देश की सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली पार्टी कांग्रेस के बहुत बुरे दिन चले रहे हैं। जहां एक ओर केंद्र और राज्यों में उसका जनाधार सिमटता जा रहा है, वहीं पार्टी के सामने अहम सवाल यह है कि आखिर भविष्य में अब पार्टी का खेवनहार कौन होगा? पार्टी अपना नेतृत्व ही तय नहीं कर पा रही है। लोकसभा चुनाव के बाद सोनिया गांधी ही अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम कर रही हैं। एक तरह से पार्टी को अध्यक्ष नहीं मिल पाया है। ऐसे में अब नया संकट यह हो सकत है कि कहीं अध्यक्ष पद का खाली रहने की कांग्रेस को बड़ी कीमत न चुकानी पड़ जाए। यहां तक कि उसे अपना चुनाव चिन्ह ‘हाथ’ भी गंवाना पड़ सकता है।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी ने पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था। तकनीकी तौर से देखा जाए तो तभी से कांग्रेस अध्यक्ष का पद खाली है। सोनिया तो अंतरिम अध्यक्ष ही मानी जाएंगी। जानकारों का मानना है कि लंबे समय तक अध्यक्ष का पद खाली रहने से कांग्रेस को अपना चुनाव चिन्ह ‘पंजा’ या ‘हाथ’ गंवाना पड़ सकता है। चुनाव आयोग इसके लिए उस पर कार्रवाई करते हुए चुनाव चिन्ह जब्त कर सकता है।
चुनाव आयोग जांच कर सकता है कि संगठन में निश्चित अवधि के भीतर नए अध्यक्ष का चुनाव हुआ या नहीं? वह इसके लिए संगठन को निर्देश भी दे सकता है। उल्लेखनीय है कि देश के समस्त राजनीतिक दल, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29 (ए), उप-खंड (5) द्वारा शासित होती है। इसकी शुरुआत 1989 में हुई थी। इसके तहत कांग्रेस शासित प्रत्येक राजनीतिक दल को खुद को पंजीकृत करना होगा तथा भारत के संविधान के प्रति अपनी निष्ठा दिखाने और नियत समय पर होने वाले चुनावों में भाग लेने के लिए सहमत होना होगा। हालांकि अनिवार्य अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कोई नियम नहीं है, फिर भी समय-समय पर इस मामले पर निर्देश दे सकता है। अगर आयोग चाहे तो किसी भी राजनीतिक पार्टी के खिलाफ नियमों और विनियमों का पालन करने में विफल रहने के लिए कार्रवाई कर सकता है।