देश को कांग्रेसमुक्त करने के अपने लक्ष्य को साट्टाने के चलते भाजपा अट्टयक्ष अमित शाह कुछ ज्यादा ही तेजी दिखा रहे हैं। चाल-चरित्र और चेहरे के मापदंड को किनारे कर हर उस नेता को भाजपा में लिया जा रहा है जो कांग्रेस छोड़ आने को तैयार है। जाहिर है भाजपा के इस कांग्रेसीकरण से खांटी भाजपाई आक्रोशित होने लगे हैं
हास्य-व्यंग्य के प्रसिद्ध हस्ताक्षर स्वर्गीय शरद जोशी ने आपातकाल के बाद सत्ता में आई जनता कुनबे की सरकार पर एक सटीक व्यंग्य रचना की थी। उन्होंने लिखा- ‘कांग्रेस इस देश में गैस्ट्रिक ट्रबल की तरह हर एक भारतीय के पेट में समा चुकी है। यहां जो भी होता है अंततः कांग्रेस हो जाता है, जनता पार्टी भी कांग्रेस हो जाएगी।’ चालीस बरस पहले उनका कहा आज भाजपा के संदर्भ में पूरी तरह सही होता नजर आ रहा है। फर्क सिर्फ इतना भर है कि भाजपा परिवारवाद की जकड़ से हाल-फिलहाल काफी हद तक मुक्त है, कम से कम शीर्ष स्तर पर।
1977 में भारतीय जनसंघ जनता पार्टी सरकार का हिस्सा था। जनता नेताओं का एक बड़ा हिस्सा बीजेएस पर लगातार दबाव बना रहा था कि वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ संग अपने सदस्यों की दोहरी सदस्यता को समाप्त करे। इस मुद्दे पर जनता पार्टी से अलग हुए भारतीय जनसंघ के नेताओं ने एक नए राजनीतिक दल भाजपा की शुरुआत की। शुरुआती दौर से ही आरएसएस के स्वयं सेवकों का इस नए राजनीतिक दल में दबदबा रहा। अटल बिहारी वाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी, लालकøष्ण आडवाणी समेत पार्टी के सभी बड़े नेता संघ की कोख से निकले थे। एक लंबे अर्से तक भाजपा की हिंदुत्ववादी अवधारणा से स्थापित दलों और नेताओं ने दूरी बनाए रखी। कहा जा सकता है कि भाजपा एक लंबे अर्से तक भारतीय राजनीति में अछूत समान रही। वाजपेयी के नेतृत्व में पहली बार केंद्र की सत्ता में आते ही भाजपा के प्रति मुख्यधारा के राजनेताओं की धारणा बदलनी शुरू हो गई। कथित रूप से स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले नेताओं ने भाजपा संग गठबंधन करने से परहेज नहीं किया। भाजपा के पास भी केंद्र की सत्ता पाने के लिए इनका साथ लेने के सिवा कोई मार्ग था नहीं। वाजपेयी ने एनडीए गठबंधन बना भारतीय राजनीति में एक नए और अनूठे प्रयोग की नींव रखी।
मोदी-शाह काल में पूरा हुआ भाजपा का कांग्रेसीकरण 2009 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की हार के बाद पार्टी में नए नेतृत्व की तलाश शुरू हुई। हालांकि पार्टी के कद्दावर नेता लालकøष्ण आडवाणी 2014 के चुनाव में एक बार फिर भाजपा के पीएम उम्मीदवार होना चाहते थे लेकिन उन्हें हाशिए में डाल गुजरात के करिशमाई छवि वाले नेता नरेंद्र मोदी को पार्टी ने आगे किया। मोदी और शाह ने देश को कांग्रेसमुक्त बनाने की अपनी मुहिम के तहत कांग्रेस नेताओं को सीधे भाजपा में एंट्री देशी शुरू कर डाली। खास बात यह कि इन नेताओं की भाजपा में एंट्री के समय इन पर लगे भ्रष्टाचार या अन्य किसी भी प्रकार के आरोपों को तवज्जो नहीं दी जा रही है। पार्टी का उद्देश्य केवल और केवल कांग्रेस को ध्वस्त करने तक सीमित होता नजर आ रहा है। