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बिहार की राजनीति तेजी से करवट लेती नजर आने लगी है। जिस अंदाज और जिन तेवरों के साथ राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गत् सप्ताह विधानसभा के भीतर सभा के अध्यक्ष विजय सिन्हा से संवाद किया उससे साफ नजर आ रहा है कि सत्तारूढ़ गठबंधन भीतर सब कुछ असामान्य हो चला है। विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा भाजपा से हैं। उन्हें सदन में जिस अंदाज में नीतीश कुमार ने फटकारा, उससे दोनों दलों के मध्य रिश्तों में आई गहरी दरार के रूप में देखा जा रहा है। ऐसी दरार जिसके पाटे जाने की संभावना कम और गहराने की ज्यादा नजर आ रही है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के अगस्त माह में प्रस्तावित चुनावों से पहले ही बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव आने के पूरे आसार हैं। नीतीश कुमार भले ही राज्य के मुख्यमंत्री हैं, सरकार चलाने में उन्हें कदम-कदम पर भाजपा नेतृत्व से सलाह-मशविरा करना पड़ रहा है। 243 सीटों वाली विधानसभा में जद (यू) के मात्र 45 विधायक हैं। भाजपा 74 विधायकों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी विधानसभा में है। सत्तारूढ़ एनडीए को जीतनराम मांझी की हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के 4, मुकेश साहनी की वीआईपी पार्टी के तीन और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन प्राप्त है। कुल मिलाकर सत्तारूढ़ एनडीए के पास 127 विधायक हैं तो विपक्षी दलों के पास 115 विधायक हैं। लालू यादव की राजद 75 विधायकों के साथ विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है।

एक तरफ नीतीश कुमार के रिश्ते भाजपा के साथ तल्ख होते जा रहे हैं तो दूसरी तरफ मुकेश साहनी भी भाजपा के खिलाफ मुखर हो चले हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा की मर्जी के खिलाफ कई सीटों पर चुनाव लड़ा और अब बिहार विधान परिषद के चुनाव में भी उन्होंने अपने उम्मीदवार उतारने का एलान कर डाला है। मुकेश साहनी इसलिए नाराज हैं क्योंकि पहले भाजपा ने उनके लिए एक विधान परिषद सीट छोड़ने की बात कही थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ठीक इसी प्रकार जीतनराम मांझी भी अपनी पार्टी के लिए एक सीट मांग रहे थे लेकिन उन्हें भी भाजपा और जद (यू) ने एडजस्ट नहीं किया। इसके चलते कहा जा रहा है कि ये दोनों दल गठबंधन से अलग हो सकते हैं। संभावना जताई जा रही थी कि यदि ऐसा हुआ तो गठबंधन के 127 विधायकों में से 7 कम हो जाएंगे और सरकार अल्पमत में आ जाएगी। इतना ही नहीं यदि ये दोनों विपक्षी गठबंधन में चले गए तो बिहार में सत्ता परिवर्तन हो जाएगा। भाजपा ने लेकिन वीआईपी पार्टी में ही फूट डाल उसके तीन विधायकों को अपने पाले में कर मुकेश साहनी को अलग-थलग कर डाला है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विधानसभा अध्यक्ष पर असंवैधानिक तरीकों से सदन चलाने का आरोप संकेत दे रहा है कि कहीं न कहीं कुछ अलग खिचड़ी राज्य की राजनीति में पकने लगी है। स्पीकर विजय सिन्हा मुंगेर जिले की लखीसराय सीट से विधायक हैं। नीतीश कुमार के बेहद करीबी राजीव रंजन उर्फ लल्लन सिंह मुंगेर से ही लोकसभा सदस्य हैं। गत् वर्ष ही उन्हें जद (यू) का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था। लल्लन बाबू की विजय सिन्हा संग राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता रहती आई है। गत् पांच फरवरी को सिन्हा के विधानसभा क्षेत्र लखीसराय में सरस्वती पूजन समारोह आयोजित किया गया था। स्थानीय पुलिस ने कोविड नियमों को तोड़ने का आरोप लगा सिन्हा के दो करीबियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इससे नाराज सिन्हा ने जब पुलिस अधिकारियों से गिरफ्तार कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए दबाव बनाया तो किसी ने उनकी सुनी नहीं। इस चलते मामला बिगड़ता चला गया।

सिन्हा के करीबी कहते हैं कि लल्लन बाबू के दबाव में सिन्हा के समर्थकों को पुलिस परेशान करती है। जब पुलिस महानिदेशक तक ने स्पीकर की नहीं सुनी तो नाराज भाजपा विधायकों ने सदन में भारी हंगामा काट डाला। इससे नीतीश कुमार बेहद नाराज हो उठे और उन्होंने स्पीकर सिन्हा पर असंवैधानिक तरीके से सदन चलाने का आरोप लगा दिय। हालांकि बाद में दोनों नेताओं ने आपस में बातचीत कर मामले को संभालने का प्रयास किया जरूर है लेकिन एनडीए सरकार पर अस्थिरता के बादल गहराने लगे हैं। बहुत संभव है कि जल्द ही बिहार की राजनीति में कुछ ऐसा हो जिससे आगामी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में भाजपा के समक्ष बड़ी दिक्कत पैदा हो जाए।

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