उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी विभागों में अधिकारियों के बीच व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘एंटी करप्शन पोर्टल’ बना रखा है। यह पोर्टल मार्च 2018 में बनाया गया था। तब से लेकर अब इस पोर्टल पर लगभग ढाई हजार शिकायतें दर्ज करायी जा चुकी हैं। जुलाई महीने में सरकार ने इस सम्बन्ध में कए आंकड़ा पेश किया। आंकड़ों के अनुसार पोर्टल पर दर्ज शिकायतों के आधार पर 600 अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा चुकी है। 200 से अधिक अधिकारियों और कर्मचारियों को भ्रष्टाचार के आरोप में जबरन सेवानिवृत्त किया गया। 400 से अधिक कर्मचारियों और अधिकारियों का प्रमोशन रोका जा चुका है। सरकार का दावा है कि सरकारी रडार पर 100 से अधिक अधिकारी और कर्मचारी अभी भी ऐसे हैं जिनके खिलाफ जल्द कार्रवाई की जा सकती है।
उपरोक्त विवरण देने के पीछे का मंतव्य सिर्फ यह बताना है कि योगी सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कितनी सख्ती से पेश आ रही है। दूसरी ओर इतनी सख्ती के बावजूद कुछ कथित भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी ऐसे भी हैं जिन पर न तो ऐसी कार्रवाइयों का भय है और न ही मुख्यमंत्री की धमकियों का। रिश्वत की परम्परा का निर्वहन अभी भी द्रुत गति से जारी है। रिश्वत लेकर काम हो रहे हैं और रिश्वत देकर कार्रवाइयों से बचा जा रहा है।
मुख्यमंत्री की योजनाओं को तार-तार करता ऐसा ही एक मामला झांसी विकास प्राधिकरण (जेडीए) से सम्बन्धित है। जेडीए के परिक्षेत्र में रिश्वत के बल पर भूमाफियाओं के हौसले बुलन्द हैं। सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों से लेकर अनियमित तरीके से अट्टालिकाओं का निर्माण कराया जा रहा है और जेडीए के सम्बन्धित अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं। भूमाफियाओं को वरदहस्त प्रदान करने वालों में जेडीए उपाध्यक्ष के साथ ही सचिव और अन्य अधिकारियों का भी नाम लिया जा रहा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार महायोजना 2021 में मौजा पिछोर में नारायण बाग की बाउण्ड्री से लगी भूमि (संख्या 753 से 755, 818 से 821 और 826 से 843) को पार्क के रूप में आरक्षित रखा गया है। मुख्यमंत्री की सख्ती के बावजूद पार्क के लिए आरक्षित इस भूमि पर भूमाफियाओं का कब्जा हो चुका है। आरोप है कि भूमाफियाओं ने जेडीए उपाध्यक्ष और सचिव सहित अवर अभियंता संजय गुप्ता को लाखों रुपए अवैध कब्जा करने के बाबत रिश्वत के रूप में दिए हैं। परिणामस्वरूप जो जमीन पार्क के लिए आरक्षित थी उस जमीन पर पक्के निर्माण हो चुके हैं। जेडीए की संलिप्तता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्थानीय निवासियों ने तमाम शिकायती पत्र जेडीए के जिम्मेदार अधिकारियों के पास प्रेषित किए हैं लेकिन किसी भी शिकायती पत्र को संज्ञान में नहीं लिया गया। यहां यह बताना जरूरी हो जाता है कि ग्रीन बेल्ट और पार्कों के लिए आरक्षित भूमि पर अवैध निर्माण करने वालों के खिलाफ एनजीटी के साथ ही हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट सख्त हिदायत दे चुका है। हिदायत में स्पष्ट कहा गया है कि यदि इस प्रकार का कोई मामला संज्ञान में आता है तो तुरन्त कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके बावजूद जेडीए उपाध्यक्ष और सचिव सहित अभियंता/कर्मचारियों की शह पर भूमाफियाओं ने ग्रीन बेल्ट पर कब्जा जमा लिया है। रिश्वत के खेल का इससे बुरा हाल और क्या हो सकता है कि जिले के डीएम और कमिश्नर भी चुप्पी साधकर बैठे हैं। बताते चलें कि तहसील दिवस के मौके पर भी स्थानीय नागरिकों ने डीएम को शिकायती पत्र दिया था। डीएम की तरफ से आश्वासन भी दिया गया था कि तत्काल कार्रवाई की जायेगी लेकिन एक माह से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी कार्रवाई शून्य है।
कहा जा रहा है कि इस मामले में शासन को भेजी गयी रिपोर्ट में भी पूरी तरह से भ्रमित किया गया है। शिकायतों पर कार्यवाही करने के बजाए जेडीए उपाध्यक्ष ने अपने संरक्षण में जेडीए सचिव व एटीपी और जेई संजय गुप्ता के साथ मिलकर पहले भ्रामक आख्या तैयार की तत्पश्चात शिकायतों का निस्तारण मनमाने तरीके से कर दिया। बताया जा रहा है कि इस मामले में स्थानीय पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध है। आरोप है कि स्थानीय पुलिस को महज इसलिए रिश्वत दी गयी है ताकि स्थानीय नागरिकों के विरोध को बलपूर्वक दबाया जा सके।
इलाकाई भूमाफियाओं को जेडीए अधिकारियों का किस हद तक संरक्षण मिला हुआ है, इसकी बानगी देखिए। पार्कों के लिए आरक्षित स्थान पर पक्के निर्माण के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिए आरटीआई से सूचना मांगी गयी थी लेकिन तय समय बीत जाने के बाद भी किसी प्रकार की सूचना नहीं दी गयी। इतना ही नहीं शिकायतकर्ता और आरटीआई से सूचना मांगने वाले शख्स पर आरटीआई वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि मुख्यमंत्री की योजनाओं को स्थानीय स्तर के प्रशासनिक अधिकारी पलीता लगाने से बाज नहीं आ रहे।