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन भास्कर राव, कर्नाटक के दिग्गज कांग्रेसी नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व सीएम एसएम कøष्णा, असम के दिग्गज कांग्रेसी नेता हेमंतो शर्मा, हरियाणा के बड़े कांग्रेसी राव विरेंद्र सिंह, उत्तराखण्ड के पूर्व सीएम विजय बहुगुणा समेत दस विधायक आदि ढेर सारे नेता पिछले पांच वर्षों के दौरान भाजपा में आ चुके हैं। कभी ममता बनर्जी के अत्यंत करीबी रहे मुकुल राय, इस समय पश्चिम बंगाल में भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं। ‘नारद स्टिंग’ ऑपरेशन में फंसे मुकुल राय पर भाजपा ने भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे। यहां तक कि केंद्रीय जांच एजेंसी ‘इर्न्फोसमेंट डायरेक्ट्रेट’ ने भी उनके खिलाफ जांच शुरू की थी। हिमाचल प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेसी नेता अनिल शर्मा भाजपा में चले गए थे। अनिल शर्मा के पिता पूर्व केंद्रीय दूरसंचार राज्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भाजपा लगाती रही है। असम के कांग्रेस नेता हेमंत विश्वास शर्मा का मामला तो सबसे हैरतनाक है। उत्तर पूर्व भारत के इस दिग्गज नेता पर जुलाई, 2015 में भाजपा ने ‘गुवाहाटी जल घोटाले’ में मुख्य साजिशकर्ता का आरोप लगाया। लेकिन मात्र एक माह बाद ही उन्हें ससम्मान पार्टी में ले लिया। भ्रष्टाचार के कई आरोपों से घिर अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खान्डू भी 2016 में भाजपा ज्वाइन कर पवित्र हो गए। उत्तराखण्ड में तो भाजपा का भ्रष्टाचार पर ‘जीरो टॉलरेंस’ का दावा सबसे ज्यादा हास्यास्पद नजर आता है। 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा पर गंभीर आरोप लगाने वाली पार्टी ने 2017 में उन्हें ‘खुले हृदय’ से पार्टी में शामिल कर लिया। बहुगुणा के साथ बेहद दागी छवि के हरक सिंह रावत और रेखा आर्या भी भाजपा में शामिल हो गए।
खांटी भाजपा नेताओं में बढ़ता आक्रोश
जाहिर है पिछले 39 बरसों से पार्टी के लिए दिन रात खून-पसीना बहाने वाले भाजपा नेताओं को इन आयातीत राजनेताओं की एंट्री भारी अखर रही है। उत्तराखण्ड भाजपा में इस बात को लेकर खासा रोष है कि राज्य कैबिनेट में कांग्रेसी नेताओं को तरजीह दी गई, जबकि खांटी भाजपा विधायकों को इग्नोर किया गया है। गोवा में तो भाजपा के नायक पूर्व सीएम स्व मनोहर पार्रिकर के बेटे तक ने कांग्रेस विधायकों की एंट्री पर आपत्ति दर्ज कराई है। कई वरिष्ठ भाजपा नेता खुलकर आलाकमान के इस फैसले की आलोचना करने लगे हैं।
दरअसल, खांटी भाजपाइयों का संकट यह है कि उन्हें इस बात का भलीभांति पता है कि पूरे देश में कमल खिलने के पीछे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति और प्रधानमंत्री मोदी की करिश्माई छवि है। यही कारण है कि असंतोष के स्वर उठ तो रहे हैं, लेकिन बुलंद होकर नहीं। जिस प्रकार बड़े भाजपा नेता जसवंत सिंह, शत्रुघ्न सिन्हा और अरुण शौरी को हाशिए में डाला गया है और दो बची हुई धरोहरों, आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को म्यूजियम में रख दिया गया, उससे भी पार्टी के असंतुष्ट खुलकर बोलने का खतरा नहीं उठाना चाहते। कुल मिलाकर भाजपा का कांग्रेसीकरण लगभग पूरा होता नजर आ रहा है।
