलते ही पार्टी में दो धड़े हो गए थे। जिनमें एक मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ तो दूसरा नवजोत सिंह सिद्धू के साथ हो गया था। दोनों के बीच चल रही राजनीतिक गहमागहमी को खत्म करने के लिए पार्टी आलाकमान ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को पंजाब प्रभारी बनाकर भेजा। हरीश रावत को विशेष तौर पर कैप्टन और सिद्धू के बीच की दूरी को पाटने का जिम्मा सौंपा गया था। जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाया। हालांकि इसके पीछे कांग्रेस आलाकमान का यह निर्णय भी था जिसमें नवजोत सिंह सिद्धू को मनाने की हर कोशिश की गई। आखिर में सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस का मुखिया बना दिया गया है।
उत्तराखंड में हरीश और प्रीतम को दी चुनाव जिताने की जिम्मेदारी

उत्तराखंड में भी कांग्रेस दो गुटों में बटी हुई थी। जिसमें एक गुट पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ था तो दूसरा गुट पार्टी के प्रदेश मुखिया प्रीतम सिंह के साथ। इन दोनों की आपसी लड़ाई में कांग्रेस का मिशन 2022 डांवाडोल होता हुआ नजर आ रहा था।
पिछले 1 महीने से यह विवाद पूरे जोरों पर था। नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की मौत के बाद हरीश रावत और प्रीतम सिंह दिल्ली दरबार में शक्ति प्रदर्शन करने में जुटे हुए थे। अब कांग्रेस आलाकमान ने नए फार्मूला के तहत जिम्मेदारी सौंपी है। जिसमें प्रीतम सिंह को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष से हटाकर नेता प्रतिपक्ष बनाया गया, जबकि हरीश रावत को चुनाव संचालन समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
इसी के साथ ही दो ठाकुर नेताओं के बीच गणेश गोदियाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर ठाकुर – ब्राह्मण राजनीति साधने का भी काम किया गया है। फिलहाल, कांग्रेस हाईकमान ने उत्तराखंड में मिशन 2022 को फतह करने के लिए हरीश रावत के साथ ही प्रीतम सिंह के कंधों पर जिम्मेदारी डाल दी है। इसके लिए बकायदा जंबो कार्यकारिणी की भी घोषणा की गई है । बहरहाल, सभी नेता आपसी मतभेद भुलाकर 2022 में पार्टी की सरकार बनाने में जुट गए हैं।
अब राजस्थान की बारी

पिछले साल कोरोना काल के समय से ही राजस्थान में कॉन्ग्रेस आपसी कलह का शिकार हुई थी। जिसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच शह और मात का खेल शुरू हो गया था। पिछले साल तो सचिन पायलट द्वारा बगावत के सुर अपनाने के बाद यह तक कहा जाने लगा था कि वह ज्योदिरादित्य सिंधिया की तरह भाजपा में चले जाएंगे। लेकिन पार्टी की उत्तर प्रदेश महासचिव प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप के चलते पायलट ने पार्टी नहीं तोड़ी।
इसी के साथ ही एक समिति का भी गठन किया गया जो गहलोत और पायलट समर्थकों के बीच आई दूरी को समझने और उसे दूर करने की कोशिशों में जुटी है। फिलहाल पार्टी के प्रभारी अजय माकन 28 और 29 जुलाई को प्रदेश के सभी विधायकों की रायसुमारी करेंगे। प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बारे में कहा जा रहा था कि वह पहले पार्टी आलाकमान की नहीं सुन रहे थे। लेकिन अब उन्होंने पार्टी आलाकमान के ऊपर यह जिम्मेदारी डाल दी है। कहा जा रहा है कि सचिन पायलट के समर्थक विधायकों को मंत्री पद दिए जा सकते हैं। इस फार्मूले से सचिन पायलट की नाराजगी को दूर करने की तैयारी की जा रही है। राजस्थान विवाद के जल्दी ही सुलह होने के आसार है।