कभी पूर्वोत्तर के आठों राज्यों में शासन करने वाली कांग्रेस वर्तमान में इनमें से सभी राज्यों की सत्ता से बाहर है। पार्टी के कई बड़े नेता बुरे दिनों में साथ छोड़ भाजपा के बगलगीर हो चले हैं। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने मणिपुर विधानसभा चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। यदि पार्टी यहां सत्ता में वापसी करती है तो अगले वर्ष प्रस्तावित तीन अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में भी सत्ता वापसी की राह प्रशस्त होने के आसार बढ़ जाते हैं
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस पिछले एक दशक से राष्ट्रीय राजनीति में तेजी से हाशिये पर चली जा रही है। हर चुनाव में उसे निराशा ही हाथ लग रही है। ऐसे में मणिपुर सहित पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई बन चुके हैं। पूर्वोत्तर में विशेष रूप से कांग्रेस मणिपुर में सत्ता वापसी के लिए बैचेन है क्योंकि अगले साल होने वाले मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव के लिए भी मणिपुर में जीत बेहद महत्वपूर्ण है। मणिपुर चुनाव का असर अगले साल 2023 में होने वाले पूर्वोत्तर के अन्य चुनावों पर भी पड़ेगा।
गौरतलब है कि पूर्वोत्तर कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। वर्ष 2015 में पूर्वोत्तर के आठ में से पांच राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन पिछले सात वर्षों में एक के बाद एक सभी राज्य भाजपा और उसके सहयोगियों से बुरी तरह हार गई। मौजूदा समय में पार्टी सिर्फ असम में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है। मणिपुर में तो कांग्रेस लगातार 15 साल तक सत्ता में रही है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी 28 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी जरुर लेकिन सरकार बनाने में विफल रही और भाजपा ने क्षेत्रीय दल नागा पीपुल्स फ्रंट, नेशनल पीपुल्स पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी के साथ गठबंधन सरकार बना डाली। पिछले पांच साल में कांग्रेस के 13 विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं। पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में भी यह सिलसिला जारी है। मेघालय में पार्टी के कई विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए हैं। असम में भी कई विधायकों ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामा है। ऐसी स्थिति में मणिपुर विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए काफी अहम हो जाते हैं।
पार्टी इस बार लेफ्ट और जद (एस) के साथ मिलकर मणिपुर प्रोग्रेसिव सेक्युलर अलायंस में चुनाव लड़ रही है। माना जा रहा है कि इस सेक्युलर अलायंस के बाद चुनाव में पार्टी की स्थिति मजबूत हुई है। इस सबके बावजूद कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती चेहरे की है। पार्टी के पास कोई ऐसा युवा चेहरा नहीं है जिसकी पूरे प्रदेश में पहचान हो। यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री इबोबी सिंह को पार्टी ने एक बार फिर चुनाव मैदान में उतारा है। हालांकि पार्टी नेता मानते हैं कि प्रदेश में नया नेतृत्व विकसित करना होगा।
मणिपुर में तृणमूल कांग्रेस भी इस बार पूरी शिद्दत के साथ चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रही है। तृणमूल कांग्रेस वर्ष 2017 में भी 16 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और एक सीट जीतने में सफल रही थी। मगर उस वक्त पार्टी इतनी आक्रामक नहीं थी। पश्चिम बंगाल में लगातार तीसरी बार जीतने के बाद तृणमूल अपना दायरा बढ़ा रही है। पूर्वोत्तर राज्य मेघालय की बात करें तो मौजूदा समय में कांग्रेस जीरो के आंकड़े पर पहुंच गई है। पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में 60 सीटों में से 21 सीटें जीतने वाली सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस का राज्य में दल बदल के चलते अब एक भी विधायक नहीं है।