दोहरे मापदण्डों में भी कांग्रेस का अनुसरण
कांग्रेस के पद चिन्हों पर चल रही भाजपा ने अनुशासनहीनता और सार्वजनिक जीवन में शुचिता के अपने घोषित एजेंडा से भी दूरी बरतनी शुरू कर दी है। 1984 के सिख विरोधी दंगों में मुख्य भूमिका अदा करने वाले हरकिशन लाल भगत, जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार से कांग्रेस ने कभी दूरी नहीं बनाई। भले ही दशकों बाद मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्वकाल में 1984 के दंगों के लिए पार्टी ने माफी मांगी लेकिन दिल्ली के इन तीन दिग्गज कांग्रेसियों के खिलाफ कोई कार्यवाही पार्टी ने नहीं की। ठीक इसी प्रकार का रवैया भाजपा ने अपने दागी नेताओं के लिए अपना लिया है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कड़े शब्दों में भाजपा नेताओं के गलत आचारण को बर्दाश्त न करने की बात करते हैं, तो दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के भाजपा विधायक आकाश विजयवर्गीय पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है। प्रज्ञा ठाकुर को कभी माफ नहीं करने की बात पीएम अवश्य दुखी मन से कहते हैं, किंतु प्रज्ञा पर भी पार्टी गांधी के हत्यारे का महिमामंडन करने को लेकर खामोश रह जाती है। उत्तराखण्ड में जरूर बिगडैल विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन पर पार्टी कार्यवाही करती नजर आती है, वह भी तब जब जनता में पार्टी की भारी छीछालेदार हुई। चैंपियन से कहीं ज्यादा गंभीर आरोपों से घिरे उन्नाव रेप कांड के दागी विधायक कुलदीप सेंगर को लेकर पार्टी चुप्पी साध लेती है। अब मामला तूल पकड़ा तो तब जाकर उसे निष्कासित करना पड़ा। उन्नाव से ही सांसद साक्षी महाराज भी लगातार विवादित बोल बोलते रहते हैं। केंद्र में मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ‘ये देश रामजादों का है या हरामजादों का’ कहकर भी मंत्री बनी रहती हैं।
एनडीए से शुरू हुआ भाजपा का कांग्रेसीकरण
1998 में तेरह भिन्न-भिन्न विचारधाराओं वाले राजनीतिक दलों ने केंद्र में सत्ता पाने के मोह में एनडीए की नींव रखी। इसे अटल बिहारी वाजपेयी की करिश्माई छवि का नतीजा भी कहा जा सकता है कि खांटी समाजवादी जॉर्ज फर्नांडीस की समता पार्टी इसका हिस्सा बन गई। जॉर्ज इस गठबंधन के संयोजक बनाए गए। जनता दल (यू) के शरद यादव, चद्रबाबू नायडू और जयललिता इस गठबंधन के वे अन्य नेता थे जो धर्मनिपेक्षता का ढोल पीटा करते थे। बिहार के नीतीश कुमार और रामविलास पासवान भी इसमें शामिल रहे। आज शरद यादव इसका हिस्सा नहीं हैं, चंद्रबाबू नायडू फिर से ‘धर्मनिरपेक्ष’ हो चले हैं। नीतीश कुमार समयकाल और परिस्थिति के अनुसार अपनी विचारधारा से समझौता करते रहते हैं और पासवान पूरी तरह सत्ता की विलासिता में डूब चुके हैं। एनडीए के चलते भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता मिली जिसका श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को जाता है।