[gtranslate]

लोकसभा चुनाव 2024 में अभी समय है लेकिन सियासी सरगर्मियां अभी से गरमाने लगी हैं। चर्चा है कि आगामी आम चुनाव में आरक्षण न केवल बड़ा सियासी मुद्दा बनकर उभर सकता है, बल्कि यह किंग मेकर भी बन सकता है। पिछले कुछ महीनों से एक ओर जहां पूरा विपक्ष ओबीसी से जुड़े मसले को बहुत आक्रामक तरीके से उठा रहा है वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ओबीसी उलझन में हैं। इस बीच भाजपा ने मराठा आरक्षण की मांग के बीच जाट आरक्षण के शिगूफे की काट के लिए तैयारी शुरू कर दी है। गृह मंत्री अमित शाह ने तेलंगाना में एलान कर ओबीसी के साथ ही एसटी समुदाय को भी साधने की कोशिश की है। गृह मंत्री ने चुनावी सभा में घोषणा की कि पार्टी सत्ता में आई तो ओबीसी सीएम बनेगा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम समुदाय को मिल रहे 4 फीसदी आरक्षण को काटकर उसे एसटी समुदाय को देंगे और मदिगा (एसटी) जातियों को भी लाभ मिलेगा।

सूत्रों के मुताबिक सरकार की कोशिश है कि आरक्षण पाने के योग्य सभी जातियों को इसमें हिस्सेदारी मिले। भाजपा का कहना है कि गैर यादव ओबीसी और गैरजाटव दलितों की ज्यादातर जातियों को आरक्षण नहीं मिल पा रहा है।रोहिणी आयोग का गठन इन्हीं खामियों को दूर करने के लिए किया गया है। विपक्षी दल जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि संख्या के आधार पर उन्हें प्रतिनिधित्व मिले।
चुनाव के पहले यूपी में विपक्ष की जाति जनगणना की मांग का मुकाबला करने के लिए भाजपा पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों में पैठ मजबूत कर रही है। पार्टी ने 6 क्षेत्रों के संगठन प्रभारी और 98 नगरों व जिलों के प्रभारी तैनात करने में 55-60 प्रतिशत तक पिछड़ी और दलित कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दी है। पार्टी दिसंबर में हर जिले में ओबीसी सम्मेलन करने की तैयारी में भी है।

राज्य के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री नरेंद्र कश्यप के मुताबिक हर विधानसभा में ओबीसी दलित समाज के 500 नए कार्यकर्ता तैयार किए जा रहे हैं। प्रदेश में दो लाख नए कार्यकर्ता तैयार करने की योजना है। इन्हें दिसंबर में ट्रेनिंग दी जाएगी। जनवरी में प्रयागराज में ओबीसी महाकुंभ होगा। पिछड़ा वर्ग सोशल मीडिया के जरिए नए लोगों को जोड़ेगा। यूपी में भाजपा के साथ पहले ही पिछड़ी जातियों में मजबूत पकड़ वाले दल हैं। इनमें अपना दल सोनेलाल, निषाद पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी शामिल हैं। लोनिया चौहान समुदाय के दारासिंह चौहान भी सपा से भाजपा में आ चुके हैं। खास बात यह है कि भाजपा के साथी दल भी जाति जनगणना के समर्थक हैं और भाजपा के साथ रहते हुए मांग कर रहे हैं। गौरतलब है कि यूपी में 2014 से भाजपा अति पिछड़ी और अति दलित जातियों के बल पर चुनाव जीत रही है। 2019 में सपा- बसपा-रालोद गठबंधन को 15 सीटों पर रोकने और 64 सीटें जीतने में सफल हो चुकी है। 2022 में अखिलेश यादव ने अति पिछड़ी जातियों के साथ गठबंधन किया था, लेकिन गैर यादव पिछड़ी और गैर जाटव दलित जातियों ने भाजपा का साथ दिया।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि विपक्षी दल जाति जनगणना की मांग के जरिए भाजपा को घेरने की कोशिश में है। भाजपा फिलहाल चुप्पी साधे है। रणनीतिकार मान रहे हैं कि यह उन्हें परेशानी में डाल सकता है और इससे ओबीसी में भ्रम फैल सकता है। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण पर पार्टी असहज है। जाट आरक्षण की मांग भी उठने लगी है। भाजपा की चिंता इसलिए भी बड़ी है क्योंकि ओबीसी राजनीति करने वाले सपा, राजद, जदयू मजबूत स्थिति में हैं।

You may also like

MERA DDDD DDD DD