कांग्रेस का ऐसा ही हाल नागालैंड में भी है। यहां वर्ष 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। 2013 के चुनाव में पार्टी को 8 सीटें मिली थी। लेकिन चुनाव बाद ये सभी एमएलए कांग्रेस को छोड़ कर दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए थे। वर्ष 2017 में राज्य में दिमापुर कांग्रेस इकाई के सभी पदाधिकारियों ने पार्टी से इस्तीफे दे दिया था। जनवरी 2018 में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के सीनियर नेता के एल चिशी ने पार्टी में विश्वास की कमी की बात कह कांग्रेस छोड़ दी थी। राज्य में राजनीति द्वि-ध्रुवीय हो रही हैं। एक तरफ बीजेपी और एनडीपीपी का सत्तारूढ़ गठबंधन है तो दूसरी तरफ कांग्रेस-एनडीपीपी का। पिछले विधानसभा चुनाव से कांग्रेस और एनपीएफ के बीच राजनीतिक नजदीकी बढ़ रही हैं।
वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए नागालैंड के साथ मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने नागा मुद्दे को चुनाव से पहले ही खत्म करने की तैयारी में व्यस्त हैं।
रियो ने फेक शहर में चाखेसांग छात्र संघ के प्लेटिनम जयंती समारोह में कहा कि ‘मेरे लिए, मैं चुनाव की उम्मीद नहीं कर रहा हूं, मैं लंबी नागा राजनीतिक समस्या के समाधान की उम्मीद कर रहा हूं, क्योंकि जब तक कोई समाधान नहीं होता है, हमारी भूमि में कोई पूर्ण शांति नहीं होती है।’ उन्होंने पूरे राज्य को पुनर्व्यवस्थित करने और एक बेहतर समाज बनने और लोगों के रूप में जीवित रहने के लिए हमारी मानसिकता को बदलने की आवश्यकता पर जोर दिया। नेफ्यू रियो ने कहा, ‘मैं समाधान चाहता हूं क्योंकि यह युवाओं’ छात्रों और भविष्य के लिए एक नई उम्मीद लेकर आएगा।’ उन्होंने कहा कि नागालैंड विधानसभा के 60 सदस्य एक साथ आए और विपक्ष रहित संयुक्त जनतांत्रिक गठबंधन सरकार बनाई और सरकार चाहती है कि नागाओं को एकजुट किया जाए। वे नागा समस्या का समाधान चाहते हैं। ओटिंग की घटना सबसे दुर्भाग्यपूर्ण थी, जिसमें 14 जानें चली गईं और कई लोग बिना किसी गलती के घायल हो गए। उन्होंने कहा, पहली बार भारत सरकार और सेना ने अपनी गलतियों को स्वीकार किया और अफस्पा को निरस्त करने के लिए सार्वजनिक शोरगुल है।
सरकार और जनता सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (अफस्पा) को निरस्त करने की मांग कर रही है। अगर एक बार जब अफस्पा हटा लिया जाता है तो राज्य पुलिस, जनता, नागरिक समाजों की जिम्मेदारी आ जाएगी और ‘अगर नागा विद्रोह’ या गड़बड़ी जारी रहती है, तो किसी भी समय किसी भी स्थान या जिलों में गड़बड़ी की गतिविधियां होती हैं तो इसे फिर से लगाया जा सकता है, भले ही इसे उठाया जा सकता है। ‘उठाना कोई समस्या नहीं है, लेकिन क्या हम जिम्मेदारी ले सकते हैं’ और अगर नागा हमारी आकांक्षाओं, हमारे आंदोलन, आज के युवाओं, छात्र समुदाय, नेताओं, नागा राजनीतिक समूहों सहित समग्र रूप से नागाओं को जारी रखना चाहते हैं, तो हमें एक समझौता करना चाहिए, युवा और जनता को तय करना है कि ‘हम हिंसा या अहिंसा के माध्यम से जनादेश देंगे।’
त्रिपुरा में पिछले चुनाव में अपने विजयरथ पर सवार बीजेपी ने लेफ्ट के सबसे मजबूत किले को भी ढ़हा दिया था। राज्य की 60 में से 59 सीटों पर हुए चुनाव में सभी सीटों के नतीजे घोषित किए जाने के बाद बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। बीजेपी ने अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा छूते हुए 35 सीटों पर जीत दर्ज की। बीजेपी के लिए त्रिपुरा की यह जीत इस वजह से भी मील का पत्थर है, क्योंकि पार्टी ने यहां शून्य से शिखर तक का सफर तय करते हुए 25 साल से सत्तारूढ़ माणिक सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया था। तब बीजेपी ने अपनी सहयोगी आईपीएफटी के साथ कुल 43 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं सीपीएम को 16 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।
गौरतलब है कि पूर्वोत्तर के तीन राज्यों मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में मार्च 2023 में विधानसभा की अवधि पूरी हो रही है। कांग्रेस आलाकमान अगले वर्ष प्रस्तावित इन तीन राज्यों के चुनावों में दमदार प्रदर्शन के लिए मणिपुर में हर कीमत सत्ता वापसी का महत्व समझ रहा है। यही कारण है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी अन्य राज्यों की बनिस्पत मणिपुर में ज्यादा प्रचार कर रहे हैं।